माघ स्नान से इच्छाओं के अनुसार फल और मोक्ष की होती है प्राप्ति

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वेदों में मानवजाति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए विविध पर्वों का विधान है। पर्व अर्थात धार्मिक कृत्य, त्यौहार, व्रत एवं उत्सव। हिन्दुओं के तीर्थक्षेत्रों के निकट नदी, तालाब, इत्यादि जैसा प्राकृतिक पवित्र जलस्रोत होता है। उसमें स्नान करने का विशेष महत्त्व होता है। माघ स्नान अर्थात माघ मास में पवित्र तीर्थक्षेत्रों में किया जाने वाला स्नान। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य और अन्य सभी देवी-देवता माघ मास में विविध तीर्थ क्षेत्रों में स्नान करते हैं। इस लेख में हम माघ स्नान के विषय में अध्यात्म और शास्त्रीय जानकारी देखेंगे।

1. माघ स्नान की कालावधि

पद्मपुराण एवं ब्रह्मपुराण के अनुसार माघ स्नान का आरंभ भारतीय कालगणना के विक्रम संवत अनुसार पौष शुक्ल पक्ष एकादशी को होता है। माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी को उसकी समाप्ति होती है। आजकल प्रथा अनुसार माघ स्नान का आरंभ पौष पूर्णिमा से होता है । जो माघ पूर्णिमा को समाप्त होता है। अंग्रेजी कालगणना के अनुसार माघ स्नान सामान्यतः जनवरी-फरवरी के बीच होता है। अब समझ लेते हैं।

2. माघ स्नान का महत्त्व

क. माघ स्नान से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है और शरीर निरोगी बनता है।

माघ मास में, जो पवित्र जलस्रोतों में स्नान करता है, उसे एक विशेष आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि, माघ स्नान मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और रोगाणुओं को नष्ट करता है। जिससे उसका शरीर निरोगी हो जाता है।

ख. माघ स्नान से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

भौगोलिक दृष्टि से प्रयाग में गंगा एवं यमुना इन पवित्र नदियों का संगम है । महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि, माघ मास में जो प्रयाग संगमतीर्थ पर अथवा गोदावरी, कावेरी जैसी अन्य पवित्र नदियों में भक्तिभाव से स्नान करते हैं, वे सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।

ग. माघ स्नान से इच्छाओं के अनुसार फल और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पद्मपुराण में बताए अनुसार भगवान श्रीहरि को व्रत, दान और तप से भी उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ मास में किए स्नानमात्र से होती है।

माघ स्नान करनेवाले मनुष्यों पर भगवान विष्णु प्रसन्न रहते हैं। वे उन्हें सुख, सौभाग्य, धन, संतान और मोक्ष प्रदान करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सकामभाव से अर्थात सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करने हेतु माघ स्नान किया जाए, तो उससे इच्छाओं के अनुसार फल की सिद्धि होती है और निष्काम भाव से अर्थात केवल भगवतप्राप्ती हेतु स्नान आदि करने पर वह मोक्षदायक होता है।

3. माघ स्नान हेतु पवित्र जलस्त्रोत

माघ मास में प्रयाग, वाराणसी, नैमिषारण्य, हरिद्वार, नासिक, आदि पवित्र तीर्थक्षेत्रों में विद्यमान जलस्रोतों में स्नान किया जाता है। कन्याकुमारी और रामेश्‍वरम् इन तीर्थक्षेत्रों में किया स्नान भी धर्मशास्त्रानुसार उच्चकोटि का माना जाता है। साथ ही राजस्थान के पुष्कर सरोवर में किया स्नान भी पवित्र है।

इनके अतिरिक्त भारत के विविध राज्यों में अनेक पवित्र तीर्थक्षेत्र हैं। वहां भी लोग दूर दूर से माघ मास में स्नान करने आते है।

4. माघ स्नान के लिए उपयुक्त दिन

संपूर्ण माघ मास में पवित्र जलस्त्रोत में स्नान करने का विधान है परंतु ऐसा करना संभव न हो, तो माघ मास के कोई तीन दिन स्नान करें । प्रयाग तीर्थक्षेत्र में तीन बार स्नान करने का फल दस हजार अश्‍वमेध यज्ञ करने के फल से भी अधिक होता है । यह भी संभव न हो, तो माघ मास के किसी एक दिन तो अवश्य माघ स्नान करना चाहिए।

कुछ विशिष्ट तिथियों पर किया जानेवाला माघ स्नान विशेष फलदायी होता है। वे तिथियां हैं-

1. पौष पूर्णिमा

2. मकरसंक्रांति

3. माघ मास में आनेवाली अमावस्या अर्थात मौनी अमावस्या,

4. माघ शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात बसंत पंचमी,

5. माघी पूर्णिमा और

6. महाशिवरात्री

यहां ध्यान रखनेयोग्य सूत्र यह कि मकरसंक्रांति त्यौहार प्रतिवर्ष माघ मास में नहीं आता। तथा महाशिवरात्री के दिन किया स्नान माघ मास में नहीं आता; किन्तु वे दोनों दिन माघ स्नान में अंतर्भूत किए जाते हैं।

