महामृत्युंजय जाप से होता है चमत्कारी रूप से लाभ, जान लीजिए पूरा अर्थ

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३३ वर्णों वाली महामृत्युञ्जय मन्त्ररूप समग्र ऋचा अनाख्यात शक्ति सहित सर्वाख्येश की बोधिका है, जो सर्वाङ्ग में विद्यमान है।

मृत्युञ्जयमन्त्र के वर्णों की शक्तियां और उनका जागरण इस प्रकार मन्त्रगत वर्ण, पद, वाक्यादि से प्रतीयमान सब शक्तियाँ शरीर के तत्तत् स्थानों में निवास करती हैं।
देवता मन्त्रमय हैं, अतः मन्त्र के उच्चारण से देवताओं का उल्लास होता है, शक्तियों का उल्लास ही स्थिति है। अमृत है। शक्तियों की सुषुप्ति ही अन्धकार है, मृत्यु है।

सुषुप्त शक्तियां मन्त्रजप से जाग्रत् होकर स्थित भाव की संरक्षिका बनती हैं, क्योंकि मन्त्र में ‘सुगन्धि’ और ‘पुष्टिवर्धन’ जैसे शब्द हैं ।

सुगन्धि का अर्थ यहां पुण्य और विस्तृत कीर्ति है और कीर्ति का पर्याय यश है | यश चान्द्री शक्ति है, जो ‘अमृता’ बनकर शक्तियों का संरक्षण करती है । ‘पुष्टिवर्धनम्’ यह शक्तिवर्धन का सूचक है।

शब्दब्रह्म (शब्दों) में वर्ण अक्षर कहलाते हैं । ये ही वर्ण अर्थब्रह्म पदार्थों में ‘कला’ कहलाते हैं । वर्ण शब्द प्रकाश का वाचक है।

शब्दब्रह्म विचित्र प्रकाशमय वर्णों का समुदाय है तो अर्थब्रह्म भी विभिन्न प्रकाशमय कलाओं का समूह है। दोनों ब्रह्म परस्पर एक दूसरे से मिले हुए हैं।

इसीलिये शब्द से अर्थ का और अर्थ से शब्द का ज्ञान होता रहता है और शब्द अर्थरूप से तथा अर्थ शब्दरूप से परिणत होते रहते हैं।

. ‘ त्र्यम्बकं यजमाहे‘ – अम्बिका शक्ति सहित त्यम्बकेश का बोधक है, जो पूर्व दिशा में प्रवाहित शक्ति में स्थित है।

– २. सुर्गान्ध पुष्टिवर्धनम्’ – वामा शक्ति सहित मृत्युञ्जयेश का बोधक है, जो दिक्षण दिशा में प्रवाहित शक्ति में स्थित है।

३. ‘उर्वारुकमिक बन्धनात्’ – भीमा शक्ति सहित महादेवेश का बोधक है, जो पश्चिम दिशा में प्रवाहित शक्ति में स्थित है ।
४. मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् – द्रौपदी शक्ति सहित संजीवनीश का बोधक है जो उत्तर दिशा में प्रवाहित शक्ति में स्थित है।

मन्त्रगत पूर्वार्ध और उत्तरार्ध खण्डों के अर्थ

१ – ‘ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम्’ – यह आधी ऋचा गौरीशक्ति सहित महेश की परिचायिका है, जो दक्षिण पाद में स्थित है।

२ ‘ उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्’ – यह आधी ऋचा व्यापिनी शक्ति सहित शाम्भवेश की परिचायिका है, जो वाम पाद में स्थित है ।।