क्या सिंथेटिक फ़्यूल भविष्य में डीज़ल-पेट्रोल की जगह ले सकता है?

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ब्रितानी रॉयल एयरफोर्स के एक पायलट के हाथ में इस प्लेन का कंट्रोल था और छोटे से सफ़र में उन्होंने गिनीज़ रिकॉर्ड स्थापित किया.

ये दुनिया की पहली ऐसी उड़ान थी जिसमें पूरी तरह से सिंथेटिक ऑयल का इस्तेमाल किया गया था. ब्रिटेन की एक कंपनी ज़ीरो पेट्रोलियम ने इस फ़्यूल को तैयार किया था.

ज़ीरो पेट्रोलियम के अलावा दुनिया के दूसरे हिस्सों में ऐसी और भी कंपनियां हैं जो सिंथेटिक फ़्यूल्स के विकास पर काम कर रही हैं और इन्हें ई-फ़्यूल्स के नाम से भी जाना जा रहा है.

स्पेन के बिलबाओ से लेकर अमेरिका के नेवाडा रेगिस्तान और चिली के दक्षिणी इलाके में सिंथेटिक फ़्यूल पर काम चल रहा है. सिंथेटिक फ़्यूल को लेकर ऐसे वक़्त में दिलचस्पी बढ़ रही है जब पारंपरिक ईंधन की जगह पर नए विकल्पों की तलाश हो रही है. इसे लेकर अतीत में पहले कभी ऐसी जल्दबाज़ी नहीं देखी गई थी.

संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की समिति आईपीसीसी के मुताबिक़ धरती का तापमान औद्योगिक युग से पहले के टेम्प्रेचर की तुलना में डेढ़ डिग्री सेंटीग्रेड से ज़्यादा न बढ़ पाए, ये सुनिश्चित करने के लिए फ़ॉसिल फ़्यूल (जीवाश्म ईंधन) की खपत से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को साल 2030 तक 45 फ़ीसदी कम किए जाने की ज़रूरत है.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने इस साल बार-बार अपने संदेशों में कहा है कि “हम जलवायु परिवर्तन के मामले में आपदा की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं.”

गुटारेस ने इस ओर भी ध्यान दिलाया था कि ग़ैर पारंपरिक ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ने से जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाले लाखों लोगों की उम्मीदें बढ़ेंगी.

क्या सिंथेटिक फ़्यूल जलवायु परिवर्तन का समाधान हो सकता है?

रासायनिक रूप से सिंथेटिक फ़्यूल और फ़ॉसिल फ़्यूल (जीवाश्म ईंधन) एक ही चीज़ हैं. दोनों तरह के ईंधन हाइड्रोकार्बन ही हैं. कार्लोस काल्वो अंबेल, ब्रसेल्स में एक ग़ैर सरकारी संगठन ‘ट्रांसपोर्ट एंड एन्वॉयरोमेंट’ के यातायात और ऊर्जा मामलों के एक्सपर्ट हैं.

“हाइड्रोकार्बन एक अणु होता है जो हाइड्रोजन और कार्बन से मिलकर बनता है. आम तौर पर होता ये है कि धरती से तेल निकाला जाता है, उसे रिफाइन किया जाता है और इस प्रक्रिया से हमें पेट्रोल, डीज़ल और केरोसिन प्राप्त होता है.”

दूसरी तरफ़, सिंथेटिक फ़्यूल के मामले में हाइड्रोजन और कार्बन दूसरे स्रोतों से लिया जाता है. उदाहरण के लिए पानी के अणुओं को उसके घटकों हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़कर हाइड्रोजन प्राप्त किया जाता है.

इस प्रक्रिया में बिजली का इस्तेमाल होता है और विज्ञान की भाषा में इसे वाटर इलेक्ट्रोलिसिस कहते हैं.

कार्लोस काल्वो अंबेल कहते हैं, “आप पानी के अणुओं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़कर देखें और हाइड्रोजन रख लें. दूसरी चीज़ कार्बन की ज़रूरत पड़ती है जो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है.”

