क्या होता है जांच एजेंसियों के छापे में मिली रकम और संपत्ति का, जानिए पूरी प्रक्रिया

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ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को मनी लॉन्ड्रिंग, इनकम टैक्स फ्रॉड या अन्य आपराधिक गतिविधियों में जांच, पूछताछ, छापेमारी करने और चल-अचल संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार होता है।

ये एजेंसियां जब्त पैसे को अपनी कस्टडी में लेती हैं और फिर अदालत के आदेश से या तो उस पैसे को आरोपी को वापस कर दिया जाता है या फिर वो सरकार की संपत्ति बन जाता है।

कई चरणों में होती है पूरी प्रक्रिया 

केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे-ED, CBI और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को किसी मामले की जांच के लिए छापा मारने का अधिकार होता है। इन एजेंसियों को जांच करने का जो अधिकार होता है, उसके दो हिस्से होते हैं- एक गिरफ्तारी और पूछताछ और दूसरा उससे संबंधित सबूत इकट्ठा करने के लिए छापेमारी।

जांच एजेंसिया जो छापे मारती हैं वो अलग-अलग सूचनाओं पर आधारित होती हैं, इसलिए जरूरी नहीं है कि एक आरोपी के यहां एक ही बार छापा मारा जाए बल्कि छापेमारी कई चरणों में हो सकती है।

ED को PMLA के तहत मिलता है संपत्ति जब्त करने का अधिकार

अगर ED की बात करें तो उसे प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 यानी PMLA 2002 के तहत, अगर कस्टम डिपार्टमेंट है तो कस्टम एक्ट के तहत और अगर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट है तो उसे इनकम टैक्स एक्ट के तहत संपत्ति जब्त करने का अधिकार होता है।

जांच एजेंसी जिस कानून के तहत काम करती है, उसी के तहत उसे छापा मारने, जब्त करने और जब्त सामान को मालखाने या भंडारघर में जमा करने का अधिकार होता है।

जब्त किए गए सामान का पंचनामा बनाती है ED

छापे में कई चीजें बरामद हो सकती हैं- इनमें पेपर डॉक्यूमेंट्स, कैश और अन्य कीमती सामान जैसे सोने-चांदी के गहने मिल सकते हैं। छापेमारी में जब्त की गई चीजों का पंचनामा बनाया जाता है। पंचनामा जांच एजेंसी का IO यानी जांच अधिकारी बनाता है। पंचनामे पर दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं। साथ ही इस पर जिस व्यक्ति का सामान जब्त होता है, उसके भी हस्ताक्षर होते हैं। पंचनामा बनने के बाद जब्ती का सामान केस प्रॉपर्टी बन जाता है।

ED जो कैश, गहने और संपत्ति जब्त करती है, उसका क्या होता है?

कैश

सबसे पहले जब्त किए गए पैसे या कैश का पंचनामा बनाया जाता है। पंचनामे में इस बात का जिक्र होता है कि कुल कितने पैसे बरामद हुए, कितनी गड्डियां हैं, कितने 200, 500 और अन्य नोट हैं।

जब्त किए गए कैश में अगर नोट पर किसी तरह के निशान हों या कुछ लिखा हो या लिफाफे में हो तो उसे जांच एजेंसी अपने पास जमा कर लेती है, जिससे इसे कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया जा सके।

बाकी पैसों को बैंकों में जमा कर दिया जाता है। जांच एजेंसिया जब्त किए गए पैसों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया या स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में केंद्र सरकार के खाते में जमा करा देती हैं।

कई बार कुछ पैसों को रखने की जरूरत होती है, तो उसे जांच एजेंसी इंटरनल ऑर्डर से केस की सुनवाई पूरी होने तक अपने पास जमा रखती है।

प्रॉपर्टी

ED के पास PMLA के सेक्शन 5 (1) के तहत संपत्ति को अटैच करने का अधिकार है। अदालत में संपत्ति की जब्ती साबित होने पर इस संपत्ति को PMLA के सेक्शन 9 के तहत सरकार कब्जे में ले लेती है

जब ED किसी की प्रॉपर्टी को अटैच करती है, तो उस पर बोर्ड लगा दिया जाता है, जिस पर लिखा होता है इस संपत्ति की खरीद-बिक्री या इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता है। हालांकि कई मामलों में घर और कॉमर्शियल प्रॉपर्टी को अटैच किए जाने पर उनके इस्तेमाल को लेकर छूट भी है।