5. माघ स्नान का उचित समय

स्नान का उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व माना जाता है । नारदपुराण के अनुसार, माघ मास में ब्रह्ममुहूर्त में अर्थात प्रातः 3:30 से 4 बजे तक स्नान करने से सभी महापातक दूर हो जाते हैं और प्राजापत्य-यज्ञ का फल प्राप्त होता है। सूर्योदय के पश्‍चात किए स्नान को आध्यात्मिक दृष्टि से अल्प लाभकारी अथवा कनिष्ठ माना जाता है।

6. माघ स्नान के उपरांत सूर्य को अर्घ्य देने का महत्त्व

शास्त्रों में माघ स्नान के उपरांत सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बताया गया है। अर्घ्य देना अर्थात अपनी अंजुली में जल लेकर सूर्यदेव के लिए छोड़ना  पद्मपुराण के अनुसार माघ मास में प्रातः स्नान कर जगत को प्रकाश देनेवाले भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का अनन्य महत्त्व है।

इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान जगदीश्‍वर की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान कर सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य अवश्य प्रदान करना चाहिए। यह मंत्र है…

भास्कराय विद्महे । महद्द्युतिकराय धीमहि ।
तन्नो आदित्य प्रचोदयात ॥

अर्थात: तेज के भंडार सूर्य को हम जानते हैं। अत्यंत तेजस्वी और सभी को प्रकाशमान करनेवाले सूर्य का हम ध्यान करते हैं। वह आदित्य हमारी बुद्धि को सत्प्रेरणा दे।

7. माघ मास में दान का महत्त्व और दान देनेयोग्य वस्तुएं

महाभारत के अनुशासन पर्व में कहां है कि जो माघ मास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जंतुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता । – महाभारत, अनुशासन पर्व

माघ मास में यथाशक्ति गुड, ऊनी वस्त्र, रजाई, जूता और उनके समान जो भी शीत निवारक वस्तुएं हैं, उनका दान कर ‘माधवः प्रीयताम्।’ यह वाक्य कहना चाहिए। ‘माधवः प्रीयताम्’ अर्थात भगवान विष्णु के प्रीति और कृपा हेतु दान करता हूं।

8. यदि तीर्थक्षेत्रों में माघ स्नान करना संभव न हो, तो क्या करें ?

माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इस काल में प्रत्येक प्राकृतिक जलस्रोत गंगा समान पवित्र हो जाता है। माघ स्नान हेतु प्रयाग, वाराणसी आदि स्थान पवित्र माने गए हैं; परंतु वहां स्नान करना संभव न हो, तो अपने समीप की नदी, तालाब, कुआं आदि किसी भी जलस्रोत में अवश्य स्नान करना चाहिए।

9. घर में माघ स्नान कैसे करें ?

पवित्र जलस्त्रोत में माघ स्नान करना संभव न हो तो माघ स्नान हेतु रात्रि घर के छत पर गागर में भरकर रखे जल से अथवा दिनभर सूर्य की किरणों से तपे जल से स्नान करें।

घर में माघ स्नान करने हेतु सुबह जल्दी उठकर गंगा, यमुना, सरस्वती… आदि पवित्र नदियों का स्मरण कर प्रार्थनापूर्वक उनका आवाहन स्नान के जल में करें। तदुपरांत उस जल से स्नान करें। उपरांत पहले बताए अनुसार सूर्यमंत्र का उच्चारण कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें । उसके उपरांत भगवान श्री विष्णु का स्मरण कर उनका पंचोपचार पूजन करें। उसके उपरांत ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ यह नामजप अधिकाधिक करें । यदि संभव हो, तो इस दिन उपवास करें। साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार पहले बताई वस्तुओं का यथाशक्ति दान करें।

10. माघ मास में कल्पवास का महत्त्व

‘कल्प’ अर्थात वेदाध्ययन, मंत्रपाठ एवं यज्ञ आदि कर्म । पुराणों में माघ मास में संगम के तट पर निवास कर, ये धार्मिक कर्म करना, ‘कल्पवास’ कहलाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि भक्तिभाव सहित कल्पवास करनेवाले को सद्गति प्राप्त होती है। एक मास चलनेवाला पवित्र माघ स्नान मेला उत्तर प्रदेश राज्य के प्रयाग में प्रतिवर्ष आयोजित होता है । इस मेले को ‘कल्पवास’ भी कहा जाता है।

कल्पवास में प्रतिदिन प्रात: स्नान, अर्घ्य, यज्ञ आदि करने के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। विविध धार्मिक कथा-प्रवचनों को सुनकर पूरा दिन सत्संग में बिताते हैं । इस काल में स्वयं को सभी भौतिक सुखों से दूर रखा जाता है। झोपडी में रहकर भूमि पर गेहूं का धान अर्थात छिलके फैलाकर उसपर एक चटई रखकर शयन किया जाता है।

-कु. कृतिका खत्री,
सनातन संस्था, दिल्ली