उन्होंने बताया, “आप इसे कार्बन डायक्साइड का उत्सर्जन करने वाले किसी कारखाने की चिमनी से भी हासिल कर सकते हैं या फिर ये सीधे हवा से भी लिया जा सकता है. आप कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बन और ऑक्सीजन में तोड़ दें तो आपको कार्बन मिल जाएगा.”

इसके बाद एक हाइड्रोकार्बन चेन की मदद से हाइड्रोजन और कार्बन को मिलाया जा सकता है और इसका औद्योगिक रूप से उत्पादन संभव है. कार्लोस काल्वो अंबेल कहते हैं, “इसलिए कृत्रिम रूप से आप वो अणु तैयार कर सकते हैं जो पारंपरिक डीज़ल, पेट्रोल या केरोसिन जैसा ही होगा.”

सिंथेटिक फ़्यूल पर्यावरण के लिए कितने अनुकूल हैं?

कार्लोस कहते हैं, “सिंथेटिक फ़्यूल लंबे समय तक काम कर सके, इसके लिए ज़रूरी है कि पूरी प्रक्रिया में जो बिजली इस्तेमाल की जाए वो रीन्यूएबल इलेक्ट्रिसिटी हो. अगर इसमें ग़ैर पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त होने वाली बिजली इस्तेमाल नहीं की गई तो सिंथेटिक फ़्यूल के उत्पादन की प्रक्रिया साफ़-सुथरी नहीं होगी.”

लेकिन पेट्रोल और डीज़ल की तरह ही जब सिंथेटिक फ़्यूल का इस्तेमाल किया जाएगा तो वो कार्बन डाइऑक्साइड गैस रिलीज़ करेगी. क्लाइमेट चेंज को प्रभावित करने वाले ग्रीन हाउस गैसों में से कार्बन डाइऑक्साइड भी एक है.

कार्लोस का कहना है कि इस वजह से सिंथेटिक फ़्यूल तब तक कामयाब नहीं हो पाएगा जब तक कि कार्बन हवा में मौजूद CO2 से न लिया जाए.

वे कहते हैं, “अगर आप सिंथेटिक फ़्यूल जलाकर वापस कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में छोड़ देते हैं तो बात बराबर हो जाएगी और कोई अतिरिक्त प्रदूषण नहीं होगा.”

लंदन के इंपीरियल कॉलेज में इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर निलय शाह ज़ीरो पेट्रोलियम के संस्थापकों में से एक हैं.

उन्होंने बताया कि सिंथेटिक फ़्यूल से उड़ान भरने वाले ब्रितानी रॉयल एयरफोर्स के विमान में इस्तेमाल किया गया ईंधन पूरी तरह से रीन्यूएबल एनर्जी की मदद से तैयार किया गया था.

सिंथेटिक फ़्यूल का फिलहाल कितना उत्पान हो रहा है?

कार्लोस कहते हैं, “इस समय जिस मात्रा में सिंथेटिक फ़्यूल का उत्पादन हो रहा है, वो बहुत थोड़ा है. लेकिन इस प्रक्रिया को तेज़ किया जा सकता है.”

ज़ीरो पेट्रोलियम के अलावा अमेरिकी कंपनी फुलक्रम बायोएनर्जी सिंथेटिक फ़्यूल को विकसित करने पर काम कर रही है. वो नेवाडा की एक रिफ़ाइनरी भी बना रही है.

फुलक्रम बायोएनर्जी के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड हवा से नहीं लिया जाएगा बल्कि म्यूनिसिपल कचरे के अपघटन से निकलने वाले मिथेन से लिया जाएगा.

चिली की एक कंपनी एचआईएफ़ ग्लोबल (हाइली इनोवेटिव फ़्यूल्स) अपने देश के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सिंथेटिक फ़्यूल पर काम कर रही है.

एचआईएफ़ ग्लोबल ने साल 2021 में चिली में ही एक प्लांट पर काम शुरू किया था. कंपनी का कहना है कि ‘हारु ओनी’ नाम के इस प्लांट का काम काफी हद तक पूरा हो चुका है और यहां पर कार्बन न्यूट्रल फ़्यूल (ईफ़्यूल्स) तैयार किए जाएंगे. इस साल के आख़िर तक ई-फ़्यूल्स का उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है.

