जानिए: आखिर भगवान श्री कृष्‍ण महाभारत के युद्ध में क्यों नहीं हुए खुद शामिल ?

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नर और नारायण को जब दम्बोद्भव ने युद्ध के लिए ललकारा, तब नारायण ने दम्बोद्भव से युद्ध किया और 1 हजार साल के युद्ध के बाद आखिर नारायण ने असुर का पहला कवच तोड़ दिया, लेकिन कवच तोड़ने के साथ वह स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हो गए। तब नर ने उन्हें महामृत्युंजय मंत्र से जीवित कर दिया और दंबोद्भव से युद्ध करना आरंभ किया। यह युद्ध भी एक हजार साल चलता रहा और नर ने असुर का दूसरा कवच तोड़ दिया।

इस बीच नारायण ने एक हजार साल की तपस्या पूरी कर ली और दंबोद्भव से युद्ध करने लगे। इस तरह से बारी-बारी युद्ध करते हुए नर-नारायण ने दंबोद्भव असुर के 999 कवच तोड़ डाले। जब अंतिम कवच रह गया तव वह असुर सूर्यदेव के पीछे जाकर छुप गया। सूर्यदेव ने अपनी शरण में आए भक्त को नर-नारायण से बचा लिया लेकिन खुद को नर-नारायण के श्राप से नहीं बचा पाए। नर-नारायण ने सूर्य देव से कहा कि आपका यह भक्त द्वापर में आपके अंश से उत्पन्न होगा और तब आपको अपने पुत्र की मृत्यु का शोक भोगना पड़ेगा। सूर्यदेव का वह असुर भक्त ही द्वापर में कर्ण हुआ जो सूर्य के अंश से कवच कुंडल के साथ उत्पन्न हुआ था।

नर ने 1000 वर्ष की तपस्या पूरी कर ली थी और तब दंबोद्भव से अंतिम युद्ध करने की उनकी बारी थी। इसलिए नारायण ने अर्जुन से कहा था कि यह महाभारत का युद्ध तुम्हारा युद्ध है। तुम्हें ही यह युद्ध लड़ना होगा। इस युद्ध में मैं मार्गदर्शक ही हो सकता हूं। इस युद्ध को जीतकर तुम्हें कीर्ति की प्राप्ति होगी और धरती का सुख प्राप्त होगा। तुम अपना युद्ध नहीं लड़ोगे तो मैं भी तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा क्योंकि कर्ण का वध तो केवल अर्जुन ही कर सकते थे। सूर्य के वरदान के कारण दंबोद्भव को वही मार सकता था जिसने 1 हजार वर्ष तपस्या की हो। और कर्ण अगर जीवित रह जाता तो महाभारत युद्ध पांडव नहीं जीत पाते इसलिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए कहा और स्वयं सारथी बने रहे।

महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृण ने स्वयं युद्ध न करके अर्जुन से युद्ध के लिए आगे किया इसके पीछे एक रहस्य यह भी है कि भगवान कहते हैं मैं मार्गदर्शक ही हो सकता हूं। बुद्धि रूपी रथ का सारथी हो सकता हूं लेकिन हर व्यक्ति का जीवन में अपना-अपना युद्ध होता है। और जो अपना युद्ध स्वयं नहीं लड़ सकता है, भगवान भी उसकी मदद नहीं करते हैं। इसलिए हमेशा यह समझना चाहिए कि जब युद्ध हमारा है तो यह हमें ही लड़ना होगा, ईश्वर हमारे बदले आकर युद्ध नहीं लड़ेंगे। अगर सत्य की लड़ाई लड़ोगे तो ईश्वर सारथी बनेंगे और अगर असत्य की ओर से युद्ध करोगे तो वह आपके सारथी भी नहीं बनेंगे और उस स्‍थिति में कौरवों की तरह विनाश होना तय है।

Compiled: up18 News