सफलता और असफलता के बीच बस यही एक फर्क है…

अन्तर्द्वन्द

जीवन बहुत आसान नहीं है। खासकर तब, जब हमें कोई राह न सूझ रही हो। मन चारों ओर भटक रहा हो और कोई रास्ता दिखाई न देता हो। जब हम स्वयं को विवश महसूस कर रहे हों तो लगता है कि हम उड़ सकते थे, लेकिन किसी ने हमारे पंख काट डाले हैं। जब हम फंसा हुआ महसूस करें तो ऐसा ही होता है और हमारे सारे प्रयत्न विफल होते नज़र आते हैं।

क्या करना चाहिए तब ? कैसे निकल सकते हैं ऐसी विषम स्थिति से ?

याद रखिए, जीवन में समस्याएं तो सबको आती हैं, लेकिन जो व्यक्ति शांत रहकर समस्याओं का निवारण करता है वही जीवन में सफल होता है। जीवन कठिन तब लगता है जब व्यक्ति स्वयं को बदलने के बजाए परिस्थितियों को बदलने का प्रयास करता है। दरअसल, हम आधारभूत गलती ही यह करते हैं कि हम बाहरी स्थितियों से प्रभावित होकर पहल करने की अपनी शक्ति गंवा बैठते हैं या यह मान लेते हैं कि हमारे पास पहल करने की शक्ति है ही नहीं, जबकि वस्तुस्थिति इसके बिलकुल विपरीत होती है।

राह पथरीली हो तो हम सारे रास्ते पर कालीन नहीं बिछा सकते, पर हम जूते पहन सकते हैं ताकि वे पत्थर हमें न चुभें। उसी तरह जब स्थितियां विपरीत हों तो हमें यह देखना होता है कि हम अपने अंदर क्या बदलाव लायें, क्या नये हुनर सीखें, किससे सहायता मांगें ताकि हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकें। जब हम यह निश्चय कर लेते हैं कि हमने कोई काम करना है तो हमारा दिमाग खुद-ब-खुद रास्ते की अड़चनों पर फोकस करने के बजाए उनके संभावित समाधान के बारे में सोचने लगता है और रास्ते निकाल लेता है, लेकिन अगर हम अड़चनों पर फोकस करें तो हमें अड़चनें इतनी बड़ी लगने लगती हैं कि हम डर कर बैठ जाते हैं और कुछ भी नहीं कर पाते। डर के कारण जड़ता आती है, निष्क्रियता आती है और हम अपनी असफलता सुनिश्चित कर लेते हैं। इसके विपरीत जब हम समस्या के समाधान तलाशने की कोशिश करते हैं तो हमारा दिमाग सोचने लगता है और बहुत बार कोई न कोई रास्ता निकल आता है। कभी-कभार यह संभव है कि राह देर से मिले, समाधान एकदम न मिले, लेकिन तब भी हम पर निराशा नहीं हावी होती क्योंकि हम उम्मीद नहीं छोड़ते। सफलता और असफलता के बीच बस यही एक फर्क है।

जब कभी भी हमें लगे कि हम फंस गए हैं, मंझधार में हैं, तूफान में घिर गए हैं, तो निराश होने के बजाए समाधान ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। इस संबंध में मैं एक छोटा सा फार्मूला याद रखने की अनुशंसा करता हूं और वह फार्मूला ऐसा है जिसे अंग्रेजी वर्णमाला के छ: अक्षरों से याद रखा जा सकता है। इस फार्मूले के वे अक्षर हैं –बी, ई, डी, ओ, ए, और आर। पहले तीन अक्षर बी, ई, डी, हमारी वर्तमान स्थिति के सूचक हैं।

बी, ई, डी, यानी, बेड, यानी, बिस्तर। जब हम बी, ई, डी की स्थिति में होते हैं तो हम बिस्तर पर हैं, यानी, नींद में हैं, निष्क्रिय हैं, जड़ता की स्थिति में हैं। यहां बी से बनता है ब्लेम, यानी दोषारोपण। हम स्थितियों को दोष देते हैं, दूसरे व्यक्तियों को दोष देते हैं, अपनी किस्मत को, गरीबी को, साधनहीनता को दोष देते हैं। ई से बनता है एक्सक्यूज़, यानी बहानेबाज़ी। अपनी अकर्मण्यता दूर करने के बजाए हम बहाने गढ़ लेते हैं। डी से होता है डिनायल, यानी, वस्तुस्थिति को समझने और स्वीकार करने से इन्कार। ये तीन प्रवृत्तियां हैं, मनोदशाएं हैं जिनके कारण हम अड़चनों से डर जाते हैं और निष्क्रिय होकर बैठ जाते हैं, मानो हम बेड पर, यानी बिस्तर पर गहरी नींद में सो रहे हों।

