पाकिस्तान के लाहौर में स्थित कोट लखपत जेल: जंहा 23 मार्च को शहीद हुए थे भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव

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पाकिस्तान के लाहौर में स्थित कोट लखपत जेल को भारतीयों के लिए कब्रगाह के रूप में जाना जाता है। यह वही जेल है जहां 23 मार्च 1931 को शहीदे आजम भगत सिंह को राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी दी गई थी। इस जेल को अब लाहौर सेंट्रल जेल के नाम से जाना जाता है।

इसी जेल में अप्रैल 2013 में भारतीय कैदी सरबजीत पर पाकिस्तान के कुछ कैदियों ने धारदार हथियारों से हमला किया था। जिसके बाद 2 मई 2013 को इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी। आरोप लगते हैं कि सरबजीत पर हमला करने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कैदियों को उकसाया था। इस जेल को लाहौर के राख चंद्रकोट इलाके में बनाया गया था, जिससे इसे कोट लखपत का नाम मिला। वर्तमान में 4000 कैदियों की क्षमता वाले इस जेल में इससे चार गुना ज्यादा कैदी बंद हैं। यही कारण है कि आए दिन कैदियों के बीच मारपीट को लेकर पाकिस्तान का यह जेल सुर्खियों में रहता है।

भगत सिंह ने कोट लखपत जेल में बिताए जिंदगी के खास पल

भगत सिंह ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में बिताया था। उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार में अंग्रेज सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। 14 जून को सजा के बाद भगत सिंह को मियांवाली और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था। कुछ समय बाद भगत सिंह को भी लाहौर के कोट लखपत जेल में शिफ्ट कर दिया गया। एक ही जेल में कैद रहने के बावजूद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर षडयंत्र मामले के अन्य आरोपियों से दूर रखा गया।

अंग्रेजों ने एक दिन पहले ही भगत सिंह को दी थी फांसी

अंग्रेजों ने भगत सिंह को फांसी देने के लिए पहले 24 मार्च की तारीख तय की थी लेकिन आनन-फानन में इसे बदलकर 23 मार्च को ही उन्हें फांसी दे दी गई। दरअसल, अंग्रेज भी जानते थे कि भारत में भगत सिंह को चाहने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है। अगर तय तारीख पर फांसी दी गई तो कोई अनहोनी हो सकती है। अंग्रेजों को सबसे ज्यादा डर जेल पर हमले को लेकर था। उन्हें इस बात का भी बखूबी अंदाजा था कि उनकी मौत की तारीख के दिन पूरे देश में आग लग सकती है इसलिए उन्होंने फांसी का दिन और समय बदल दिया और भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को एक दिन पहले ही फांसी दे दी। भगत सिंह की फांसी की खबर सामने आते ही पूरे हिंदुस्तान में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।

हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम गए थे भारत मां के ये लाल

जब भगत सिंह को राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी देने के लिए फंदे के करीब लेकर जाया गया, तो तीनों वीर देशभक्तों ने एक दूसरे से फिर से मिलने की कसम खाई। उन्होंने फांसी के दौरान मुंह को ढंकने वाला कपड़ा भी पहनने से इंकार कर दिया। बताया जाता है कि फांसी से पहले भगत सिंह और सभी साथी एक दूसरे से गले मिले और अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विरोध का नारा बुलंद किया। इस दौरान जल्लाद ने लीवर खींच दिया। जिससे इन तीनों वीर सपूतों की मौत हो गई। सबसे पहले भगत सिंह फांसी पर चढ़े थे, उनके बाद राजगुरू और सुखदेव को सजा दी गई।

सरबजीत पर भी इसी जेल में हुआ था हमला

पंजाब के तरनतारन जिले के भीखीविंड गांव के निवासी सरबजीत सिंह अगस्त 1990 में गलती से पाकिस्तानी सीमा में दाखिल हो गए थे। इसके बाद पाक सुरक्षाबलों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। पाकिस्तान में सरबजीत पर जासूसी का आरोप लगा। रॉ का एजेंट बताते हुए उन्हें लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद ब्लास्ट में आरोपी बनाया गया। अक्टूबर 1991 में पाक अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। सजा के बाद से वह जेल में बंद थे। उनकी सजा के खिलाफ कई मानवाधिकार संगठनों ने भी लड़ाई लड़ी। अप्रैल 2013 में लाहौर की कोट लखपत जेल में कैदियों ने सरबजीत पर जानलेवा हमला कर दिया था। उन्हें जिन्ना अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। डॉक्टरों के ब्रेनडेड घोषित करने के बाद 2 मई 2013 को उनकी मौत हो गई थी। उनकी मौत पर पंजाब सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की थी।

-एजेंसियां