आगरा के वन विलायती बबूल से भरे पड़े हैं जिसके कारण देसी प्रजातियों के वृक्ष व पौधे समाप्त प्रायः हो चुके हैं, बन्दर और अन्य जीवों को न वहां आश्रय मिल रहा है और न ही कुछ खाने को, हमें अपने वनों से विलायती बबूल को क्रमशः हटाकर देसी प्रजाति के पेड़ लगाने होंगे ताकि वे भूगर्भ जल को प्रभावित किये बिना अपनी पर्यावरणीय सेवा से इस धरा को हरा-भरा और खुशहाल बना सकें।
देसी प्रजातियों के ये वृक्ष हैं- राधा जी का प्रिय वृक्ष तमाल, श्री कृष्ण भगवान का प्रिय वृक्ष कदम्ब, शमी, बेलपत्र कैंथ, पिलू, रेमजा, रोहेड़ा, बहेड़ा, ढाक (टेसू), करील, कुम्ठा, पाखड़, नीम, बरगद, आदि। पृथ्वी दिवस के अवसर पर यह मांग आगरा डवलपमेन्ट फाउण्डेशन (एडीएफ) के सचिव व वरिष्ठ अधिवक्ता के. सी. जैन द्वारा की गयी।
इस अवसर पर अधिवक्ता जैन ने कहा कि वन विभाग व नगर निगम द्वारा जिन वृक्षों की प्रजातियां लगायी जा रही हैं उन्हें पानी की अधिक आवश्यकता होती है जिसके कारण भूगर्भ जल प्रभावित हो रहा है। केसिया सामिया, गुलमोहर आदि ऐसी ही प्रजातियां हैं। हमें छोटे पत्ते वाले व कांटे वाले पेड़ लगाने चाहिए जिन्हें पानी की जरूरत कम होती है और उनका पौधारोपण सफल रहता है। शासन के पौधारोपण अभियान में पूरी सफलता न मिलने का कारण सही प्रजातियों का चयन का अभाव है।
एडीएफ की ओर से यह भी मांग की गयी कि निजी भूमि पर जब तक वृहत्त स्तर पर पौधारोपण किसान और भू-धारक नहीं करेंगे, तब तक आगरा तथा टीटीजेड का वनावरण (फोरेस्ट कवर) नहीं बढ़ सकेगा। इसके लिए एग्रोफॉरेस्ट्री को प्रोत्साहित करना होगा जिसके लिए एडीएफ के द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा टीटीजैड के सम्बन्ध में 11 दिसम्बर 2019 को आदेश किये जा चुके हैं किन्तु वन विभाग द्वारा वे अभी तक लागू नहीं किये गये हैं जिसके कारण निजी व्यक्ति वृक्षारोपण से कतराता है क्योंकि वृक्षों को काटने के सम्बन्ध में रोक उसे डराती है।
इसके अतिरिक्त आगरा के बड़े पब्लिक पार्क जैसे शाहजहाँ उद्यान, पालीवाल पार्क, यमुना किनारा ताज व्यू पार्क आदि में बोरवेल से सिंचाई नहीं करनी चाहिए अपितु नाले व एसटीपी के शोधित जल से सिंचाई होनी चाहिए जैसा दिल्ली के लगभग 6800 पार्कों के सम्बन्ध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश किया है। भूूगर्भ जल से सिंचाई जलस्तर को और अधिक घटायेगी। यमुना नदी पर बैराज भी जल्द से जल्द बनना चाहिए ताकि भूगर्भ जल स्तर में आशातीत वृद्धि हो सके।
इन सभी मांगों का समर्थन करते हुए एडीएफ अध्यक्ष पूरन डावर ने भी एग्रोफोरेस्ट्री को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया।
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