नई संसद भवन का त्रिभुज आकार प्रमुख वास्तु दोष है कहना लोगों की अज्ञानता है: वास्तु गुरु सुनील कुमार आर्यन

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नई संसद भवन सरकार और विपक्ष के बीच एक विवादास्पद मुद्दा बना आ रहा है। यह माना जाता है कि नए भवन का निर्माण इसलिए हुआ है क्योंकि पुराने भवन में “वास्तु दोष” था, लेकिन इसके मुख्य कारण कई और नजर आते हैं पर सर्वाधिक चर्चा का विषय जो रहा वह वास्तु दोष ही था और जिसने संसद सदस्यों के बीच वैमनस्य पैदा किया है और देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न की है। वास्तु नियम अनुसार पुराने संसद भवन के डिजाइन में कई दोष पाए गए जिस कारण मौजूदा भवन में उपचार या एक नए संसद भवन निर्माण का सुझाव दिया!

फॉर्म फॉलो फंक्शन’

आर्किटेक्चर की भाषा में इसका अर्थ है कि किसी भी इमारत के निर्माण का डिजाइन व आकार उसके भीतर होने वाले भावी कार्यों व उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए।

जिस तरह प्रसिद्ध अमेरिकी आर्किटेक्ट ‘लुईस सुलेवान’ के सूत्र को राजस्थान हाईकोर्ट के नए भवन निर्माण में उतारने कोशिश की गई शुद्ध इस सूत्र को अपनाया गया ।

राजस्थान हाईकोर्ट का मुख्य भवन वास्तु के हिसाब से गोल आकार से बनाया गया अधिकारियों का मानना था कि इस तरह के भवन पर वास्तुदोष नहीं लगता। भवन वास्तु के हिसाब से निर्णय जल्दी होंगे यह उम्मीद कि

पर इसके विपरित देश का पुराना संसद भवन भी गोलाकार रहा और इसके वास्तु दोषों की चर्चा समाचार पत्रों में समय-समय पर छपती रही

पर हम वर्तमान के मुख्य विषय पर आते हैं

नई संसद भवन का प्लॉट त्रिभुजाकार है जबकि कुछ वास्तु विद्वानों के अनुसार वास्तुशास्त्र में वर्गाकार या आयताकार प्लॉट / जगह को अति शुभ बताया गया, त्रिकोण आकार के प्लॉट को नहीं। ऐसा कुछ वास्तु विद्वानों का मानना है.

नई संसद भी त्रिकोणाकार की है साथ ही इसके अंदर दो बिल्डिंग एक लोकसभा और दूसरी राज्यसभा के लिए अर्ध वृत्ताकार है और एक षटकोणीय आकार की बिल्डिंग है।
इन तीनों के मध्य में एक त्रिकोणीय आकार की कांस्टीट्यूशन गैलरी भी है।

वास्तु शास्त्र नियमानुसार ग्रहस्थ व्यक्ति और उसकी भौतिक जरूरतों की पूर्ति के लिए त्रिभुजाकार के प्लॉट सही नहीं है और इस पर बने भवन में रहने वाले हमेशा अपने शत्रुओं से परेशान रहेंगे। उन्हीं से निपटने में अपनी ऊर्जा लगाते रहेगें ।

पर यह देश की नई संसद के संदर्भ में बिल्कुल भी सत्य नहीं है उन्हें व्यक्तिगत प्रॉपर्टी और सार्वजनिक प्रॉपर्टी के प्रभाव को समझना होगा

जिस तरह से साधारण मनुष्य पेट रूपी यज्ञ शाला की अग्नि में प्रतिदिन पोस्टिक आहार की आहुति देते हैं और उससे ऊर्जा प्राप्त करते है दूसरी ओर एक साधक लंबे समय तक बिना खाए पिए ध्यान अवस्था में संपूर्ण ऊर्जावान रहता है और सदैव उसका मुख ओजस्वी तेज से भरा रहता है

ठीक उसी तरह से इस त्रिकोणीय और षटकोण , अर्धवृत्त आकार या चंद्राकार से बने संसद रूपी यज्ञशाला में राजनेता सदेव अपने दैनिक कर्म की आहुति देंगे

जिस प्रकार के उनके कर्म रहेंगे उसी तरह से उनको परिणाम मिलेंगे

वास्तुशास्त्र नियम किसी भी इंसान के वर्ण-कर्म अनुसार ही अपनाने चाहिए इसी से उसमें रहने वाले व्यक्ति का जीवन सहज और सुखद होगा जोकि वास्तु ग्रंथों में पहले से अंकित हैं

देश की संसद सार्वजनिक संविधानिक मंदिर है जिसके अंदर नए कानूनों का बनना, बदलाव होना और देश ग्रह स्थिति को सुखद रखने के नियमावली पर कार्य होंगा, इस स्थिति में भागीदारों की शारीरिक और मानसिक ऊर्जा से दी गई आहुति तुरंत भाव से अपना प्रभाव दिखाएगी
इसके लिए यह त्रिभुजाकार की संसद भवन निश्चित ही सकारात्मक प्रभाव देगी साथ ही देश को सुरक्षित रखेगी

जिसका पूर्ण विश्लेषण अभी देने वाला हूं अब चाहे सरकार ने इसके लिए वास्तु विद्वानों से वास्तु सलाह ली है या यूं कहें कि यह भारतवर्ष के लिए ब्रह्मांड की ऊर्जा ओं का आदेश था

एक ग्रहस्थ व्यक्ति के लिए या व्यक्तिगत संपत्ति पर बने किसी भी आकार को प्रथम वर्गाकार और द्वितीय आयताकार में अत्यधिक शुद्ध और सुखद क्यों माना जाता है

