हरियाणा में अगर कांग्रेस को कोई हराएगा तो कांग्रेस ही !

अन्तर्द्वन्द

हरियाणा में कांग्रेस ने कुछ अच्छा किया? नही वहां भाजपा सरकार ने बहुत बुरा किया। इसी का परिणाम है कि वहां कांग्रेस की स्थिति अच्छी मानी जा रही है। लेकिन सामने जीत देखकर राज्य के कांग्रेसी नेता बावले हो रहे हैं। सब को मुख्यमंत्री पद दिख रहा है और मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने ज्यादा से ज्यादा लोगों को लड़ाना चाहते हैं।

कांग्रेस हाईकमान यह मैसेज देने में लगातार असफल साबित हो रहे हैं कि वहां चुनाव कांग्रेस पार्टी लड़ रही है और बीजेपी के कुशासन के खिलाफ जो राहुल गांधी का अभियान रहा उसी की वजह से वहां कांग्रेस की हालत अच्छी दिख रही है। किसी क्षत्रप की वजह से वहां लोग वोट नहीं देंगे। वोट मिलेंगे कांग्रेस की किसान समर्थक नीति, अग्निवीर के खिलाफ राहुल की आवाज, महंगाई, बेरोजगारी, सरकारी शिक्षा चिकित्सा खत्म करने, छोटे व्यापारियों के उद्योग-धंधे ठप्प होने, राज्य का गौरव पहलवान बेटियों के साथ नाइंसाफी होने जैसे मुद्दों पर। राहुल के नाम पर।

कांग्रेस जब तक यह मैसेज देने में कामयाब नहीं होगी तब तक क्षत्रप अपने आप को तीस मार खां बताकर आपस में लड़ते रहेंगे। कांग्रेस राजस्थान का उदाहरण याद नहीं कर रही है। वहां केवल और केवल गुटबाजी की वजह से वह हारी।

यह संयोग ही है कि वहां के इन्चार्ज होने के नाते उस गुटबाजी को बहुत झेले अजय माकन अब हरियाणा की स्क्रिनिंग कमेटी के अध्यक्ष हैं। और वे पिछले कई दिनों से लगातार हरियाणा के नेताओं और वहां के चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों से मिल रहे हैं।

सोमवार 2 सितंबर को कांग्रेस की टिकट वितरण करने वाली सर्वोच्च समिति सीईसी (सेन्ट्रल इलेक्शन कमेटी) की बैठक है। उससे पहले का काम स्क्रिनिंग कमेटी करती है। हर विधानसभा क्षेत्र के तीन या चार महत्वपूर्ण उम्मीदवारों का पैनल बनाने का। स्क्रिनिंग कमेटी का अध्यक्ष राज्य के बाहर को होता है और माना जाता है कि वह गुटबाजी से अप्रभावित रहेगा।

हालांकि यह मजेदार है कि इसी हरियाणा में यही गुटबाजी खुद माकन को दो साल पहले राज्यसभा हरा चुकी है। राहुल गांधी के केन्डिडेट के तौर पर उनकी पहचान थी। मगर किरण चौधरी ने इसकी परवाह न करके माकन के खिलाफ वोट दिया। उस समय कांग्रेस का ही एक गुट किरण चौधरी को बचाने में लग गया। कांग्रेस की अनुशासन समिति ने उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया। उसे दबा दिया गया। यहां तक कि माकन की आवाज को भी। राहुल गांधी की यही कमजोरी उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। उन्हें बोलना चाहिए था। हरियाणा में यह दूसरा कांग्रेस उम्मीदवार हारा था। इससे पहले प्रख्यात वकील आर के आनंद सोनिया गांधी के उम्मीदवार थे। इस समय कांग्रेस में जैसा जलवा अभिषेक सिंघवी का है। वैसा ही कभी आर के आनंद का था। वकालत का।

मगर इन कांग्रेसियों ने तो हिमाचल में सिंघवी को भी हराया। पार्टी को नुकसान करने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ अगर एक बार सख्त मैसेज चला जाए तो वह नजीर बन जाता है। किरण चौधरी को अगर उस समय ही पार्टी से निकाल दिया गया होता तो आज बीजेपी भी उन्हें नही लेती ।

मगर अब बीजेपी ने किरण चौधरी को राज्यसभा सदस्य दे दिया। बेटी को विधानसभा लड़वा रही है। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेसी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि किरण चौधरी ने कांग्रेस के साथ विश्वासघात किया। उनके भाजपा ज्वाइन करने के बाद भी कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला ने उनके समर्थन में बयान दिए।

