हर धर्म की अपनी-अपनी मान्यताएं और प्रथाएं होती हैं जिसका उसके श्रद्धालु पालन करते हैं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि हर धर्म में कुछ ऐसी कुप्रथाएं होती हैं जिनका इस्तेमाल कर रूढ़िवादी लोग कमजोर वर्ग का शोषण करते हैं। आज बात ऐसी ही एक कुप्रथा की करेंगे जो महिलाएं के लिए किसी शाप से कम नहीं है।
इस्लाम धर्म में निकाह मुताह की प्रथा की अक्सर आलोचना होती है जिसमें शादी सिर्फ एक ‘कॉन्ट्रैक्ट’ भर होती है। भारत में भी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के बाद जिन प्रथाओं पर रोक लगाने की मांग कर रही हैं, उनमें निकाह मुताह भी शामिल है। ‘मुताह’ शब्द का अर्थ होता है ‘आनंद’, ‘मजा’ या ‘फायदा’, जो इस तरह की शादी के उद्देश्य पर और गहरा सवालिया निशान लगा देता है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार अस्थायी शादी (Temporary Marriage) या ‘निकाह मुताह’ एक प्राचीन इस्लामिक प्रथा है। यह प्रथा एक पुरुष और महिला को शादी के बंधन में बांधती तो है लेकिन सिर्फ एक सीमित समय के लिए। कहा जाता है कि हजारों साल पहले पुरुष लंबी दूरी की यात्रा करते समय छोटी अवधि के लिए एक पत्नी को अपने साथ रखने के लिए इस प्रथा का इस्तेमाल करते थे। रिपोर्ट बताती है कि सुन्नी मुस्लिम निकाह मुताह का पालन नहीं करते हैं लेकिन शियाओं में इसकी अनुमति है।
आलोचक कहते हैं ‘वेश्यावृत्ति’
साल 2013 की बीबीसी की रिपोर्ट में उन युवा ब्रिटिश मुस्लिमों के बारे में बात करती है जो इस प्रथा का पालन कर रहे थे। वरिष्ठ ब्रिटिश स्कॉलर्स और छात्र समूहों ने बताया था कि युवा ब्रिटिश शिया अपने पार्टनर से पूरी तरह निकाह करने से पहले उसे अच्छी तरह जानने को इस प्रथा का इस्तेमाल कर रहे थे। कुछ आलोचकों का कहना है कि यह प्रथा सिर्फ किसी के साथ शादी से पहले सोने का एक तरीका है। कुछ तो इसे ‘वेश्यावृत्ति’ तक करार देते हैं।
निकाह मुताह की शर्तें और नियम
राइटिंग लॉ डॉट कॉम के अनुसार मुताह निकाह की कुछ अनिवार्य शर्तें या नियम होते हैं। जैसे- दोनों पक्षों की उम्र 15 साल से अधिक होनी चाहिए, मुताह पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है, दोनों पक्षों की सहमति होना अनिवार्य है, निकाहनामा में निकाह की अवधि और दहेज का उल्लेख होना अनिवार्य है, दोनों पक्षों के बीच शारीरिक संबंध वैध होंगे, इस तरह की शादी से पैदा हुए बच्चे वैध होते हैं और माता-पिता दोनों की संपत्ति पर अधिकार रखते हैं, मुताह पत्नी पर्सनल लॉ के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती, मुताह निकाह के तहत तलाक को मान्यता नहीं दी जाती।
महिलाओं के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं
कुछ कारण ऐसे भी हैं जिनके चलते मुताह निकाह को रद्द भी हो सकती है। जैसे, शादी की अवधि पूरी हो जाने पर, किसी एक पक्ष की मौत हो जाने पर। यह कुप्रथा सिर्फ महिलाओं के अधिकारों का हनन करती है। शादी की अवधि पूरी हो जाने पर भी औरत का जीवन सामान्य नहीं हो पाता। उसे इद्दत की रस्म पूरी करनी पड़ती है। इद्दत की रस्म चार महीने दस दिन चलती है जिसमें महिला को किसी पुरुष की छाया से दूर एकांतवास में रहना पड़ता है। इसके बाद ही उसे दोबारा शादी के लायक समझा जाता है।
Compiled: up18 News