मोहिनी एकादशी: इसी दिन भगवान विष्णु ने लिया था मोहिनी रूप

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भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन से निकले अमृत को राक्षसों से बचाने के लिए मोहिनी रूप लिया था। इस बात का जिक्र पद्म, अग्नि, स्कंद, मत्स्य, ब्रह्मांड, और श्रीमद्भागवत महापुराण में किया गया है। इसके अलावा भस्मासुर और व्याघ्रानल असुर को मारने के लिए भी ये अवतार हुआ।

मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से नियम के साथ व्रत रखने से नकारात्मकता दूर होती हैं। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। धन, यश और वैभव बढ़ता है। घर में सुख और शांति रहती है।

विष्णुजी को लेना पड़ा मोहिनी रूप

इसके पीछे एक पौराणिक कथा ये है कि जब देवासुर संग्राम हुआ तो उसमें देवताओं को दैत्यों के राजा बलि ने पराजित करके उनसे स्वर्ग छीन लिया था।

देवराज इंद्र जब भगवान विष्णु के पास समाधान के लिए पहुंचे तब विष्णु भगवान ने उन्हें क्षीरसागर में विविध रत्न होने की जानकारियां दीं साथ ही ये भी बताया कि समुद्र में अमृत भी छुपा हुआ है।

देवराज इंद्र को तब विष्णु भगवान ने देवों और असुरों के लिए समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा था। इंद्र, विष्णु जी का प्रस्ताव लेकर दैत्यराज बलि के पास गए और समुद्र मंथन के लिए उन्हें राजी किया और वे इसके लिए तैयार हो गए। क्षीर सागर में समुद्र मंथन हुआ। जिसमें कुल 14 रत्न मिले।

इनमें धन्वंतरी वैद्य अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इस अमृत को पाने के लिए देवों और असुरों में लड़ाई हुई। उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत देवताओं को पिला दिया, जिससे देवता अमर हुए और संग्राम का अंत हुआ।

जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था उस दिन वैशाख महीने की एकादशी थी। इसलिए इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं।