प्रेमानंद जी महाराज का जीवन अध्यात्म को समर्पित, दादा-पिता के पदचिन्हों पर चलकर अनिरुद्ध कुमार पांडेय बन गए संन्यासी

दादा-पिता के पदचिन्हों पर चलकर अनिरुद्ध कुमार पांडेय बन गए संत प्रेमानंद जी महाराज

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लखनऊ। राधारानी के परम भक्त और वृंदावन वाले श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज को अध्यात्म में रुचि रखने वाला भला कौन नहीं जानता है? उनके भजन और सत्संग में शामिल होने के लिए आज लोग दूर-दूर से आते हैं। उनकी प्रसिद्धि विदेशों तक फैली हुई है। बहुत कम ही लोगों को मालूम है कि प्रेमानंद जी महाराज मूल रूप से यूपी के कानपुर जिले में सरसौल के अखरी गांव के रहने वाले हैं। महाराज जी का जन्म सात्विक ब्राह्मण (पाण्डेय) परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्डेय था। इनके दादा जी संन्यासी थे। पिता शंभु पाण्डेय का भी आध्यात्मिक झुकाव होने वजह से संन्यास ले लिया था।

प्रेमानंद जी महाराज बचपन में ही हनुमान चालीसा पाठ करने लगे थे। जब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तब वह गीता प्रेस प्रकाशन की श्री सुख सागर का पाठ करने लगे थे। बचपन में ही जीवन का असल कारण तलाशने की ललक उनमें प्रबल थी। स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही भौतिकवादी ज्ञान प्राप्त करने के महत्व पर उन्होंने सवाल उठाया था। इस दौरान उन्होंने बताया कि यह कैसे उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा? यही वह समय था जब वह “श्री राम जय राम जय जय राम” और “श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी” का जाप करने लगे थे। प्रेमानंद जी महाराज जी के गुरु का नाम श्री गौरंगी शरण जी महाराज है।

कहा जाता है कि भोलेनाथ ने स्वयं प्रेमानंद जी महाराज को दर्शन दिए। इसके बाद प्रेमानंद जी महाराज ने सांसारिक जीवन का त्याग कर भक्ति का मार्ग चुना। जब वे 13 वर्ष के हुए तो उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया। इसके बाद वे घर का त्याग कर संन्यासी बन गए। संन्यासी जीवन की शुरुआत में प्रेमानंद जी महाराज का नाम आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी रखा गया।

संन्यासी जीवन में कई दिनों तक रहे भूखे

प्रेमानंद जी महाराज घर का त्याग कर वाराणसी आए और यहीं अपना जीवन बिताने लगे। संन्यासी जीवन में वे गंगा में प्रतिदिन तीन बार स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान व पूजन किया करते थे। वे दिन में केवल एक बार ही भोजन करते थे। प्रेमानंद जी महाराज भिक्षा मांगने के स्थान पर भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे। यदि इतने समय में भोजन मिला तो वह उसे ग्रहण करते थे नहीं हो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते थे। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद जी महाराज ने कई-कई दिन भूखे रहकर बिताया।

डॉक्टरों ने कहा दोनों गुर्दे हैं ख़राब, इसके बावजूद भी वे अभी तक हैं स्वस्थ

प्रेमानंद जी महाराज ने भगवान कृष्ण-राधा जी का ध्यान और नि:स्वार्थ सेवा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। 60 की उम्र में होने के बावजूद भी उनका स्वास्थ्य अच्छा है। उनके अध्यात्मिक ज्ञान की लोकप्रियता का आलम यह है कि प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन करने के लिए भारत देश के ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग उनके पास आते हैं। वे आपने ज्ञान और दर्शन के लिए पूरी दुनिया में सम्मानित हुए हैं।

कहा जाता है कई सालों से पहले डॉक्टर बोल चुके हैं कि उनके दोनों गुर्दे (kidney) ख़राब हैं। इसके बावजूद भी वे अभी तक स्वस्थ हैं। उनका मानना है उनका सारा जीवन राधा जी की सेवा और भक्ति के हैं। सब कुछ उन्होंने भगवान के हाथ में छोड़ दिया है आज भी उनकी दिनचर्या भक्ति करना है और वहां आने जाने वाले भक्तों से मिलकर उनकी समस्या को सुनकर उसका हल निकालते हैं।

गंगा को मानते हैं दूसरी मां

आध्यात्मिक साधक के रूप में तब उनके जीवनकाल का अधिकतम समय गंगा नदी के किनारे बीतता था। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने कभी भी एक आश्रम का पदानुक्रमित जीवन नहीं स्वीकारा। यह वह समय था, जब गंगा उनकी दूसरी मां बन चुकी थीं और वह तब यूपी में बनारस के अस्सी घाट से लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार में अन्य घाटों तक घूमा करते थे।

प्रेमानंद जी के जीवन का ये था ‘टर्निंग प्वाइंट’

प्रेमानंद महाराज जी के संन्यासी बनने के बाद वृंदावन आने की कहानी बेहद चमत्कारी है। एक दिन प्रेमानंद जी महाराज से मिलने एक अपरिचित संत आए। उन्होंने कहा श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा के द्वारा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला मंच का आयोजन किया गया है, जिसमें आप आमंत्रित हैं। पहले तो महाराज जी ने अपरिचित साधु को आने के लिए मना कर दिया, लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह किया, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। प्रेमानंद जी महाराज जब चैतन्य लीला और रासलीला देखने गए तो उन्हें आयोजन बहुत पसंद आया। यह आयोजन लगभग एक महीने तक चला और इसके बाद समाप्त हो गया।

चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी कि, अब उन्हें रासलीला कैसे देखने को कैसे मिलेगी? इसके बाद महाराज जी उसी संत के पास गए जो उन्हें आमंत्रित करने आए थे। उनसे मिलकर महाराज जी कहने लगे, मुझे भी अपने साथ ले चलें, जिससे कि मैं रासलीला को देख सकूं। इसके बदले मैं आपकी सेवा करूंगा।

संत ने कहा आप वृंदावन आ जाएं, वहां आपको प्रतिदिन रासलीला देखने को मिलेगी। संत की यह बात सुनते ही, महाराज जी को वृंदावन आने की ललक लगी और तभी उन्हें वृंदावन आने की प्रेरणा मिली। इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए। इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए। वृंदावन आकर वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से भी जुड़े।

भक्तों को क्या देते हैं उपदेश?

प्रेमानंद जी महाराज लोगों को श्री राधा रानी जी की भक्ति के मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं हर किसी को ईश्वर में विश्वास करना चाहिए, कठोर शब्द का उपयोग न करना, दूसरों का मजाक नहीं उड़ाना और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है।

-एजेंसी