संकट में हमें आसुओं ने ही एक दूसरे से जोड़कर रखा था : क़लमकार संजय साग़र

अन्तर्द्वन्द

आगरा। बहुत भारी मन से बताना पड़ रहा है, अब बताने की हिम्मत नहीं रही। हम अपनों को खोते जा रहे हैं, ॐ शांति और विनम्र श्रद्धांजलि देते जा रहे हैं। कितनी हिम्मत जुटायें और कैसे जुटायें, बड़ी बेबसी का दौर है। चाहकर भी काफी कुछ करना संभव नहीं हो पा रहा। प्रभु अपने प्रकोप को अब तो शांत कर दो।

ये आंसुओं का ही दौर चल रहा है। कितने माओं ने इस महामारी में अपने बेटे के लिए आंसू बहाए होंगे, कितने बेटों ने माँ के चले जाने पर, कई मौतें टल सकती थी अगर सुविधा उपलब्ध होती तो। हर दिन आपलोगों में से कई ने सोशल मीडिया पर बेड और एम्बुलेंस तक की किल्लत देखी होगी। एक आंसू ही था जो एक को दूसरे से जोड़ कर रखा था। इस लिए आंसू बहुत बड़ी चीज होती है। अगर इस महामारी से लड़ने में सभी चीजों की व्यवस्था अच्छी तरह से की जाती तो रोना नहीं पड़ता, ना आंसू बहते। लेकिन शर्म की बात है कि इस महामारी में वो यानी दिखावटी लोग किधर भी नजर नही आए। कोविड संकट में लोग एक दूसरे के आंसुओं से मदद पा रहे थे। कई लोगों के लिए आक्सीजन,दवा,बेड, बेंटिलेटर और इलाज़ के लिए पैसे व घर में बच्चों के लिए खाने पीने की जुगाड़ कर रहे थे।

तब वो लोगों के मसीहा बना हमें संकट में अकेला छोड़कर अपने महलों में बंद हो गए कहीं भी नजर नही आए। जब कि हजारों घर अपने चिराग को खो रहे थे तब “वो” भावुक होकर समुचित व्यवस्था नही किए। अब जब लोगों ने अपनों को खो दिया हैं तब टीवी पर आकर हजारों सवालों के जवाब देने के बजाय आँसू बहाकर निकल जायेगे। किसी अपनों का जाना उम्र भर खलता है, उनके लिए बस एक आँसू बहा देना न्याय नही होगा। अक्सर घरों में देखने को मिलता है कि जब गार्जियन रोने लगते है तो महसूस होता है अब सच में कुछ नही होगा यहीं हाल हमारे साथ भी हो रहा है। लोगों को अब उनसे कोई उम्मीद नही है। सिवाय आसुओं और दर्द के। ये आंसू यही कहते है कि हम कमजोर हैं।

जिम्मेदारी अलग चीज है, जिम्मेदारी निभाने वाले व्यक्ति को मैंने ज्यादा रोते हुए नही देखा है। क्योंकि हम भावनाओं में बहने वाले सीधे साधे लोग है। लेकिन अभी समय कुछ और चल रहा हैं। इस समय उस व्यवस्था का रोना जिसपे जिम्मेदारी है हम को कमजोर साबित करती है। यह कैसा विधि का विधान है कि महज अल्प समय में ही दो पीढ़ियां गोलोकवासी हो गयीं। हे ईश्वर कब और कैसे रूकेगा ये अंतहीन सा लगने वाला ‌सिलसिला। बेहद दुखद दौर हैं। प्रभू सब कुछ पहले की तरह जल्दी से जल्द ठीक करें। बहुत याद आएंगे वो लोग … शत शत नमन