इसके लिए आप धर्म शास्त्र के अंतर्गत यज्ञशाला के आगे निम्नलिखित नियमों को ध्यान से पढ़ें और समझें

यज्ञशाला

योनिकुंड – यज्ञ के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला यह कुंड योनि के आकार का होता है। इस कुण्ड कुछ पान के पत्ते के आकार का बनाया जाता है। इस यज्ञ कुंड का एक सिरा अर्द्धचन्द्राकार होता है तथा दूसरा त्रिकोणाकार होता है। इस तरह के कुण्ड का प्रयोग सुन्दर, स्वस्थ, तेजस्वी व वीर पुत्र की प्राप्ति हेतु विशेष रूप से किया जाता है।

2. अर्ध चंद्राकार कुंड – इस कुण्ड का आकर अर्द्धचन्द्राकार रूप में होता है। इस यज्ञ कुंड का प्रयोग पारिवारिक जीवन से जुड़ी तमाम तरह की समस्याओं के निराकरण के लिए किया जाता है। इस यज्ञ कुंड में हवन करने पर साधक को सुखी जीवन का पुण्यफल प्राप्त होता है। परिवार मे सुख शांति हेतु पति-पत्नी दोनों को एक साथ आहुति देनी पड़ती हैं।

3. त्रिकोण कुंड – इस यज्ञ कुंड का निर्माण त्रिभुज के आकार में किया जाता है। इस यज्ञ कुण्ड का विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय पाने और उन्हें परास्त करने के लिए किया जाता है।

4. वृत्त कुंड – वृत्त कुण्ड गोल आकृति लिए हुए होता है। इस कुण्ड का विशेष रूप से जन-कल्याण, देश में सुख-शांति बनाये रखने आदि के लिए किया जाता है। इस प्रकार के यज्ञ कुण्ड का प्रयोग प्राचीन काल में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि किया करते थे।

5. समाष्टास्त्र कुंड – इस प्रकार के अष्टाकार कुण्ड का प्रयोग रोगों के निदान की कामना लिए किया जाता है. सुखी, स्वस्थ्य, सुन्दर और निरोगी बने रहने के लिए ही इस यज्ञ कुण्ड में हवन करने का विधान है।

6. समषडास्त्र कुंड – यह कुण्ड छः कोण लिए हुए होता है। इस प्रकार के यज्ञ कुण्डों का प्रयोग प्राचीन काल में बहुत अधिक होता था। प्राचीन काल में राजा-महाराजा शत्रुओं में वैमनस्यता भाव की समाप्ति को जाग्रत करने और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए इस प्रकार के यज्ञ कुण्डों का प्रयोग करते थे।

7. चतुष्कोणास्त्र कुंड – इस यज्ञ कुण्ड का प्रयोग साधक अपने अपने जीवन में अनुकूलता लाने के लिए विशेष रूप से करता है। इस यज्ञ कुण्ड में यज्ञ करने से व्यक्ति की भौतिक हो अथवा आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति होती है।

8. पद्मकुंड – कमल के फूल के आकार लिए यह यज्ञ कुंड अठारह भागों में विभक्त दिखने के कारण अत्यंत ही सुन्दर दिखाई देता है। इसका प्रयोग तीव्रतम प्रहारों व मारण प्रयोगों से बचने हेतु किया जाता है।

व्यक्तिगत और सार्वजनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रतिदिन इंसान अपने कर्म की आहुति देता है और इसी आधार पर परिवारिक व्यक्ति को अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने घर के लिए चतुष्कोण हवन कुंड के प्रभाव फल देखें ,

इसी नियम आधार पर वर्गाकार प्लॉट व्यक्तिगत प्रॉपर्टी में अधिक महत्व दिया जाता है और दूसरे नंबर पर आयताकार जगह को भी

अब हम बात करते हैं त्रिभुजाकार की नई संसद और उसके अंदर षटकोण और अर्ध वृत्ताकार बनावट की

इसे भी आप इस यज्ञशाला की बनावट और उसके फल आधार पर समझे जोकि ऊपर सभी प्रकार यज्ञशाला की बनावट और फल बताए गए हैं

नई संसद की विशेषता

त्रिकोण के आकार में बनी यह इमारत सत्व रजस और तमस को परिभाषित करते हुए षटकोण का आकार भी लेती है, जो जीवन में षट् रिपू (छः मनोविकार) को दूर करने का संदेश देते हैं. इसके साथ त्रिदेव की झलक भी दिखाई देती है. जब हम इस नई इमारत को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि एक त्रिभुज के साथ एक गोलाकार आकृति भी नजर आती है, जिसे शिव और शक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. जहां त्रिकोण रूप में शिव के त्रिशूल और शिवलिंग की परिकल्पना है, तो वहीं बिंदी के रूप में गोलाकार मां शक्ति की छाया नजर आती है और इन दोनों के मिलन से भगवान कार्तिकेय की उत्पत्ति हुई, जो सभी प्रकार की दुर्भावनाओं को दूर करते हुए शक्ति का संचार करने वाले माने जाते हैं.

ज्ञान, शक्ति और कर्म का संतुलन

ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार के अनुसार ही यह नया संसद भवन यहां काम करने वाले लोगों नौकरशाहों और सांसदों को ज्ञान शक्ति और कर्म का पाठ पढ़ाएगा. कह सकते हैं कुछ बाधाओं को छोड़ दें तो नई संसद आने वाले सालों में भारत की चमकती छवि को पेश करेगी.

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वास्तु गुरु : सुनील कुमार आर्यन
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