ED 180 दिनों के लिए अटैच कर सकती है प्रॉपर्टी

PMLA के तहत ED अधिकतम 180 दिन यानी 6 महीने के लिए किसी संपत्ति को अटैच कर सकती है।

अगर तब तक ED संपत्ति अटैच करने को अदालत में वैध नहीं ठहरा पाती है तो 180 दिन बाद संपत्ति खुद ही रिलीज हो जाएगी, यानी वो अटैच नहीं रह जाएगी।

अगर ED 180 दिनों के अंदर प्रॉपर्टी अटैच करने को अदालत में सही साबित कर देती है तो संपत्ति पर सरकार का कब्जा हो जाता है। इसके बाद आरोपी को ED की इस कार्रवाई के खिलाफ ऊपर की अदालतों में अपील करने के लिए 45 दिन का समय मिलता है।

कॉमर्शियल प्रॉपर्टी अटैच होने के बावजूद काम कर सकती है 

ED के किसी संपत्ति को तात्कालिक जब्ती या प्रोविजनल अटैचमेंट करने से वह सील नहीं हो जाती है।
कई बार ऐसा भी होता है कि ED जिस संपत्ति को अटैच करती है, उस मामले की अदालत में सुनवाई जारी रहने के दौरान आरोपी उस संपत्ति का उपयोग कर सकता है।
उदाहरण के लिए 2018 में ED ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के दिल्ली स्थित जोरबाग के बंगले का 50% हिस्सा अटैच कर दिया था, लेकिन उस प्रॉपर्टी को खाली करने का कोर्ट का नोटिस मिलने तक उनका परिवार वहीं रह रहा था। चिदंबरम के बेटे कार्ति ने इस नोटिस के खिलाफ भी कानूनी राहत ले ली थी।

कॉमर्शियल प्रतिष्ठान ED के प्रॉपर्टी अटैच किए जाने के बाद भी बंद नहीं होते हैं। जैसे-दुकानें, मॉल, रेस्टोरेंट, होटल जैसी कॉमर्शियल प्रॉपर्टीज को भले ही ED ने अटैच कर दिया हो, लेकिन इसके बावजूद अदालत का फैसला आने तक वह काम करना जारी रख सकते हैं।

2018 में ED ने एअर इंडिया से जुड़े केस में दिल्ली के IGI एयरपोर्ट पर स्थित Inn होटल को अटैच कर दिया था, लेकिन होटल ने फिर भी बुकिंग करना जारी रखा था।

गहने

जांच एजेंसी अगर सोना-चांदी, गहने और अन्य कीमती सामान बरामद करती हैं, तो उसका भी पंचनामा बनता है।

पंचनामे में इस बात की पूरी जानकारी होती है कि-उसे कितना सोना या कितने गहने या कितना कीमती सामान बरामद हुआ।

विराग बताते हैं कि सोने-चांदी के गहने और अन्य कीमती सामान को जब्त करके सरकारी मालखाने या भंडारघर में जमा कराया जाता है।

संपत्ति किसकी होगी, अदालत करती है आखिरी फैसला

कैश हो या गहने या प्रॉपर्टी, जब्त किए गए सामान पर आखिरी फैसला कोर्ट करती है। मुकदमा शुरू होने पर जब्त किए गए सामान को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किया जाता है।

अगर अदालत जब्ती का आदेश देती है तो पूरी संपत्ति पर सरकार का कब्जा हो जाता है। अगर ED कोर्ट में जब्ती की कार्रवाई को सही नहीं साबित कर पाती तो संपत्ति संबंधित व्यक्ति को लौटा दी जाती है।

जब्ती को अदालत में चुनौती दिए जाने पर या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अगर अपीलकर्ता जब्त किए गए सामान को लीगल साबित कर देता है तो उसे जब्त किया गया सारा सामान वापस मिल जाता है।

कई बार कोर्ट जिसकी संपत्ति है, उस पर कुछ फाइन लगाकर भी उसे संपत्ति लौटाने का मौका देती है।

जांच एजेंसियां प्रशासनिक आदेश से ही संपत्ति को अटैच करती हैं और फिर कोर्ट के ऑर्डर से वो सरकार की हो जाती है या जिसकी संपत्ति जब्त की गई है, उसे लौटा दी जाती है।

साभार- सुमित्रा सिंह चतुर्वेदी