जानिए! आख़िर वैज्ञानिक क्यों नहीं कर पाते भूकंप की सटीक भविष्यवाणी?

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वैज्ञानिक भूकंप की चेतावनी दे पाने के लिए गहन अध्ययन करते रहे हैं. क्या वे कभी अपने मिशन में सफल हो पाएंगे?

भूकंप अचानक आते हैं और अपने पीछे तबाही का मंज़र छोड़ जाते हैं. तुर्की और सीरिया में हाल ही में आए भूकंप में हज़ारों लोगों की जान गई है और लाखों लोग बेघारबार हो चुके हैं.

छह फ़रबरी की सुबह धरती ऐसी हिली की इलाक़े के कई घर और अपार्टमेंट्स भरभरा कर गिर गए. 7.8 की तीव्रता वाला भूकंप बेहद घातक साबित हुआ.

भूकंप विज्ञानियों को पहला संकेत उनके संवेदनशील उपकरण पर दिखे फ़्लैश से मिला. लेकिन ये संदेश भूकंप शुरू होने के बाद ही मिल पाता है. कुछ ही घंटे पर एक बार फिर तुर्की और सीरिया के इसी इलाके 7.5 की तीव्रता का भूकंप आया.

टेक्टोनिक प्लेट्स का संगम

ये दोनों भूकंप धरती के अंदर अधिक गहरे नहीं आए थे. जिसका अर्थ ये है कि इनसे पैदा हुआ कंपन काफ़ी तीव्र साबित हुआ.

अब वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इन भूकंपों से बचे लोग और उन्हें राहत पहुँचाने आए कर्मचारी भी भूस्खलन और ज़मीन के धंसने जैसे ख़तरों का सामना कर सकते हैं.

इस विनाश के बीच एक बार फिर प्रश्न यही उठ रहा है कि हम भूकंप की सटीक भविष्यवाणी आख़िर क्यों नहीं कर पाते.

जहां ये भूकंप आया है वहां तीन टेक्टोनिक प्लेट्स का संगम होता है. इन्हें एनातोलिया, अरब और अफ़्रीका प्लेट्स के नाम से जाना जाता है. यही तीनों प्लेट्स आपस में टकराईं और अपने पीछे तबाही छोड़ गईं.
वर्ष 1970 के बाद इस क्षेत्र 6 या इससे अधिक तीव्रता के तीन ही भूकंप आए हैं. वैज्ञानिकों का मत है कि ताज़ा भूकंप तो आना ही था. लेकिन वो ये क्यों नहीं बता पाए कि कब?

भूकंप के फॉल्ट लाइंस

सच्चाई तो ये है कि भूकंप के पूर्वानुमान का विज्ञान बहुत मुश्किल है. भूकंप के आने के दौरान या उसके बाद तो कुछ संकेत मिलते हैं लेकिन पहले से ही भविष्यवाणी कर पाना बहुत कठिन काम है.

क्रिस मैरोन रोम की सेपीएंज़ा यूनिवर्सिटी में जियोसाइसंज़ के प्रोफ़ेसर हैं.

प्रोफ़ेसर मैरोन कहते हैं, “जब हम प्रयोगशाला में अध्ययन के भूकंप को साइमुलेट (नकल) करते हैं तभी हमें अपनी छोटी-मोटी कमियां का अहसास होने लगता है. लेकिन प्रकृति में इस बारे में बहुत अनिश्चितता है कि हम अक्सर किसी बड़े भूकंप के आने के संकेत क्यों नहीं भांप पाते हैं.”

भूविज्ञानी 1960 के दशक से भूकंपों के पूर्वानुमान की कोशिश में आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करने में जुटे हैं. प्रोफ़ेसर मैरोन कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती है भूकंप के फॉल्ट लाइंस.

पृथ्वी के भीतर मौजूद ये फॉल्ट लाइंस सारी दुनिया में फैली हुई हैं. पृथ्वी ग्रह के भीतर हलचल लगातार जारी रहती है. एक दिन में कई-कई भूकंप आते हैं. इनमें अधिकतर इतने कमज़ोर होते हैं कि उनके रत्ती भर का नुकसान नहीं होता.