कंपनी ने बताया, “पानी और कार्बन डाइऑक्साइड के इलेक्ट्रोलाइसिस से हाइड्रोजन पाया जा सकता है. लक्ष्य मिथेनॉल को सिंथेसाइज करने पाया जा सकता है और इससे वर्तमान वाहनों में बग़ैर किसी बदलाव के गैसोलीन का इस्तेमाल किया जा सकता है.”

लक्ष्य है पर्याप्त मात्रा में मौजूद पवन ऊर्जा के इस्तेमाल से सिंथेटिक फ्यूल बनाने का.

दूसरी तरफ स्पेन स्थित ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल मल्टीनैशनल रेपसॉल ने बीबीसी को लिखित जवाब में बताया कि उसने “इस साल मई में सिंथेटिक फ्यूल का एक सबसे बड़ा प्लांट पोर्ट ऑफ बिलबाव में बनाना शुरू किया है.”

“इसमें 10 मेगावाट का इलेक्ट्रोलाइज़र होगा जिससे हर साल विशेष तौर पर हवाई जहाजों, जहाजों और ट्रकों के लिए 2,100 टन फ्यूल का उत्पादन होगा. रेपसॉल की 2024 में अपने सिंथेटिक फ्यूल प्लांट के उद्घाटन की योजना है.”

क्या सिथेंटिक फ्यूल कारों में कारगर होगा?

इंग्लैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर में जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ जेम्स डाइकी का मानना है कि सिंथेटिक फ्यूल ऑटोमोबाइल में उतने कारगर नहीं होंगे.

डाइकी ने कहा, “इस समय हम इलेक्ट्रिक कारों और इसे चार्ज करने के बुनियादी ढांचे में लगातार वृद्धि देख रहे हैं. सड़क परिवहन में बतौर फ्यूल हाइड्रोजन का संभावित किरदार भी है.”

काल्वो अम्बेल के लिए कारों के लिए सिंथेटिक फ्यूल के उत्पादन के कोई मायने नहीं हैं.

वे कहते हैं, “उस बिजली को इलेक्ट्रिक कार में सीधे तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है और उसमें कहीं कोई नुकसान नहीं है.”

“या आप उस बिजली का इस्तेमाल कार्बन डाइऑक्साइड इकट्ठा करने में, हाइड्रोजन उत्पादन में कर सकते हैं, फिर उसे उस तरह के इंजन में इस्तेमाल कर सकते हैं जिसकी क्षमता कम है क्योंकि डीज़ल या गैसोलीन इंजन में ऊर्जा उष्मा के रूप में लुप्त हो जाती है.”

यूरोपीय संसद ने इसी महीने 2035 से कम्बशन इंजन, यानी गैसोलीन और पारंपरिक डीज़ल, के नई कारों में इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.

सिंथेटिक फ्यूल के कारों में इस्तेमाल को बढ़ावा देने के साथ पारंपरिक कारों के उत्पादन, उनकी बिक्री और खपत को यथासंभव लंबे वक़्त तक बनाए रखने की तेल कंपनियों की कोशिश और इसके ज़रिए इलेक्ट्रिक वाहनों के आने में देरी को लेकर कुछ समीक्षक इन कंपनियों की आलोचना करते हैं.

क्या सिंथेटिक फ़्यूल हवाई जहाजों के लिए भी कारगर होंगे?

काल्वो कहते हैं, “परिवहन और पर्यावरण के लिहाज से हमें 2030 तक एयरलाइंस में सिंथेटिक फ्यूल का इस्तेमाल करना शुरू करना होगा, चाहे ये कम से कम एक फ़ीसद ही क्यों न हो, ताकि धीरे धीरे ये तय हो सके कि हम इस दिशा में कहां तक जाएंगे. क्योंकि हम जीवन पर्यन्त केरोसिन का इस्तेमाल तो नहीं कर सकते.”

-एजेंसी