चार नवरात्रियों में से एक शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ, दशहरा पर होगा पूर्ण व्रत

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इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर रविवार के दिन से हो रही है। ऐसे में घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 21 मिनट से सुबह 10  बजकर 12 मिनट तक रहेगा। वहीं, घट स्थापना का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से 12:30 मिनट तक रहने वाला है।

परंतु क्या आपको ज्ञात है क‍ि नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाई जाती है हालांकि वास्तव में वर्ष में चार बार नवरात्रि का पर्व आता है। अर्थात हर तिमाही में एक बार नवरात्रि मनाई जाती है।

ये हैं चारों नवरात्रि

चैत्र मास – चैत्र नवरात्रि
आषाढ़ मास – गुप्त नवरात्रि
आश्विन मास – शारदीय नवरात्रि
माघ मास – गुप्त नवरात्रि

इन चारों नवरात्रियों में से आषाढ़ और माघ मास में पड़ने वाली नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है कि इन दोनों नवरात्रियों को गुप्त रूप से मनाने का विधान है। जहाँ चैत्र और शारदीय नवरात्रियों को गृहस्थ एवं पारिवारिक लोगों द्वारा मनाये जाने का विधान है वहीँ दोनों गुप्त नवरात्रियां तांत्रिक एवं साधना करने वालों के लिए अति उत्तम बताई गई है। इसीलिए गुप्त नवरात्रियाँ आम लोग नहीं मनाते बल्कि साधना करने वाले मनाते हैं। इन चारों नवरात्रियों का महत्त्व समान है और इनमें माता आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

यदि चैत्र और शारदीय नवरात्रि की बात करें तो चैत्र नवरात्रि को साधारण तरीके से और शारदीय नवरात्रि को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। शायद इसलिए कुछ लोगों को चैत्र नवरात्रि के विषय में भी पता नहीं होता। हालाँकि चैत्र नवरात्रि सबसे पुरानी नवरात्रि है और श्रीराम के अवतरण तक केवल चैत्र नवरात्रि ही मनाई जाती थी।

चैत्र नवरात्रि का आरम्भ तब से आरम्भ हुआ था जब नवदुर्गा का प्राकट्य हुआ। महिषासुर नामक दैत्य का आतंक बढ़ने पर देवताओं ने माता पार्वती से रक्षा की प्रार्थना की। तब माता ने ९ दिनों में अपने ९ रूपों को प्रकट किया जिन्हे नवदुर्गा कहा जाता है। इन्ही नौ दिनों को चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाये जाने लगा। इस प्रकार चैत्र नवरात्रि सबसे प्राचीन और पहली नवरात्रि है।

शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा से है। कथा के अनुसार महिषासुर के वध के लिए त्रिदेवों के तेज से माता दुर्गा का प्राकट्य हुआ। सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये जिससे माता अजेय हो गयी। तब उन्होंने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। ९ दिनों तक हुआ एक घोर युद्ध के बाद दसवें दिन माता ने महिषासुर का वध कर दिया। शारदीय नवरात्रि इन्ही नौ दिनों को समर्पित है और दसवां दिन दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि का व्रत शारदीय नवरात्रि से अधिक कठिन होता है। शारदीय नवरात्रि को नृत्य एवं उत्सव के रूप में मनाया जाता है इसीलिए ये अधिक प्रसिद्ध है। वैसे तो दशहरा पूरे भारत में मनाया जाता है किन्तु बंगाल की दुर्गा पूजा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। दशहरा बंगाल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है।

चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि दोनों भगवान श्रीराम से जुड़े हुए हैं। चैत्र नवरात्रि का समापन श्रीराम नवमी के दिन होता है जबकि शारदीय नवरात्रि के अंत, अर्थात दशहरा के दिन श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसीलिए चैत्र और शारदीय, दोनों नवरात्रियों में श्रीराम की पूजा करने का भी विधान है।

माता दुर्गा और श्रीराम के विषय में एक कथा का वर्णन आता है। जब श्रीराम ने रावण के वध का निश्चय किया तो उनकी इच्छा माता दुर्गा की पूजा करने की हुई। उस समय आश्विन मास था और श्रीराम चैत्र तक की प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे। तब उन्होंने आश्विन मास में ही १०८ दिव्य कमल के पुष्पों से माता दुर्गा की पूजा करने का निश्चय किया।

उधर जब रावण को पता चला कि श्रीराम माता दुर्गा की आराधना कर रहे हैं तो उसने अपनी माया से उन १०८ कमल पुष्पों में से एक को चुरा लिया। इसके कारण अंतिम आहुति में व्यवधान पड़ गया। तब श्रीराम को याद आया कि उन्हें कमल लोचन भी कहा जाता है। इसीलिए उन्होंने अपनी एक आंख अंतिम आहुति के रूप में चढाने का निश्चय किया।

जैसे ही उन्होंने अपने बाण से अपनी आंख निकालने का प्रयास किया, माता दुर्गा ने प्रकट होकर उनका हाथ पकड़ लिया। उनकी इस अद्भुत भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया। तब श्रीराम ने रावण से अंतिम युद्ध किया और माता के आशीर्वाद से उसका वध कर दिया। तभी से शारदीय नवरात्रि मनाने का आरम्भ हुआ।

तो इस प्रकार भले ही शारदीय नवरात्रि सबसे अधिक प्रसिद्ध हो, किन्तु अन्य तीनों नवरात्रियों का महत्त्व भी उतना ही है। इन सभी नवरात्रियों में माता के नौ रूपों की ही पूजा की जाती है। हम प्रार्थना करते हैं कि इस नवरात्रि आप और आपके परिवार पर माता की कृपा बनी रहे। जय माता दी।

Compiled:  up18 News