22 जुलाई 1947 के ही दिन तिरंगे को मिली थी राष्‍ट्रीय ध्‍वज की उपाधि

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जिस तिरंगे को देखकर हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। जिस तिरंगे से भारत का मान बढ़ता है और जिस तिरंगे में लिपटने के लिए न जाने कितने ही भारत माता के सपूतों ने अपने प्राण न्‍यौछावर कर दिए। उसे आज के ही दिन यानि 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा से राष्‍ट्रीय ध्‍वज की उपाधि मिली थी।

विशेषज्ञों के अनुसार यह ध्वज भारत की स्वतंत्रता के संग्राम काल में बनाया गया था। वर्ष 1857 में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत राष्ट्र का ध्वज बनाने की योजना बनाई गई थी मगर वह आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया था और उसके साथ ही वह योजना भी बीच में ही अटक गई। वर्तमान में पहुंचने से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अनेक पड़ावों से गुजरा है। इस विकास में यह भारत में राजनैतिक विकास का परिचायक भी बन गया।

सामान्‍य से तिरंगा बनने का यूं चला ऐतिहासिक चक्र

प्रथम ध्‍वज को 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया। 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। इस झंडे को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चांद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वंदेमातरम लिखा हुआ था।

बताते हैं कि दूसरे ध्‍वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ विशेषज्ञों की मान्यता अनुसार यह 1905 में हुआ था। यह भी पहले ध्वज के समान था। इसके सिवाय कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित भी किया गया था।

1917 में भारतीय राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया और डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के वर्णन में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक बना था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी बना हुआ था।
कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया ने एक झंडा बनाया (चौथा चित्र) और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता था। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।

वर्ष 1931 तिरंगे के इतिहास में एक स्मरणीय वर्ष है। तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।

22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।

पूर्व सांसद एंव उद्योगपति ने दिलाया भारतीय नागरिकों को अनोखा अधिकार

हिसार के उद्योगपति एवं पूर्व सांसद नवीन जिन्‍दल चाहते थे कि तिरंगे को जब मन करे तब फहरा लिया जाए। अमेरिका में पढ़ाई करते हुए जब नवीन जिन्‍दल ने अमेरिकियों के आत्मानुशासन, देश के प्रति उनके प्रेम और राष्ट्रध्वज के प्रति लगाव को देख वे लोकतंत्र के मंदिर भारत में भी इस परंपरा को शुरू करने का संकल्प कर बैठे। अमेरिकी अपने झंडे को हर दिन सम्मानपूर्वक घर, दफ्तर कहीं भी फहराते थे मगर भारत में ऐसा नहीं था, ऐसा किसी विशेष अवसर पर ही किया जा सकता था। नवीन जिन्दल ने अमेरिका में रहते हुए ही संकल्प ले लिया था कि वह भारत में हो रहे बदलाव के साथी बनेंगे और भारतीयों में देशप्रेम की लौ जलाएंगे। वहां से लौटने के बाद बिलासपुर के तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने जिन्दल को उनकी रायगढ़ स्थित फैक्टरी में नियमित रूप से तिरंगा फहराने से साफ मना कर दिया। यही वह वक्त था जब जिन्दल ने तिरंगा को सरकारी तंत्र से आजाद कराने का संकल्प लिया।

कोर्ट का खटखटाया दरवाजा, नौ साल लड़ी लड़ाई

घर, कपड़ों या कहीं पर भी तिरंगा लगाने की स्‍वीकृति के लिए नवीन जिंदल 1995 में दिल्ली हाईकोर्ट गए मगर फैसले के इंतजार में नौ साल बीत गए। 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट से विजय पताका लहराते हुए पूरे देश में छा गए। इसके बाद जन-जन तक देशभक्ति की भावना पहुंचाने के लिए शुरू हुई नवीन जिन्दल की तिरंगा यात्रा, जो अनवरत जारी है। बता दें कि पहले कोई भी व्यक्ति तिरंगा टोपी नहीं पहन सकता था, अपने कपड़ों पर लैपल पिन या किसी अन्य रूप में तिरंगे का उपयोग नहीं कर सकता था। जिंदल के प्रयास से इसकी छूट मिल गई।

प्रकाश का हो समुचित प्रबंध तो रात में फहरा सकते हैं तिरंगा

पहले रात में तिरंगा फहराना तो पूरी तरह वर्जित था लेकिन नवीन जिन्दल के अथक प्रयासों के कारण ये बाधाएं समाप्त हो गईं। दिसंबर 2009 में गृह मंत्रालय ने रात में तिरंगा फहराने के उनके प्रस्ताव पर सशर्त सहमति दे दी। मंत्रालय ने कहा कि जहां समुचित रोशनी की व्यवस्था हो, वहां इमारत या विशाल खंभे पर तिरंगा रात में भी फहराया जा सकता है। इसके लिए जिन्दल ने 100 फुट और 207 फुट के 72 कीर्ति ध्वज स्तंभ पूरे देश में लगवाए हैं । इसके बाद 2010 में जिन्दल ने लोकसभा अध्यक्ष को सहमत कर लिया कि कोई भी सांसद संसद भवन में लैपल पिन के माध्यम से तिरंगा लगाकर अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन कर सकता है।

देश में लहरा रहे 400 से अधिक विशालकाय तिरंगा

देश में 400 से अधिक विशालकाय तिरंगा लहर-फहर कर देशभक्ति की गंगा बहा रहे हैं, जो अपने-आप में अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड है। किसी भी देश में इतने विशालकाय ध्वजदंड नहीं लगाए गए हैं जितने कि भारत में । इनमें से 72 अकेले फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने लगाए हैं। इस कार्य में उपाध्यक्ष के शालू जिन्दल हाथ बंटा रही हैं। पूर्व सांसद नवीन जिंदल ने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारे गणतंत्रीय स्वाभिमान की पताका है जिसमें हमें अपने संविधान के आदर्शों के दर्शन होते हैं।

-एजेंसियां