दुनिया बदलने की चिंता छोड़कर खुद में बदलाव करो..

“यह है तो कहानी, पर मैं शायद कुछ कम खुशकिस्मत हूं कि मैंने भी यह कहानी बुढ़ापे में आकर सुनी है। काश, मैं इसे तब सुनता जब अभी मैं जवान था,” आज सवेरे सैर करते समय मेरे एक मित्र ने जब मुझे यह कहा तो मैं चौंक गया और उनकी कहानी सुनने की उत्सुकता जाग […]

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लोकतंत्र में तंत्र हावी हो गया है और लोक गायब हो गया है

दीवाली आ रही है, यानी दीये, रोशनी, पटाखे, फुलझड़ियां, मिठाई और खुशी। पर्व का उत्सव। भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी। बुराई पर अच्छाई की जीत का अनूठा पर्व। इस दौरान पटाखों से प्रदूषण न हो, इस नीयत से चंडीगढ़ प्रशासन ने आदेश जारी किया है कि चंडीगढ़ में पटाखों की बिक्री नहीं की […]

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“जिसकी जेब खाली, उसका क्या कर लेगा मवाली?”

मेरे पिता जी हरदम कहा करते थे – “जिसकी जेब खाली, उसका क्या कर लेगा मवाली?” गरीब आदमी के पास खोने को कुछ नहीं होता। लोग गरीबी को अभिशाप मानते हैं पर गरीबी में छुपा हुआ वरदान अगर नज़र आ जाए तो आदमी की किस्मत बदल जाती है। इसका और खुलासा करें, आइये इससे पहले […]

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हम कैसे सुनिश्चित करें कि हमारा हर फैसला लाभदायक ही हो…

जीवन के विभिन्न अवसरों पर हम सब कोई न कोई फैसला लेते हैं। कोई फैसला लाभदायक सिद्ध होता है और कोई फैसला हमें सालों-साल तंग करता रहता है। कोई फैसला इतना क्रांतिकारी होता है कि हमारा जीवन ही बदल जाता है। हर कोई चाहता है कि उसका हर फैसला सही हो और उसे खुशी, सफलता […]

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सफलता और असफलता के बीच बस यही एक फर्क है…

जीवन बहुत आसान नहीं है। खासकर तब, जब हमें कोई राह न सूझ रही हो। मन चारों ओर भटक रहा हो और कोई रास्ता दिखाई न देता हो। जब हम स्वयं को विवश महसूस कर रहे हों तो लगता है कि हम उड़ सकते थे, लेकिन किसी ने हमारे पंख काट डाले हैं। जब हम […]

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आखिर ऐसा क्यों होता है ? क्यों हम अपने विचार नहीं बदल पाते जबकि नये तथ्य हमारे सामने हों

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जेके गालब्रेथ ने एक बार कहा था कि अगर हमारे सामने कुछ ऐसे तथ्य हों जो हमारी स्थापित विचारधारा से अलग हों तो तथ्यों के बावजूद हमारी पहली कोशिश यह होती है कि हम अपने स्थापित विश्वासों को सही सिद्ध करने का प्रमाण ढूंढ़ने में जुट जाएं। यानी, हम तथ्य सामने होने पर […]

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जीवन में इकीगाई को अपनाएं, आयेगी खुशियों भरी सफलता

हम सब जानते हैं कि सैर पर जाना सेहत के लिए अच्छा है। हम सब जानते हैं कि भोजन चबा-चबाकर खाना सेहत के लिए अच्छा है। हम जानते हैं कि यह सच है, मानते भी हैं कि यह सच है, पर जानते और मानते हुए भी हम उसे जीवन में नहीं उतारते। अक्सर ऐसा ही […]

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…यही कारण है कि अब पार्टी के अध्यक्ष को “पार्टी सुप्रीमो” कहने की परंपरा चल पड़ी है

सन‍् 1985 में 52वें संविधान संशोधन ने राजनीतिक दलों के मुखिया को अपने दल के अंदर सर्वशक्तिमान बना डाला जिसने पार्टी सुप्रीमो की अवधारणा को जन्म दिया। “आया राम, गया राम” की घटनाएं न हों, इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने 52वां संविधान संशोधन लागू किया। तब वे न केवल प्रधानमंत्री थे […]

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