भूकंप का पूर्वानुमान

एक ढंग से भूकंपों के इस भारी ट्रैफ़िक के कारण किसी बड़े भूचाल का अनुमान लगाना असंभव हो जाता है.
अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक़ भूकंप के किसी भी कारगर पूर्वानुमान के लिए तीन चीज़ें होनी चाहिएं. पहली है स्थान, जहां ये भूकंप आने वाला हो. दूसरा- वह कब आने वाला है, और तीसरा- कितना बड़ा भूकंप आने वाला है.

अब तक कोई भी इन तीनों का सटीक पूर्वानुमान नहीं लगा पाया है.

इसके बजाय भूविज्ञानी हेज़ार्ड मैप्स (ख़तरे के मानचित्र) का प्रयोग करते हैं जिससे वो गेस लगा सकें.
ये मैप कई वर्षों के भीतर किसी विशेष इलाके में भूकंप आने का अनुमान लगाते हैं. इससे इमारतों को मज़बूत बनाने जैसी कुछ योजनाओं पर काम शुरु करने में तो मदद मिल सकती है पर ये उस स्तर का पूर्वानुमान नहीं है जिससे लोगों को भूकंप आने से पहले सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा सके.

जानवर करते हैं सटीक भविष्यवाणी?

हज़ारों साल से ये धारणा रही है कि भूकंप से पहले जानवर बौखला जाते हैं या अजीब हरकतें करने लगते हैं लेकिन इन संकेतों का अर्थपूर्ण इस्तेमाल करना बहुत कठिन है.

जानवरों के व्यवहार से हमेशा एक सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता.

चीन में एक ऐसी रिपोर्ट है, जहां कई दशक पहले किसी जानवार से मिले संकेत के कारण भूंकप का सही पूर्वानुमान लगाया गया था पर ये कमाल दोहराया नहीं जा सका है.

जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ़ एनिमल बिहेवियर के वैज्ञानिक इटली के भूकंप-संभावित क्षेत्रों की गायों, भेड़ों और कुत्तों के व्यवहार का अध्ययन कर रहे हैं.

वहां के शोधकर्ताओं का कहना है कि भूकंप के केंद्र के क़रीब रहने वाले जानवरों के व्यवहार में परिवर्तन आता है.

तुर्की और सीरिया

दूसरी बात ये है कि भूकंप के ज़ोन में रहने वाले सभी लोगों के पास तीव्र झटकों को सहने के लिए बुनियादी ढांचा नहीं होता.

प्रोफ़ेसर मैरोन कहते हैं, “तुर्की और सीरिया में ऐसे बहुत से कारण मौजूद थे जिनसे ये भांपा जाना चाहिए था कि वहां इमारतें भूकंप की स्थिति ताश के पत्तों की तरह धराशायी हो जाएंगी.”

“पश्चिमी देशों में 1970 और 1980 के दशकों में भूंकप के ज़ोन में इमारतें बनाने के लिए कानून लागू किए गए थे. लेकिन इससे इमारत को बनाने की कीमत बढ़ जाती है.”

ये तो समझ आ गया है कि बिल्कुल सटीक पूर्वानुमान असंभव सा है. इसलिए वैज्ञानिक अब इस कोशिश में हैं कि वो मौजूदा संकेतों के ज़रिए ही भविष्यवाणियों को पहले से बेहतर बनाया जाए.

भूकंपीय संकेतों को अलावा शोधकर्ताओं ने जानवरों के व्यवहार से लेकर पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में इलेक्ट्रिक गड़बड़ियों तक सहारा लिया है.

भूकंप का अध्ययन

चीनी वैज्ञानिक भूकंप आने से पहले के कुछ दिनों में पृथ्वी के आयनोस्फ़ेयर में विद्युत आवेशित कणों में तरंगों की तलाश करते रहे हैं.

