चीन सरकार का पेड मूवमेंट प्रोपेगंडा है कोरोना पर भारतीयों से वीडियो बनवाना

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जो विदेशी चीन में रहते हैं, उनसे ‘चाइना इन माई आइज’ यानी ‘मेरी नजर में चीन’ कैम्पेन के तहत वीडियो बनवाए जाते हैं। ये वीडियो सरकारी मीडिया साइट पीपुल्स डेली पर अपलोड होते हैं। अच्छे वीडियोज को अवॉर्ड दिया जाता है, यानी ये एक तरह का पेड मूवमेंट हैं। यिवू, शेनजेन और गुआंगडोंग में भारत के कारोबारी ज्यादा रहते हैं। यहां काफी स्टूडेंट भी हैं। ज्यादातर वीडियो इन्हीं शहरों में बनाए गए हैं।

सरकार की इमेज सुधारने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी का अभियान

कम्युनिस्ट पार्टी का एक सिस्टम है। अगर सरकार को अपने सपोर्ट में कोई कैम्पेन चलाना होता है तो इसके लिए मौखिक आदेश आता है। निगम पार्षद जैसे पदाधिकारी के जरिए ये बात लोगों तक पहुंचाई जाती है। कोरोना के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। भारतीयों से कहा गया कि वे बताएं कि इंडियन मीडिया में चल रही बातें गलत हैं, चीन में सब ठीक है।

हमने दो शहरों ग्वांगझू और शेनजेन में बनाए दो वीडियो देखे। दोनों में लगभग एक ही बात कही गई। पहली- इंडियन मीडिया गलत बता रहा है कि चीन में कोरोना से रोज 5 हजार मौतें हो रही हैं। और दूसरी- लोग बीमार हैं या कोविड है, लेकिन उतना नहीं, जितना भारत में बताया जा रहा है। हालांकि भास्कर ये वीडियो बनाने के मोटिव पर कोई दावा नहीं करता।

चीन में हर इन्फॉर्मेशन पर निगरानी, नियम तोड़ने पर जेल

चीन के पास प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए पूरा सिस्टम है। हालांकि, चीन से कोई भी इन्फॉर्मेशन दूसरे देश भेजना काफी मुश्किल है। सरकार इसकी निगरानी करती है। इससे बचने के लिए कई लोग वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी VPN जैसे तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसमें भी खतरा बढ़ता जा रहा है। कुछ लोगों को VPN बेचने के लिए जेल जाना पड़ा है और कुछ पर जुर्माना लगाया गया है।

VPN खरीदने के लिए 100 से 200 डॉलर चुकाने होते हैं। अगर ये ब्लॉक हो जाए, तो फिर नया खरीदना पड़ता है। कार्रवाई से बचने के लिए लोग चीनी सोशल मीडिया ऐप के जरिए इन्फॉर्मेशन शेयर नहीं करते। वे आमतौर पर थाईलैंड के लाइन ऐप या वियतनाम के सोशल मीडिया ऐप का इस्तेमाल करते हैं। इन्फॉर्मेशन थाईलैंड या वियतनाम भेजी जाती है और वहां से उसे फॉरवर्ड किया जाता है।

अगर कोई ऐसा करते पकड़ा जाता है कि तो उसे अरेस्ट तक कर लिया जाता है। इसीलिए चीन आने वाले विदेशियों को एंट्री से पहले ही पुलिस एक हफ्ते की ट्रेनिंग देती है, जिसमें बताया जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं।

चीन का इंटरनेट सेंसरशिप सिस्टम ‘ग्रेट फायरवॉल’

चीन में इंटरनेट सेंसरशिप सिस्टम ‘ग्रेट फायरवॉल’ 22 साल से काम कर रहा है। तब मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी ने इंटरनेट कंटेंट कंट्रोल करने, लोगों की पहचान करने, उनका पता लगाने और तुरंत निजी रिकॉर्ड खोजने के लिए सेंसरशिप और निगरानी सिस्टम बनाया था। इसके लिए ‘गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट’ लॉन्च किया गया।

इस फायरवॉल ने सबसे पहले सिर्फ कुछ कम्युनिस्ट विरोधी चीनी वेबसाइटों को ब्लॉक किया। धीरे-धीरे ज्यादातर वेबसाइट ब्लॉक कर दी गईं। जनवरी 2010 में गूगल को चीन छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि उसने सर्च रिजल्ट फिल्टर करने की चीनी सरकार की गुजारिश को नहीं माना था।

जिनपिंग के राज में सेंसरशिप ज्यादा बढ़ी

2012 के आखिर में शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बने। और फिर चीन के सबसे बड़े नेता बन गए। सिविल सोसाइटी और विचारों पर रोक जिनपिंग के राज की पहचान रही है।

नवंबर 2013 में कम्युनिस्ट पार्टी ने डॉक्यूमेंट नंबर 9 जारी किया। इसमें पार्टी के सदस्यों को शासन के खिलाफ ‘सात खतरों’ की तलाश में रहने के लिए कहा गया। इनमें सिविल सोसाइटी और प्रेस की आजादी भी शामिल थी।

धीरे-धीरे चीन में इंटरनेट सर्फिंग का एक्सपीरियंस बदलता गया। संवेदनशील शब्दों और फोटो की लिस्ट बढ़ती गई। आर्टिकल और कमेंट तुरंत हटा दिए गए। सरकार ने ऐसा सिस्टम बनाया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से संवेदनशील शब्दों या वाक्यों की इमेज को स्कैन किया जा सकता है।

ग्रेट फायरवॉल ने ज्यादा से ज्यादा विदेशी वेबसाइट्स को बंद कर दिया। न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट की तरह ट्विटर भी अब चीन में अवेलेबल नहीं है।

स्कूलों में स्टूडेंट मुखबिर, शिकायत पर टीचर्स को ‘सजा’ मिली

सरकार ने हर लेवल पर स्कूलों पर आइडियोलॉजिकल कंट्रोल भी कड़ा किया है। 2019 में जिनपिंग ने देश भर में आइडियोलॉजी और पॉलिटिकल थ्योरी पढ़ाने वाले शिक्षकों से क्लास में ‘गलत विचारों और उनके ट्रेंड्स’ का विरोध करने के लिए कहा था।

अब यूनिवर्सिटी के लेक्चरर अगर किताब के कंटेंट से अलग कुछ पढ़ाते हैं, तो स्टूडेंट मुखबिर इसकी खबर दे देते हैं। ये छात्र लगातार प्रोफेसरों के राजनीतिक विचारों की निगरानी और रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। क्लास में सरकार की आलोचना करने के लिए विदेशी टीचर्स सहित कुछ प्रोफेसरों को सजा दी गई है।

ट्विटर यूज करने पर गिरफ्तारी

सजा का डर दिखाकर अफसरों ने कई मशहूर लेखकों और ह्यूमन राइट्स के लिए काम करने वाले वकीलों को चुप करा दिया। जुलाई 2015 में देशभर में लगभग 300 वकीलों, लीगल एडवाइजर और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट अरेस्ट किए गए थे। उन्हें प्रताड़ित किया गया और कई आज भी जेल में हैं। कुछ ट्विटर यूजर्स को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अकाउंट डिलीट करा दिए गए।

– एजेंसी