जानिए…क्या है काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट 1983, जिसका सहारा लेने की मुस्लिम पक्षकारों ने की कोशिश

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क्या है काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत 13 अक्टूबर 1983 को काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट को लागू किया गया। यूपी विधानमंडल की ओर से पास इस एक्ट को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद एक्ट को प्रभावी किया गया। यह वर्ष 1983 के एक्ट संख्या 29 के रूप में भी जाना जाता है। इस एक्ट के जरिए काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके विन्यास के समुचित एवं बेहतर प्रशासन की व्यवस्था की गई है। साथ ही, मंदिर से संबद्ध या अनुषांगिक विषयों की व्यवस्था भी की गई है। इस अधिनियम में 13 जनवरी 1984, 5 दिसंबर 1986, 2 फरवरी 1987, 6 अक्टूबर 1989, 16 अगस्त 1997, 13 मार्च 2003 और 28 मार्च 2013 को संशोधन भी हुए हैं।

अधिनियम के प्रभाव की विस्तार से व्याख्या की गई है। एक्ट की धारा या उप धारा में निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही बदलाव या संशोधन किया जा सकता है। इस एक्ट का प्रभाव किसी अन्य नियम, प्रथा, रूढ़ि या विधि के प्रभावी होने के बाद भी बना रहेगा। किसी कोर्ट के निर्णय, डिग्री या आदेश या फिर किसी कोर्ट की ओर से निश्चित की गई किसी योजना में मंदिर से संबंधित कोई बात होने के बाद भी काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट प्रभावी रहेगा। डीड या डॉक्यूमेंट के सामने आने के बाद भी इस एक्ट को प्रभावित नहीं किए जाने की बात कही गई है।

मुस्लिम पक्ष की ओर से दी गई दलील में एक्ट की धारा 3 का जिक्र किया गया। इसमें साफ है कि एक्ट के अधीन कार्य करने वाले हिंदू होंगे। चूंकि, हिंदू पक्ष का दावा है कि देवी श्रृंगार गौरी की प्रतिमा का दावा ज्ञानवापी परिसर में किया जा रहा है। ऐसे में इस पर हिंदू पक्ष किस प्रकार दावा कर सकता है। एक्ट की धारा 3 में साफ किया गया है कि न्यास परिषद, कार्यपालक समिति के सदस्य, मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मंदिर के कर्मचारी का हिंदू होना जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति हिंदू न रहे, यानी धर्म परिवर्तन कर ले तो उसे पद से हटा दिया जाएगा।

एक्ट में स्थायी व अस्थायी संपत्ति का जिक्र

एक्ट की धारा 5 में मंदिर की संपत्ति का जिक्र किया गया है। इसमें मंदिर में पूजा-पाठ, सेवा, कर्मकांड, समारोह या धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन को लेकर फीस या दान का जिक्र किया गया है। साथ ही, मंदिर में प्रतिष्ठित देवताओं की प्रतिमा, मंदिर परिसर, मंदिर सीमा के भीतर किसी भी व्यक्ति की ओर से किए जाने जाने वाले दान पर एक्ट के तहत मंदिर प्रबंधन का अधिकार होने की बात कही गई है। देवी श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए वर्ष 1993 से साल में दो बार खोला जा रहा है।

मंदिर की संपत्ति पर कब्जे का है अधिकार

एक्ट के तहत मंदिर की संपत्ति पर न्यास परिषद को संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई है। एक्ट की धारा 13 की उपधारा 1 में साफ किया गया है कि मंदिर और उसके विन्यास, मंदिर के तहत आने वाली चल और अचल संपत्ति, द्रव्य (पैसे), मूल्यवान वस्तु, आभूषण, अभिलेख, दस्तावेज, भौतिक पदार्थ पर न्याय परिषद का अधिकार रहेगा। न्यास परिषद मंदिर के तहत आने वाली अन्य संपत्तियों को कब्जे में लेने और रखने की हकदार होगी।

