फिनलैंड में कीट-पतंगों की संख्या में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. जर्मनी के शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के असर से हो रहे ये बदलाव पौधों के परागण के लिए खतरे की घंटी हो सकते हैं. जर्मनी के हेल्महोल्त्ज सेंटर फॉर इनवायरमेंटल रिसर्च ने एक अध्ययन के बाद यह बात कही है, जो मंगलवार को प्रकाशित हुआ.
कैसे हुआ शोध?
इस शोध दल में हाले विटेनबेर्ग यूनिवर्सिटी और हाले-येना-लाइपजिष सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोडाइवर्सिटी रिसर्च के वैज्ञानिक भी शामिल थे. इन वैज्ञानिकों ने लापलांड के छोटे से इलाके किटिल्या में कीट-पतंगों की गिनती की. फूलों पर बैठने वाले कीट-पतंगों को गिना गया. उसके बाद उन्होंने इस संख्या की 120 साल पहले के आंकड़ों से तुलना की. 120 साल पहले वन में रहने-घूमने वाले लोगों ने यह गिनती की थी. सात फीसदी कीट-पतंगे ऐसे थे जो दोनों की गिनती में शामिल थे.
शोधकर्ता कहते हैं कि दोनों आंकड़ों की तुलना करने पर अब की संख्या हैरतअंगेज रूप से कम मिली. मंडराने वाली मक्खियों और कुछ खास तरह की तितलियों की संख्या खासतौर पर कम मिली. शोधकर्ता कहते हैं कि यह बहुत ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि इन जीवों की परागण में बहुत अहम भूमिका है.
पौधे कम नहीं हुए
एक और परेशान करने वाली बात यह रही कि किन्हीं खास फूलों पर बैठने वाले जीवों की संख्या में बड़ी कमी आई है. यानी ये ऐसे जीव हैं जिन्हें कुछ खास फूलों के परागण की विशेषज्ञता है. इनके कम हो जाने का अर्थ है उन विशेष फूलों और पौधों का परागण कम हो जाना. शोधकर्ता कहते हैं कि कुछ विशेष पौधों पर जाने वाले जीवों की जगह ऐसे जीवों ने ले ली है जो हर पौधे के फूलों पर बैठते हैं. ये उन विशेष पौधों के परागण में उतने प्रभावशाली नहीं हैं.
हाले विटेनबेर्ग यूनिवर्सिटी की लियाना सोलर बताती हैं कि फिलहाल सब ठीकठाक है. वह कहती हैं, “हमारे शोध में पता चला है कि फिर भी अब तक परागण का नेटवर्क ठीकठाक काम कर रहा है. अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि पौधों को पराग कण कम मिल रहे हों और उनकी वृद्धि में कमी आई हो.”
हालांकि सोलर चेताती हैं कि अगर कीटों की आबादी बदलती है तो यह स्थिति भी बदल सकती है क्योंकि एक वक्त ऐसा आ सकता है जबकि पौधे अपने परागण नेटवर्क को हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएंगे.
– एजेंसी