हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम युग के प्रतीक थे अनोखे गायक मन्ना डे

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सुरों के सरताज मन्ना डे का आज जन्मदिन है। 1 मई 1919 को कोलकाता के एक रुढ़िवादी संयुक्त बंगाली परिवार में मन्ना डे का जन्‍म हुआ था। प्यार से मन्ना डे को लोग मन्ना दा के नाम से पुकारते थे। मन्ना डे का वास्तविक नाम प्रबोध चन्द्र डे था। कॉलेज के दिनों वे कुश्ती और मुक्केबाजी जैसी प्रतियोगिताओं में भी खूब भाग लेते थे।

कुश्ती के साथ मन्ना फुटबॉल के भी काफी शौकीन थे। संगीत के क्षेत्र में आने से पहले इस बात को लेकर लम्बे समय तक दुविधा में रहे कि वे वकील बनें या गायक। आखिरकार अपने चाचा कृष्ण चन्द्र डे से प्रभावित होकर उन्होंने तय किया कि वे गायक ही बनेंगे।

18 दिसम्बर 1953 को केरल की सुलोचना कुमारन से उनकी शादी हुई। उनकी दो बेटियाँ हैं: शुरोमा और सुमिता। शुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर 1956 को तथा सुमिता का जन्म 20 जून 1958 को हुआ। उनकी पत्नी सुलोचना कैंसर पीड़ित थीं, उनकी मृत्यु बंगलोर में 18 जनवरी 2012 को हुई। अपने जीवन के पचास वर्ष से ज्यादा मुम्बई में व्यतीत करने के बाद मन्ना डे अन्तत: कल्याण नगर बंगलोर में जा बसे।

मन्ना डे केवल शब्दों को ही नहीं गाते थे बल्कि अपने गायन से शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते थे। शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये मन्ना डे का चयन किया।

मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उस स्वर्णिम युग के प्रतीक थे जहां उन्होंने अपनी अनोखी शैली और अंदाज से ‘पूछो ना कैसे मैंने’, ऐ मेरी जोहराजबीं’ और ‘लागा चुनरी में दाग’ जैसे गीत गाकर खुद को अमर कर दिया। मोहम्मद रफी, मुकेश और किशोर कुमार के साथ मन्ना डे गायकों की उस मशहूर चौकड़ी का हिस्सा रहे, जिसने 1950 से 1970 के बीच हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज किया।

गायकों की इस चौकड़ी में रफी, मुकेश और किशोर की आवाज जहां उस जमाने के नायकों की आवाज से मेल खाती थी, वहीं मन्ना डे अपनी अनोखी आवाज चलते एक अलग मुकाम रखते थे।

पांच दशकों में फैले अपने लंबे सुरीले करियर में डे ने हिंदी, बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड और असमी में 3500 से ज्यादा गीत गाए और 90 के दशक में संगीत जगत को अलविदा कह दिया। गायकी को लेकर मन्ना डे के मन में अपार श्रद्धा थी। किसी भी निर्माता को यदि अपनी फिल्म में शास्त्रीय गीत गवाना होता था तो वह सिर्फ मन्ना डे को ही साइन करता था।

यह अंतिम गीत

1991 में आई फिल्म ‘प्रहार’ में गाया गीत ‘हमारी ही मुट्ठी में’ उनका अंतिम गीत था…। बतौर पार्श्व गायक मन्ना डे ने अपने करियर की शुरुआत 1943 में आई फिल्म ‘तमन्ना’ से की थी। 24 अक्टूबर 2013 को सुरों का सरताज हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गया पर गानों के जरिए वह हमेशा हमारे दिलों में जिंदा हैं और रहेंगे।

-एजेंसी