हाल ही में, भूकंप के संकेतों को भांपने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिसजेंस के इस्तेमाल से काफ़ी तहलका मच रहा है. इस तकनीक के ज़रिए बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण किया जा सकता है. इसमें अतीत में आए भूकंप का अध्ययन कर, भविष्य में होने वाली हलचल का पैर्टन भांपा जा सकता है.

प्रोफ़ेसर मैरोन कहते हैं, “मशीन-बेस्ड लर्निंग से पूर्वानुमान में बहुत अधिक रुचि जगी है.”
प्रोफ़ेसर मैरोन और उनके सहयोगी बीते पांच वर्षों से एक ऐसा एल्गोरिदम विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जो प्रयोगशाला के भीतर भूकंप के साइमुलेशन की ख़ामियों को डिटेक्ट कर सके.

ये एक मुट्ठी के बराबर के ग्रेनाइट के ब्लॉक प्रयोग में लाते हैं जिन के सहारे भूकंप के समय फॉल्ट लाइन्स पर पड़ने वाले दबाव और घर्षण का रूपातंरण किया जाता है. ये दबाव और घर्षण तब तक किया जाता है जब तक ग्रेनाइट के ब्लॉक आपस में टकरा कर स्लिप नहीं कर जाते. इसे ये लोग लैबक्वेक्स कहते हैं.

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस

मैरोन कहते हैं, “लचीली लहरें फ़ॉल्ट के बीचोंबीच से गुज़रती हैं और उसे धीरे-धीरे तोड़ती रहती हैं. हम लैब के बीच इसका पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि कब आख़िरी झटका लगेगा. हमें बहुत ख़ुशी होगी अगर ये सब लैब से निकलकर पृथ्वी ग्रह के लिए किया जा सके.”

प्रयोगशाला में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के सहारे लगाए जा रहे पूर्वानुमान की तुलना में इसे असली दुनिया के फॉल्ट ज़ोन्स पर लागू करना चुनौती वाला काम है.

इसराइल में स्थित वैज्ञानिकों के एक अन्य समूह ने हाल में मशीन लर्निंग के ज़रिए 48 घंटे पहले 83% भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया.

इन वैज्ञानिकों ने आयनोस्फ़ेयर में बीते बीस वर्षों के दौरान इलेक्ट्रॉन कॉन्टेंट में आए परिवर्तनों का अध्ययन किया.

चीन आयनोस्फ़ेयर में छिपे संकेतों पर दांव खेल रहा है. वर्ष 2018 में चीन ने चाइना सिसमो-इलेक्ट्रोमैगनेटिक सैटेलाइट लॉन्च किया था. इसका उद्देश्य पृथ्वी के आयनोस्फ़ेयर में इलेक्ट्रिकल असंगतियों की निगरानी करना है.

भूकंप नेटवर्क केंद्र

पिछले साल बीजिंग स्थित भूकंप नेटवर्क केंद्र के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्हें मई 2021 और जनवरी 2022 में चीन में आए भूकंपों से 15 दिन पहले आयनोस्फ़ेयर के इलेक्ट्रॉन्स में 15 दिन जलकण मिले थे.

चीन के इस भूकंप नेटवर्क केंद्र में कार्यरत शोधकर्ता मेई ली कहती हैं, “लिथोस्फेयर और उसकी दो ऊपरी परतों में ऊर्जा का ट्रांसफ़र संभव है.”

लेकिन ये कैसे होता है इस पर अभी विवाद है. मेई ली चेतावनी देती हैं कि सैटेलाइट से मिल रहे डेटा के बावजूद उनका शोध भूकंप की सटीक भविष्यवाणी के करीब होने से कोसों दूर है.
मेई ली साफ़ कहती हैं, “हम आने वाले भूकंप की सही लोकेशन नहीं बता सकते.”

दुनिया के बाक़ी शोधकर्ता कुछ अलग संकेतों पर उम्मीद लगाए बैठे हैं. जापान में कुछ लोग दावा करते हैं कि भूकंप के ज़ोन के ऊपर जलवाष्प में परिवर्तन से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.