अब हम इसी फार्मूले के बाकी तीन अक्षरों पर आते हैं। ये तीन अक्षर हैं ओ, ए और आर। ओ, ए, आर, यानी, ओर, यानी चप्पू, पतवार। जब नाव मंझधार में हो तो पतवार के सहारे हम उसे किनारे पर लाने की कोशिश कर करते हैं। ओ से बनता है, ओनरशिप, यानी, किसी भी अड़चन को दूर करने का काम मेरा है, सपने मेरे हैं तो पूरा करने का यत्न भी मैं ही करूंगा, मेरे लिए कोई मसीहा नहीं आयेगा, अपना मसीहा मैं खुद हूं। ए से बनता है अकाउंटेबिलिटी, यानी, जवाबदेही। अगर अड़चनें हैं और मैं उन्हें दूर नहीं कर पा रहा हूं तो जवाबदेही मेरी है। आखिरी अक्षर है आर, जिससे बनता है रेस्पांसिबिलिटी, यानी, जिम्मेदारी। इसका मतलब है कि अड़चनों से बाहर निकलने की जिम्मेदारी भी मेरी है। जब हम यह समझ लेते हैं तो निष्क्रियता दूर हो जाती है, जड़ता दूर हो जाती है और हम प्रयत्नशील हो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि देर-सवेर समस्या का हल निकल आता है।

मेरे इस फार्मूले में जड़ता दिखाने वाले तीन अक्षर हैं, बी, ई, और डी। और समाधान की ओर ले जाने वाले भी तीन ही अक्षर हैं, ओ, ए और आर। अब हम समाधान की ओर ले जाने वाले अक्षरों का कुछ और विश्लेषण करेंगे। इनमें पहला अक्षर है ओ, यानी, ओनरशिप, यानी यह स्वीकार करना कि सपने मेरे हैं तो अड़चनों को दूर करने का काम भी मेरा ही है। दरअसल, सफलता का पूरा मंत्र इसी एक अक्षर में समाया हुआ है। जब मान लिया कि यह काम मेरा है तो इसका पहला चरण है यह सोचना कि मैं एक अकेला ऐसा क्या काम करूं कि यह अड़चन दूर हो जाए।

इसका दूसरा चरण है कि वह काम मैं कब करूंगा जो इस अड़चन को दूर कर सके। इसका तीसरा चरण है कि मैं और क्या कर सकता हूं जो मुझे इस अड़चन से पार पाने में सहायक है। इसका चौथा और सर्वाधिक महत्वपूर्ण चरण है कि हम कागज़-पेन लें, और सभी संभावित अड़चनों की लिस्ट बनाएं। यह बहुत जरूरी है कि हम लिस्ट लिखित में बनाएं। फिर हम उनके संभावित समाधानों की लिस्ट बनाएं, फिर हम यह लिखें कि हम कौन-सा ऐसा काम कर सकते हैं जो हमें समस्या के समाधान के नज़दीक ले जा सकता है, फिर यह लिखें कि वह काम हम कब तक खत्म कर लेंगे।

याद रखिए, समस्या के समाधान का पहला चरण यह है कि हम समस्या को कागज पर लिखें। लिखने से बहुत सी बातें खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाती हैं क्योंकि तब हमारा दिमाग एक ही विषय पर फोकस करता है। इससे कई नये आइडिया आते चलते हैं। इस तरह हम खुद अपना मार्गदर्शन करते हैं और समस्या का समाधान ढूंढ़ लेते हैं। पढ़ने में यह जितना आसान लग रहा है, यह सचमुच इतना ही आसान है भी, बस शुरुआत की देर है। एक बार जब आप समस्याओं से पार पाने के लिए यह तरीका अपना लेते हैं तो समस्याओं के हल ढूंढ़ना इतना आसान हो जाता है कि आप किसी भी समस्या का हल ढूंढ़ सकते हैं, किसी की भी समस्या का हल ढूंढ़ सकते हैं, नैया को मंझधार से निकाल सकते हैं। खुद सफल हो सकते हैं, अपने आसपास के लोगों की सफलता में सहायक हो सकते हैं।

– पी के खुराना,
हैपीनेस गुरू व मोटिवेशनल स्पीकर