श्री खाटू श्याम बाबा भगवान कृष्ण के कलियुग के अवतार माने जाते हैं. राजस्थान के सीकर में स्थित श्री खाटू श्याम का भव्य मंदिर बेहद प्रसिद्ध है. यहां रोजाना लाखों की संख्या में भक्त श्यामबाबा के दरबार में दर्शन के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां आकर बाबा के दर्शन मात्र से ही भक्त की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. भक्तों में बाबा श्याम के जन्मदिन और लक्खी मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है. इन दोनों ही उत्सव को पूरे राजस्थान में बड़े हर्षोल्लास से मनाया है.
श्री श्याम मंदिर कमेटी ने 2024 में होने वाले लक्खी मेले की डेट जारी कर दी है. इस साल बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला फाल्गुन महीने में 12 मार्च 2024 को आयोजित होगा जिसका समापन 21 मार्च 2024 को होगा.
बाबा श्याम को सुजानगढ़ का निशान चढ़ाने के बाद मेले का समापन माना जाता हैं.
फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को इस मेले का मुख्य दिन होता है. यह मेला षष्ठी से द्वादशी तक 10 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है. इस दौरान देशभर से लाखों भक्त आते हैं और बाबा खाटू श्याम की भक्ति करते हैं.
फाल्गुन मास में हर साल लक्खी मेला लगने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपना सिर काटकर उनके चरणों में अर्पित कर दिया था. इसी वजह से लक्खी मेला फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि तक चलता है.
कौन हैं खाटू श्याम जी?
शास्त्रों के मुताबिक, खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है. खाटू बाबा पांडु के पुत्र भीम के पौत्र थे, जो कि बेहद शक्तिशाली थे. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब पांडव अपनी जान बचाते हुए वन में भटक रहे थे, उस दौरान भीम की हिडिम्बा से मुलाकात हुई. बाद में हिडिम्बा और भीम के पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच था. इसके बाद में घटोत्कच का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने बर्बरीक रखा. बाद में बर्बरीक को ही खाटू श्याम के नाम से जाना जाने लगा.
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने कमजोर पक्ष की तरफ से युद्ध लड़ने का फैसला किया. उनके इस फैसले पर भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि अगर बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया, तो पांडवों निश्चित रूप की हार होगी. ऐसे में उन्होंने ब्राह्मण का रूप बदलकर बर्बरीक से उनका सिर दान में मांग लिया. बर्बरीक ने भी खुशी-खुशी ब्राह्मण रूप में भगवान श्रीकृष्ण को अपने सिर दान कर दिया. इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलयुग में उनके नाम से बर्बरीक की पूजा की जाएगी. यही कारण है कि बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है.
खाटू श्याम जन्मदिवस कब है?
खाटू श्याम का जन्मदिन हर साल कार्तिक महीने की एकादशी यानी देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है. मान्यता है कि सीकर स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर में इसी तिथि पर खाटू श्याम जी के शीश की स्थापना की गई थी. इसलिए हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर भी खाटू श्याम के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं. इस साल देवउठनी एकादशी और खाटू श्याम जन्मोत्सव 12 नवंबर 2024 को है.
-एजेंसी
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