यह हरियाणा कांग्रेस की सच्ची तस्वीर है। वहां गुटबाजी किस स्तर तक है। इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि कुमारी शैलजा ने स्क्रिनिंग कमेटी को ओवर रूल करके अपने 90 नाम सीधे सीईसी को भेज दिए। हरियाणा में 90 सीटें हैं और इसके लिए 2556 उम्मीदवार हैं। कुछ सीटों पर तो चालीस-चालीस लोगों ने टिकट मांगा है। ऐसे में तीन-चार लोगों का पैनल बनाना एक मुश्किल काम है। मगर फिर भी स्क्रिनिंग कमेटी ने कुछ सीटों पर सिंगल नाम तक जैसे गढ़ी सांपला किलोई से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जैसे कुछ और नाम तय कर दिए हैं। मगर अधिकांश सोटों पर स्क्रिनिंग कमेटी पर भारी दबाव है।

यह दबाव ही इस बात की निशानी है कि राज्य कांग्रेस की स्थिति अच्छी है। लेकिन यह अच्छी स्थिति भाजपा जैसी दूसरी पार्टियों को तो फायदा पहुंचा देती हैं और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा देती है। 2019 विधानसभा में भी हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी थी मगर गुटबाजी की वजह से ही वह 31 सीटों पर रुक गई। स्पष्ट बहुमत भाजपा को भी नहीं आया। वह भी 40 पर रुक गई। मगर जोड़-तोड़ करके उसने सरकार बना ली। उस चुनाव में अगर कांग्रेस के क्षत्रप आपस में नहीं लड़ते तो कांग्रेस जीत सकती थी।

ऐसा ही अभी लोकसभा चुनाव में उसने सबसे अच्छा प्रदर्शन हरियाणा में किया। आधी सीटें जीतीं। मगर यह आधा सच है। अगर मिलकर लड़ते तो यह आधी मतलब पांच सीटें आठ हो जातीं। सोचिए दस में से आठ। मगर कांग्रेस को जनता जिताना भी चाहे तो अड़जाती है कि अच्छा तुम (जनता) हमसे भी ताकतवर हो गए। हम नहीं चाहेंगे और तुम हमें जिता दोगे कांग्रेसी इसी ठसक में रहते हैं। इसे केवल हाईकमान तोड़ सकता है।

हरियाणा वह मौका है जहां वह सख्त मैसेज दे कि गुटबाजी करने वाला कोई नेता बख्शा नहीं जाएगा। यह चुनाव कांग्रेस पार्टी लड़ रही है। कोई गुट नहीं। कांग्रेस की किसान समर्थक नीतियों, छोटे व्यापारी दुकानदार समर्थक नीतियों, युवाओं को नौकरी देने और हरियाणा के विकास के लिए यह चुनाव हो रहा है। हरियाणा कांग्रेस ने ही बनाया था। 1966 में। और यह देश में एक विकसित राज्य का माडल बना। भाजपा दस साल से है। राज्य में भी केन्द्र में भी। कोई बहाना नहीं है। डबल इंजन की सरकार कहते हैं। मगर हरियाणा में किया क्या? यह जनता को नहीं बता पा रहे। नतीजा चुनाव डेट बढ़ा दो, लिचिंग के समर्थन में आ जाओ, हिन्दू-मुसलमान शुरू करो और सबसे बढ़कर कांग्रेस की गुटबाजी से उम्मीद करो।

इसके अलावा बीजेपी के पास और कुछ नहीं है। इसमें खास बात यह है कि बाकी इशु का जवाब तो जनता दे रही है। वह हिन्दू-मुसलमान के अजेंडे से बहुत दूर आ गई है। अपने वास्तविक सवालों पर बात कर रही है। मगर एक चीज का जवाब खुद कांग्रेस को देना पड़ेगा। गुटबाजी का। अभी बहुत समय है। राहुल का एक सख्त बयान सारे गुटबाज नेताओं के तेवर ढीले कर देगा।

अभी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उनके दो भाषण हुए और भाषणों के सरताज माने जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के पास उनकी एक बात का जवाब नहीं था। राहुल ने यहां तक दावा कर दिया कि अब मेरे किसी भाषण के दौरान प्रधानमंत्री सामने बैठेंगे नहीं। अभी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने मोदी को तीन महीने नहीं हुए और एक के बाद एक कई फैसले उन्हें वापस लेना पड़े और महाराष्ट्र में चरणों में मस्तक रखकर माफी मांगता हूं जैसा बोलना पड़ा।

यह राहुल इम्पैक्ट है। मगर इसका असर पार्टी में होना चाहिए। सत्ता पक्ष में खलबली मचाना तभी सार्थक होगा जब खुद उनकी पार्टी एकजुट होगी। यहां गुटबाजी पर काबू होगा।

हरियाणा टेस्ट केस है। अगर यहां कर लिया तो हर राज्य में संदेश चला जाएगा। और अगर यहां राजस्थान जैसे ढीले पड़ गए तो रिजल्ट भी वैसा ही आ सकता है।

शकील अख्तर

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।