26 अक्टूबर का दिन देश के ऐतिहासिक और भौगोलिक स्वरूप के निर्धारण में है बहुत खास

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बंटवारे के बाद कश्मीर के डोगरा वंश के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर1947 को अपने राज्य को भारत में मिलाने का फैसला किया था इसलिए 26 अक्टूबर का दिन देश के ऐतिहासिक और भौगोलिक स्वरूप के निर्धारण में बहुत खास है।

इस आशय के समझौते पर हस्ताक्षर होते ही भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर पहुंचकर हमलावर पड़ोसी की सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस लड़ाई में कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।

कश्मीर आज तक दोनों देशों के रिश्तों में तल्खी की वजह बना हुआ है। इस फैसले की 73वीं वर्षगांठ पर आइए इस पूरे घटनाक्रम पर नजर डालते हैं-

जम्‍मू-कश्‍मीर विलय क्‍या है

इंडियन इंडिपेंडेंस एक्‍ट 1947 के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश इंडिया को भारत, पाकिस्‍तान और 580 रियासतों के रूप में आजादी दी थी। जम्‍मू-कश्‍मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह ने भारत या पाकिस्‍तान में विलय न करके आजाद रहने का फैसला लिया लेकिन तुरंत ही कबाइलियों के वेष में पाकिस्‍तानी सेना ने कश्‍मीर पर हमला कर दिया। हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी, भारत ने उनसे कश्‍मीर का भारत में विलय करने को कहा।

इस तरह 26 अक्‍टूबर 1947 को जम्‍मू-कश्‍मीर ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्‍ताक्षर कर दिए। भारत के तत्‍कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने एक दिन बाद यानि 27 अक्‍टूबर को इसे स्‍वीकार किया।

भारत-पाक के बीच इस तरह हुआ विवाद

27 अक्‍टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह को भेजे लेटर में लॉर्ड माउंटबेटन ने लिखा, ‘यह मेरी सरकार की इच्‍छा है कि जम्‍मू-कश्‍मीर में जल्‍द से जल्‍द कानून-व्‍यवस्‍था स्‍थापित हो और राज्‍य की मिट्टी से घुसपैठियों (पाकिस्‍तान) को खदेड़ दिया जाए। इसके बाद जनता की राय पर राज्‍य के विलय के मुद्दे पर फैसला लिया जाए।’

माउंटबेटन की इस टिप्‍पणी और भारत सरकार के कश्‍मीर में जनमत संग्रह कराने के प्रस्‍ताव से जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय पर विवाद खड़ा हो गया। भारत का पक्ष है कि विलय बिना शर्त था वहीं पाकिस्‍तान इसे झूठ बताता रहा। इसी मुद्दे पर दोनों देश विवाद में अभी तक उलझे हैं।

-एजेंसियां