रुद्रप्रयाग का त्रियुगी नारायण मंदिर जहाँ हुआ था शिव-पार्वती का विवाह

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त्रियुगीनारायण मंदिर से जुड़ी कथा 

भगवान शिव की पहली पत्नी का नाम माता सती था। माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा शिव का अपमान किये जाने के कारण अग्नि कुंड में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था। इसके पश्चात शिव ने राजा दक्ष का वध कर दिया था व लंबी योग साधना में चले गए थे।

कई वर्षों के पश्चात पर्वतराज हिमालय के यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ जिनका नाम पार्वती था। पार्वती माता सती का ही पुनर्जन्म था। माता पार्वती ने हजारों वर्षों तक उत्तराखंड के गौरीकुंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।

माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद माता पार्वती ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह सुनकर पार्वती के पिता हिमालायाराज ने विवाह की तैयारियां शुरू कर दी।

त्रियुगीनारायण मंदिर का इतिहास

भगवान शिव के द्वारा पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किये जाने के पश्चात तीनों लोकों में तैयारियां शुरू हो गयी थी। उस समय हिमालय राज की नगरी हिमवत की राजधानी त्रियुगीनारायण गाँव ही था। इसलिए त्रियुगीनारायण गाँव के इस त्रियुगीनारायण मंदिर में दोनों का विवाह करवाने का निर्णय किया गया।
इस विवाह के साक्षी बनने स्वर्ग लोक से सभी देवी-देवता यहाँ पधारे थे। माँ पार्वती के भाई के रूप में भगवान विष्णु ने सभी कर्तव्यों का निर्वहन किया था व विवाह की रस्मों को निभाया था। स्वयं भगवान ब्रह्मा इस विवाह के पुरोहित बने थे और विवाह संपन्न करवाया था।

भगवान शिव व माता पार्वती के द्वारा इस मंदिर में विवाह किये जाने के पश्चात यहाँ की महत्ता बहुत बढ़ गयी थी। एक और मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु का पंचम अवतार भगवान वामन ने भी इसी स्थल पर जन्म लिया था। इसलिए यहाँ भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।

त्रियुगीनारायण मंदिर कहां हैं

यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हैं। इसके लिए भक्तगणों को सबसे पहले सोनप्रयाग पहुंचना पड़ेगा। सोनप्रयाग से मंदिर की दूरी लगभग 12 किलोमीटर के आसपास हैं। इसी मंदिर के पास में गौरीकुंड, केदारनाथ व वासुकी ताल भी स्थित है।

त्रियुगीनारायण मंदिर की सरंचना

मंदिर के प्रत्येक स्थल का भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह से संबंध है। हालाँकि मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी व भूदेवी के साथ विराजमान हैं लेकिन मंदिर के अन्य स्थलों का संबंध शिव-पार्वती के विवाह से हैं।

अखंड धुनी

यह इस मंदिर का मुख्य आकर्षण हैं। इस मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में किया गया था। इस अखंड धुनी के चारों ओर फेरे लगाकर ही भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। यह अग्नि तीन युगों से जल रही हैं जिस कारण इसे त्रियुगी मंदिर अर्थात तीन युगों से जल रही अखंड धुनी कहा जाता हैं।

ब्रह्म कुंड

मंदिर में तीन कुंड स्थित है जिसमें से एक कुंड ब्रह्म कुंड है। मान्यता हैं कि भगवान ब्रह्मा ने विवाह संस्कार शुरू करने से पहले इसी कुंड में स्नान किया था जिसके बाद से इस कुंड का नाम ब्रह्म कुंड पड़ गया था।

विष्णु कुंड

त्रियुगीनारायण मंदिर में स्थित दूसरे कुंड का नाम विष्णु कुंड हैं। इस कुंड में भगवान विष्णु के द्वारा स्नान किया गया था।

रूद्र कुंड

भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह का साक्षी बनने के लिए स्वर्ग लोक से सभी देवी-देवता भी पधारे थे। रूद्र कुंड में उन सभी के द्वारा स्नान किया गया था।

त्रियुगीनारायण मंदिर का स्तंभ

इस मंदिर में एक पतली से डंडी बंधी है। मान्यता हैं कि भगवान शिव को विवाह में एक गाय मिली थी। उस गाय को इसी डंडी से बांधा गया था। यह डंडी आज भी वैसे ही उसी स्थान पर है।

ब्रह्म शिला

मंदिर के सामने जहाँ भगवान शिव व माता पार्वती ने विवाह किया था, उस स्थल को ब्रह्म शिला का नाम दिया गया है।

त्रियुगीनारायण मंदिर की महत्ता

इस मंदिर में विवाह करने वाले जोड़ों का वैवाहिक जीवन हमेशा सुखमय रहता हैं। इसके साथ ही जो लोग यहाँ मंदिर के दर्शन करने आते हैं वे अखंड धुनी की भस्म भी अपने साथ लेकर जाते हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में आई कोई भी बाधा दूर हो जाये और सब कुछ सुख-शांति से हो।

मंदिर में जो रूद्र कुंड हैं उसको लेकर मान्यता हैं कि इसमें स्नान करने से व्यक्ति की संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती हैं। इसलिए कई निस्संतान दंपत्ति यहाँ रुद्रकुंद में स्नान करने भी आते हैं।

-एजेंसी