मथुरा: श्रीकृष्‍ण-जन्मस्थान पर हुआ गीता जयन्ती महोत्सव का आयोजन

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गीता के पुरोधा भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्मभूमि पर आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारम्भ स्वास्तिवाचन, दीप पज्वलन एवं मंगलाचरण  के उपरान्त गीता के मूर्धन्य विद्वान श्री धीरेन्द्र शास्त्री ने श्रीमद्भगवत गीता के तत्व का सुन्दर व्यख्यान एवं वर्तमान परिस्थतियों एवं समय में भगवान श्रीकृष्‍ण की दिव्य अमृतवाणी श्रीमद्भागवत गीता की उपयोगिता को प्रकाशित करते हुए कहा कि कर्म का फल वैराग्य होता है, यदि जीवन में धर्म का आकर्षण कम हो।

गीता में 700 श्‍लोक है और 18 अध्याय हैं। गीता के पहले छः अध्याय कर्म की प्रधानता को परिभाषित करते हैं। दूसरे छः अध्याय भक्ति को परिभाषित करते हैं एवं शेष छः अध्याय ज्ञान को परिभाषित करते हैं। उन्होंने कहा कि गीता में कहा गया है कि कर्म और विचार भक्ति से प्रेरित होने चाहिए। श्रीकृष्‍ण-जन्मस्थान की अपनी एक महिमा है जहां भगवान श्रीकृष्‍ण ने जन्म लेकर महाभारत के युद्ध में गीता का सार समझाया था। गीता एक योगशास्त्र है। योग का मतलब योगा नहीं, योग का चरम लक्ष्य की प्राप्ति है। मन को ईश्‍वर से जोड़ने का काम भी योग है। भगवान श्रीकृष्‍ण ने महाभारत में यही चेतना जागृत की है। गीता की संस्कृत कोई ज्यादा कठिन नहीं है। यदि अशुद्ध भी उच्चारण होगा तो भी धर्म का प्रयोजन सफल होगा।

श्रीमद् गीता के व्याख्यान के उपरान्त ब्रज के सुप्रसिद्ध ख्याल-लावणी गायक श्री वीरेन्द्र कश्‍यप और श्री सम्पतलाल  श्रीमद्भगवतगीता के ऊपर विशिष्‍टता से तैयार किया गया लावनी का गायन प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर श्रीकृष्‍ण-जन्मस्थान सेवा-संस्थान के सचिव श्री कपिल शर्मा, सदस्य श्री गोपेश्‍वरनाथ चतुर्वेदी, जिला पर्यटन अधिकारी श्री डी. के. शर्मा, उप्र ब्रजतीर्थ विकास परिषद के ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डा. उमेशचन्द्र शर्मा, गीता शोध संस्थान के समन्वयक चन्द्रप्रताप सिंह सिकरवार, सुनील शर्मा, उप मुख्य अधिशाषी अनुराग पाठक, जनसंपर्क प्रभारी विजय बहादुर सिंह एवं श्री पी. के. वार्ष्‍णेय आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।