दरअसल हम नेहरू जी को डिजर्व ही नही करते थे, हमे तो तमाशे दिखाने वाले ही पसंद है..

अन्तर्द्वन्द

अब मुझे समझ में आ गया है कि नेहरू जी बिल्कुल बेकार आदमी थी उन्हे कोई समझ ही नही थी वे फालतू ही बड़े बड़े बांध और खाद के कारखानों को बनाकर उन्हें आधुनिक भारत का मन्दिर बताते रहे, उनका विजन ही गलत था, दरअसल बहुसंख्यक आबादी को इन सब की कोई जरूरत ही नही थी,…..

नेहरू नाहक ही तीसरे विश्वयुद्ध को रोकने के लिए शांति के कबूतर उड़ाते रहे उन्हे पता ही नही था कि 50 साल बाद ऐसा व्यक्ति देश का प्रधान मंत्री बनेगा जो जंगल में चीते छोड़ने को कबूतर छोड़ने से बड़ा काम बताएगा और यहां की जनता उसकी बात पर ताली पीटेगी……..

वो एक दिन काशी विश्वनाथ मन्दिर के पुराने स्वरूप को तोड़कर कॉरिडोर बनवाएगा फिर उज्जैन में महाकाल लोक बनवाएगा दिवाली पर एक दिन केदारनाथ जायेगा अगले दिन बद्रीनाथ और फिर दिवाली की रात अयोध्या में सरयू नदी पर दीपक छोड़ेगा……

साल भर वो देशभर के मंदिरो के दौरे करेगा और नेहरू के बनवाए नकली मंदिरों यानि खाद के कारखानों को, बड़े बड़े उद्योगों को अडानी अम्बानी को बेच देगा …… और जनता उसकी इस बात पर भी उसे महामानव बताएगी……..

दरअसल हम नेहरू को डिजर्व ही नही करते थे हमे शूरू से ऐसा ही मदारी पसंद आते है जो तमाशे दिखाने में उस्ताद है जो तरह तरह के खेल दिखाते है पर अंत में हमारी ही जेब से पैसे निकलवा कर चल देते हैं

-गिरीश मालवीय