क्या कुत्तों की कुछ नस्लों में हुआंने या रोने की आदत दूसरों से ज्यादा होती है

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इस सवाल ने जवाबों की खोज को जन्म दिया और एक शोध किया गया जिसमें बुडापेस्ट की इयोटवोस यूनिवर्सिटी में काम करने वाली फानी लियोच्की ने इस बात पर अध्ययन किया क्या कुत्तों की कुछ नस्लों में हुआंने या रोने की आदत दूसरों से ज्यादा होती है और क्या इसका संबंध उनकी भेड़िया प्रजाति से करीबी से भी है.

कैसे हुआ अध्ययन?

लियोच्की और उनकी टीम ने इस बात पर अध्ययन किया कि किसी कुत्ते की नस्ल, उम्र और लिंग का उनके हुआंने पर कितना असर होता है. इसके लिए 68 पालतू कुत्तों के व्यवहार और अन्य चीजों का अध्ययन किया गया. इसके लिए एक अनूठा तरीका अपनाया गया. सभी कुत्तों के सामने एक वीडियो चलाया गया. तीन मिनट लंबे इस वीडियो में अन्य कुत्ते हुआं रहे थे.

इस अध्ययन में 28 अलग-अलग नस्लों के कुत्ते थे. इनमें शीबा इनू, साइबेरियन हस्की और अलास्कन मालाम्यूट जैसी प्राचीन नस्लों से लेकर पेकिंगीज, बॉक्सर और बुल टेरियर्स तक शामिल थे.

लियोच्की बताती हैं, “मुख्य निष्कर्ष तो यह निकला कि जो नस्लें जेनेटिक आधार पर भेड़ियों के ज्यादा करीब हैं, उनके हुआंने का जवाब देने की संभावना ज्यादा होती है. अन्य कुत्तों के मुकाबले उनमें आपदा के संकेत देने की संभावना भी ज्यादा होती है.” हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अध्ययन सिर्फ पांच साल से अधिक उम्र के कुत्तों पर ही हुआ है.

बदल गए हैं कुत्ते

इससे कम उम्र के कुत्तों में नस्ल का फर्क नहीं था इसलिए उनके बारे में अभी जानकारी ज्यादा नहीं है और शोधकर्ता इस पहलू पर काम कर रहे हैं.

ज्यादा उम्र और ज्यादा पुरानी नस्लों के कुत्तों के हुआंने की अवधि भी ज्यादा होती है और उनके व्यवहार में तनाव के संकेत भी ज्यादा होते हैं. आधुनिक नस्लों के कुत्ते हुआंने के बजाय भौंक कर जवाब ज्यादा देते हैं. तनाव के संकेत जैसे कि उबासी, शरीर को हिलाकर झाड़ना, मुंह चाटना और खुजलाना जैसी गतिविधियां हुआंने वाले कुत्तों में ज्यादा दिखाई देती हैं.

यह अध्ययन खासतौर पर कुत्तों के हुआंने पर केंद्रित थी. रिपोर्ट कहती है, “इंसान द्वारा कुत्तों को पालतू बनाने और चुनिंदा रूप से उनकी नस्लों को विकसित करने का कुत्तों के व्यवहार पर मूलभूत असर हुआ है.”

Coutsey: DWHindi