धारा 13 की उप धारा 2 के तहत प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति मंदिर की संपत्ति को अपने अधीन नहीं रख सकता है। अगर किसी भी व्यक्ति के कब्जे में, अभिरक्षा में या नियंत्रण में मंदिर की कोई संपत्ति है तो उसे मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के समक्ष पेश करना होगा। इसमें चल और अचल दोनों संपत्ति का जिक्र है।

मंदिर संपत्ति पर कब्जा को लेकर है दंड का प्रावधान

मंदिर की संपत्ति को लेकर ऐक्ट की धारा 13 की उप धारा 2 में विशेष रूप से जानकारी दी गई है। एक्ट के अध्याय 6 की धारा 34 में साफ किया गया है कि कोई भी इसका उल्लंघन करता तो उसके खिलाफ दंड का प्रावधान है। इस एक्ट के तहत न्यास परिषद या मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की ओर से या प्राधिकार के अधीन कब्जा लिए जाने में कोई प्रतिरोध या अवरोध उत्पन्न करता है। ऐसी कार्रवाई करने वालों को जेल भेजा जा सकता है। इस प्रकार के मामलों में एक साल तक की कैद का प्रावधान है। इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

ज्ञानवापी मामले में बना आधार

ज्ञानवापी केस में जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से अपनी दलील में काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट का जिक्र किया गया तो हिंदू पक्ष की ओर से इस पर आवाज उठने लगी है। वाराणसी कोर्ट के वकीलों का कहना है कि एक्ट को ही आधार मानें और साक्ष्यों को देखें तो ज्ञानवापी परिसर काशी विश्वनाथ मंदिर के दायरे में आता है।

वजुखाने में शिवलिंग और माता श्रृंगार गौरी इसका उदाहरण हैं। एक्ट की धारा 13 की उप धारा 2 के तहत इस संपत्ति को अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी को काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ के समक्ष पेश कर देना चाहिए।

इन एक्ट की भी हुई चर्चा

मस्जिद परिसर में देवी श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार के मामले में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने दो अन्य एक्ट की भी चर्चा की थी। आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991: 1991 में जब राम मंदिर आंदोलन और राम मंदिर को लेकर पूरे देश में विवाद चरम पर था। उस समय इस एक्ट की जरूरत दिखी। तत्कालीन पीएम पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार की ओर से देश की संसद में इस एक्ट को पेश किया गया।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है। राम मंदिर आंदोलन के काल में कई पूजा स्थलों के स्वरूप को बदलने की कोशिश हुई थी। ऐसे में इस कानून की मदद से उस पर काबू पाया गया।

एक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान किया गया। कहा गया है कि अगर कोई भी इसके उल्लंघन का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। इस कानून के सबडिवीजन भी हैं।

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां पर मुस्लिम समुदाय दशकों से नमाज पढ़ रहा है इसलिए ये याचिका सुनवाई योग्य है ही नहीं। अगर ऐसा हुआ तो वो प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन होगा।

वक्फ बोर्ड ऐक्ट 1985: वक्फ बोर्ड एक्ट के आधार पर भी मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला जज से हिंदू महिलाओं महिलाओं की अपील खारिज करने की मांग की थी। इस कानून में कहा गया है कि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। इस स्थिति में कोई भी लीगल प्रोसिडिंग सेंट्रल वक्फ ट्रिब्यूनल बोर्ड लखनऊ ही कर सकता है। मतलब मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद परिसर को अपनी संपत्ति बनाते हुए दलील दी। अंजुमन इंतेजामिया कमेटी का कहना था कि इस मामले की सुनवाई हो ही नहीं सकती है। उनका कहना था कि यह वक्फ बोर्ड का मामला है।

इस पर वाराणसी जिला जज ने कहा कि याचिका दायर करने वाली महिलाएं मुस्लिम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मां श्रृंगार गौरी स्थल में पूजा अर्चना करने का अधिकार वक्फ बोर्ड कानून में कवर नहीं होता। इस आधार पर कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया।

-एजेंसी