जटिल सिस्टम

कुछ टेस्ट किए गए हैं जिनसे ये साबित हुआ है कि इस तरीके से की गई भविष्यवाणियां 70 फ़ीसदी तक सही होती हैं. लेकिन इसमें भी पेच है.

ये पूर्वानुमान सही दिन और सही वक्त का नहीं होता. इसमें कहा जाता है कि ‘अगले महीने कभी भी फलां जगह पर भूकंप आ सकता है.’

इन तमाम दावों के बावजूद अब तक कोई भी व्यक्ति सफलतापूर्वक भूकंप होने की जगह और समय का पूर्वानुमान नहीं लगा पाया है.

प्रोफ़ेसर मैरोन कहते हैं, “जैसी मॉनिटरिंग हम करना चाहते हैं, हमारे पास वैसा बुनियादी ढांचा ही नहीं है. दस करोड़ डॉलर के सिस्मोमीटर का ख़र्चा कौन उठाएगा?”

“हम प्रयोगशाला में भूकंप का अनुमान लगा पा रहे हैं लेकिन ये हमें बिल्कुल नहीं मालूम कि बाहरी दुनिया में इतना जटिल सिस्टम कैसे काम करेगा. मिसाल की तौर पर जिस फॉल्ट लाइन की वजह से ये तुर्की और सीरिया का भूकंप आया है, वहां एक नहीं तीन-तीन फॉल्ट लाइन हैं.”

मौसमी परिवर्तनों का पूर्वानुमान

बेहतर पूर्वानुमान लगा भी लें तो उस जानकारी का क्या किया जाए. जब तक ये जानकारी सटीक नहीं होगी तब तक पूरे के पूरे शहरों और गांवों को संभावित भूकंप से पहले खाली तो नहीं करवाया जा सकता. क्योंकि इस सारी प्रक्रिया काफ़ी ख़र्चा होगा. और अगर अनुमान ग़लत निकला तो पैसे की बर्बादी.
प्रोफ़ेसर मैरोन मौसम पूर्वानुमान की दुनिया की ओर भी उम्मीद से देख रहे हैं.

वे कहते हैं, “ये विभाग पहले ही बड़े मौसमी परिवर्तनों का सटीक पूर्वानुमान लगाता है. इसकी वजह से सरकारें समुद्री तूफ़ानों से पहले बड़े लेवल पर इमरजेंसी सेवाओं की तैयार रखती है ताकि लोग सुरक्षित रहें. अब भूकंप के मामले में भी ऐसा हो पाए तो कमाल हो जाए लेकिन इसमें वर्षों लग सकते हैं. फ़िलहाल हम इसके रत्ती भर भी क़रीब नहीं हैं.”

एक क्षेत्र जिसमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस मदद कर सकती है वो है भूकंप आने के तुरंत बाद के हालात. चीन की तोहुकू और रेनमिन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान का जायज़ा लेने के लिए ऐसे टूल्स बना रहे हैं जो सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल करक राहतकार्यों में सरकार की मदद करे.

मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम

ये टूल्स एल्गोरिदम के सहारे इमारतों को हुए नुकसान का आकलन करते हैं. इनके ज़रिए ऐसे मकानों को भी चिह्नित किया जा सकता है जो झटकों से काफ़ी कमज़ोर हो गए हों.

ये भी उम्मीद जताई जा रही है कि मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम की मदद से राहत और बचावकर्मियों को भी सुरक्षित रखा जा सकता. उन्हें कमज़ोर इमारातों से दूर रखा जा सकता है.

अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मशीन लर्निंग के सहारे मुख्य भूकंप के बाद लगने वाले झटकों के पैटर्न पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

प्रोफ़ेसर मैरोन कहते हैं, “हमें इस बात की अब अच्छी समझ है कि मुख्य भूकंप के बाद आने वाले झटके के दौरान या पहले क्या होता है. लेकिन ये मुकम्मल समझ नहीं है. वैज्ञानिकों को ये पता है कि छोटे झटकों के बाद कैसे बड़ा भूकंप आ सकता है लेकिन इसमें अनिश्चितता तो हमेशा रहेगी ही.”

Compiled: up18 News