कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने आर्टिकल लिखकर किया ‘अग्निपथ’ का सपोर्ट

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‘अग्निपथ’ स्कीम का पिछले दिनों देशभर में भारी विरोध हुआ। यूपी-बिहार समेत कई राज्यों में युवा सड़कों पर दिखे, कुछ शहरों में आगजनी की घटनाएं भी हुईं। फिलहाल योजना के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और विरोध की आग बुझ चुकी है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल केंद्र सरकार से इस योजना को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस के ही सांसद मनीष तिवारी ने अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लेख लिखकर न सिर्फ ‘अग्निपथ’ का सपोर्ट किया बल्कि इसे रक्षा सुधारों और आधुनिकीकरण की व्यापक प्रक्रिया का हिस्सा बताया। ऐसे में कांग्रेस ने झट से अपने सांसद की राय से दूरी बनाते हुए कहा कि उसका यह मानना है कि सेना में भर्ती की यह नई योजना राष्ट्रीय हित और युवाओं के भविष्य के खिलाफ है।

जयराम के ट्वीट पर तिवारी का तंज

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कांग्रेस की तरफ से सफाई देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने ‘अग्निपथ’ पर एक लेख लिखा है। कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी है, ऐसे में यह कहना होगा कि ये उनके निजी विचार हैं, पार्टी के विचार नहीं हैं। कांग्रेस मानती है कि यह योजना राष्ट्रीय हित विरोधी और युवा विरोधी है और इसे बिना विचार-विमर्श किए लाया गया है।’

तिवारी ने रमेश के ट्वीट को रीट्वीट किया और अपने लेख के एक हिस्से का स्क्रीन शॉट साझा करते हुए कहा, ‘लेख की टैगलाइन कहती है कि ये निजी विचार हैं। काश, जयराम रमेश जी ने इसे आखिर तक पढ़ा होता। अब वह शायद देख सकते हैं।’

पढ़िए मनीष तिवारी ने लिखा क्या है

अपने लेख में मनीष तिवारी पहले विश्व युद्ध से पहले की घटनाओं, दूसरे विश्व युद्ध, शीत युद्ध के बाद के हालात और सेनाओं का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सबसे पहले अमेरिका ने मिलिट्री अफेयर्स में आने वाले बदलाव का अनुमान लगाया। सोवियत फौज ने भी 1970 के दशक में खुद को तकनीक के हिसाब से ढालना शुरू कर दिया था। 1990 के दशक के मध्य में आर्थिक तरक्की की दिशा में बढ़ते हुए चीन ने अपनी सेना और कमांड स्ट्रक्चर का पुनर्गठन शुरू किया था।

चीन ने हथियारों पर खर्च बढ़ाया

पिछली सदी के आखिरी वर्षों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को लगा कि वे मॉडर्न वॉर लड़ने में तकनीकी रूप से पिछड़ रहे हैं। ऐसे में विदेशी ताकतें क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकती हैं। इसके लिए उन्होंने तीन सूत्रीय एजेंडे पर काम किया और रक्षा खर्च बढ़ाना शुरू किया। चीन ने नए हथियारों पर खर्च करना शुरू किया और देश की डिफेंस इंडस्ट्री को मजबूत करने के कार्यक्रम शुरू किए। एक बड़ा बदलाव उन्होंने एक इंटिग्रेटेड फोर्स बनाने को लेकर किया जिसमें नौसेना और वायुसेना भी शामिल हुई।

कारगिल युद्ध के बाद…

वह लिखते हैं कि 1999 के कारगिल युद्ध के मद्देनजर भारत ने भी अपने डिफेंस फोर्सेज में सुधार और आधुनिकीकरण के साथ ही कमांड और कंट्रोल स्ट्रक्चर की दिशा में गंभीरता से सोचना शुरू किया। तिवारी ने साफ लिखा है कि कारगिल रिव्यू कमेटी ने कई सुधारों की सिफारिश की थी जिसमें एक सशस्त्र बलों में भर्ती प्रक्रिया को लेकर भी था। इसमें कहा गया, ‘सेना को हमेशा युवा और फिट रहना चाहिए। इसके लिए 17 साल की वर्तमान सेवा (फुल टाइम मिलिट्री सर्विस) की प्रथा के बजाय इसे घटाकर सात से 10 साल की अवधि के लिए करना उचित होगा।’

तिवारी ने अपने लेख में उन बातों को दोहराया है जिसके बारे में सेना पहले ही कह चुकी है। तिवारी लिखते हैं कि 2000 में मंत्रियों के समूह ने कारगिल कमेटी के सुझावों का समर्थन करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए सशस्त्र बल हर समय युद्ध के लिए सर्वश्रेष्ठ रहे, युवा प्रोफाइल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। हालांकि यह बेहद जटिल मामला है।

उन्होंने लिखा है कि 2011 में यूपीए सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा पर गठित नरेश चंद्र टास्क फोर्स ने भी इस मसले पर अहम सिफारिश दी थी लेकिन रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है।

तिवारी लिखते हैं कि अग्निवीर भर्ती सुधार को व्यापक रक्षा सुधारों का हिस्सा समझा जाना चाहिए, जिसमें सीडीएस की नियुक्ति भी शामिल है। उन्होंने कहा है कि यह भर्ती सुधार सशस्त्र बलों को अगली पीढ़ी के युद्ध के लिहाज से मजबूत करेगा।

14 जून को अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस योजना के तहत साढ़े 17 से 21 वर्ष के युवाओं को चार वर्ष के अनुबंध के आधार पर सेना में भर्ती किए जाने का प्रावधान है। चार वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद उनमें से 25 प्रतिशत को नियमित सेवा के लिए चुना जाएगा। साल 2022 के लिए आवेदकों की ऊपरी आयु सीमा बढ़ाकर 23 वर्ष कर दी गई है।

-एजेंसियां

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