सीतामढ़ी का पुनौरा धाम: भूमि पुत्री सीताजी के जन्म का साक्षी

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जनक सुता जग जननी जानकी जनक लली जू के प्राकट्य वाले दिन बिहार प्रांत में नेपाल बॉर्डर के पास स्थित सीतामढ़ी के पुनौरा धाम पर बहुत बड़ा मेला लगता है। अकाल ग्रस्त दुखी जनता के दुख निवारण हेतु त्रेता काल में राजा जनक द्वारा हल जोता जाना, बारिश होना, हल द्वारा भूमि जोतने और एक पेटिका में भूमि पुत्री सीताजी के जन्म का साक्षी है यह स्‍थान।

आस-पास है कईं महत्वपूर्ण तीर्थ 

पुनौरा के आस पास सीता माता एवं राजा जनक से जुड़े कई तीर्थ स्थल हैं। जहां राजा ने हल जोतना प्रारंभ किया था, वहां पहले उन्होंने महादेव का पूजन किया था। उस शिवालय को हलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि एक समय पर विदेह नाम के राजा ने इस शिव मंदिर का निर्माण पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए करवाया था।

सीतामढ़ी के पुनौरा धाम से 50 क‍िमी दूर नेपाल में स्थित है जानकी मंदिर, जहां पर राजा जनक जी की नगरी थी। इस परम पावन स्थल पर ही सीताजी का लालन पालन हुआ और यहीं पर विशाल रंगशाला मैदान में प्रभु श्रीरामचंद्रजी ने धनुष तोड़ा, जिसके टुकड़े धरती से लेकर आकाश और पाताल तक गए।

जनकपुर से 40 km दूर स्थित नेपाल के धनुषा जिले में आज भी उस शिव धनुष का एक भाग करीब 50 फीट लंबाई और 6 फीट चौड़ाई का उपलब्ध है। पत्थर और लोहे के मिश्रण जैसी इस शिला के वहाँ दर्शन होते हैं। इस शिला रूपी धनुष का आकार भी दिनोंं-दिन बढ़ रहा है। विशेषज्ञों द्वारा भी इसकी धातु जांच की गई थी। जनकपुर जानकी मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की सूर्यवंशी रानी वर्षभान कुंवर जू द्वारा 1890 ईश्वी में नौ लाख रुपयों से (भव्य नौलखा जानकी मंदिर अयोध्याजी के कनक भवन मंदिर के संग-संग) करवाया गया था ।

जब टीकमगढ़ के तत्कालीन राजा अपने खजाने की गिनती करवा रहे थे, तब उनके दो पुत्र थे। रानी वर्षभान कुंवर ने खजाने के तीन भाग कराकर एक भाग के खजाने से कनक भवन और जानकी मंदिर का निर्माण कराया था। निर्माण के समय सभी मजदूर और राज मिस्त्रियों को नए पीले वस्त्र पहनाकर राम भजन करते हुए औजारों पर घुंघरू बांधकर ये कार्य कराया गया। 130 वर्ष प्राचीन महल जैसे दोनों मंदिरों की भव्यता के टक्कर का मंदिर अभी तक नहीं बना है।

माता जानकी के जन्‍मदिन पर इसी जानकी मंदिर के प्रांगण में 5 दिवसीय सीता जन्म उत्सव होता है। सीता जन्म उत्सव के पांच दिनों में लाखों भक्त जानकी मंदिर दर्शन करने हेतु आते हैं। कलयुगी कोरोना वायरस के खत्‍म होने पर इस पवित्र स्‍थान के दर्शन किए जा सकते हैं।

प्रस्‍तुति: विनीत नारायण,
द ब्रज फ़ाउंडेशन, वृंदावन