कभी मुगल किया करते थे जहाँ आराम आज लोग सुखा रहे अपने कपड़े

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कंझावला से 4 किलोमीटर दूर जौंती गांव 17वीं शताब्दी के मुगलकालीन ऐतिहासिक इमारतों के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि शाहजहां और अकबर यहां शिकार करने के लिए आते थे। इसी इमारत में आराम भी करते थे। इस इमारत को शिकारगाह के नाम से भी जाना जाता है। जानकार बताते हैं कि पहले यहां काफी जंगल थे। धीरे-धीरे आबादी बढ़ने के साथ जंगल भी खत्म होते चले गए। इस ऐतिहासिक इमारत का भी वजूद खत्म होता जा रहा है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले इस गांव में टूरिस्ट भी आते थे, लेकिन इमारतें खंडहर में बदलती जा रही है। इस ऐतिहासिक धरोहर में अब कुछ लोग मवेशियों को बांध रहे हैं। हर तरफ कूड़े का ढेर लगा हुआ है। यहां लोग रस्सियां बांधकर कपड़े भी सुखाते हैं।

कभी सांसद ने भी लिया था इस गांव को गोद

स्थानीय निवासी नरेश जौंती का कहना है कि सरकार की योजना इस गांव को ग्रामीण पर्यटन स्थल के तौर पर स्थापित करने की है लेकिन लंबे अरसे बाद भी यहां कुछ नहीं हो सका। इस गांव को तब के सांसद उदित राज ने आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद भी लिया, फिर भी इस ऐतिहासिक इमारत की सूरत नहीं बदली। गांव के बीच एक मुगलकालीन कुआं भी है, जिसमें अब तक पानी मौजूद है।

कागजों पर ही रहा गांव की सूरत बदलने का प्लान

स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां घूमने-फिरने के साथ ही लोगों को मनोरंजन की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी थीं। इसे लेकर 2018 में आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट ने प्रस्ताव बनाकर दिल्ली सरकार को भेज दिया था। इसके बाद कुछ नहीं हो सका। यहां मुगलकालीन 17वीं शताब्दी की शिकारगाह, किला और तालाब है। विभाग की योजना के मुताबिक शिकारगाह और किले में सुधार कार्य किए जाने थे। इससे जौंती गांव को भी एक पहचान मिलती।

टूरिस्ट प्लेस बनाने का भी था प्लान

जानकारी के मुताबिक यहां तालाब में बोटिंग की सुविधा शुरू की जाएगी। इसके साथ ही मुगलकालीन विरासत की पूरी जानकारी देने के लिए एक्जिबिशन हॉल बनाने की भी योजना है। इस योजना से न सिर्फ मुगलकालीन विरासत संरक्षित होंगी बल्कि पर्यटन का क्षेत्र विकसित होने से जौंती गांव का भी विकास होगा। स्थानीय लोगों की मांग है इस ऐतिहासिक विरासत को बचाए रखने के लिए इसकी मरम्मत बहुत ही जरूरी है। इसके साथ ही इसे फिर से पहले जैसा टूरिस्ट प्लेस बनाने को लेकर पहल करने की जरूरत है।

-एजेंसियां