Agra News: पिछले 20 साल से मृतक आश्रित कोटे की नौकरी की आस लगाए बैठी इन महिलाओं को आज भी मिला छावनी परिषद से सिर्फ आश्वासन और तारीख

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आगरा: छोटे-छोटे बच्चे आज जवान हो गए हैं। दशकों पहले कर्जे पर लिए ₹500 आज हजारों में तब्दील हो गए हैं। छावनी परिषद आते-आते उनकी ना जाने कितनी पैरों की चप्पल घिस गई लेकिन आज तक उन्हें नौकरी नहीं मिली, मिला तो सिर्फ आश्वासन और तारीख। यह कोई फिल्मी पंक्तियां नहीं है बल्कि मृतक आश्रित का दर्द है जो आज उनकी आंखों में साफ झलक रहा था। आज भी लगभग 10 मृतक आश्रितों के परिजनों ने अधिकारियों से मुलाकात की और नतीजा ढाक के तीन पात रहा। आज भी अधिकारियों ने आश्वासन दिया और कार्यालय से रवाना हो गए।

छावनी परिषद में आज रक्षा मंत्रालय और रक्षा संपदा से अधिकारी आए थे। मृतक आश्रितों को जानकारी हुई तो वह भी छावनी परिषद कार्यालय पहुंच गए। लोगों की भीड़ देखकर छावनी परिषद के गेट पर गेटकीपर ने उन्हें रोक लिया। उनसे पूछा क्या काम है उन्होंने कहा अधिकारियों से मिलना है, हम मृतक आश्रित हैं। उन्हें बैरियर पर ही रोक दिया गया लेकिन जैसे तैसे चोरी-छिपे वह अंदर पहुंच गए। कार स्टैंड के नीचे खड़े हो गए और टकटकी लगाए अधिकारियों के बाहर निकलने की राह देखने लगे।

मृतक आश्रित महिलाओं की आंखें सिर्फ उन अधिकारियों को ढूंढ रही थी जो उनकी समस्या हल कर सकते हैं। इनमें से कुछ ऐसी मृतक आश्रित महिलाएं भी थी जिनकी आंखों की रोशनी भी अधिकारियों को देखते-देखते कम हो गई। आंखों की रोशनी कम होने से नौकरी ना मिलने का दर्द सबसे अधिक था। इसीलिए किसी को सहारा बनाकर यह महिलाएं एक बार फिर अधिकारियों से गुहार लगाने पहुंची थी।

बैठक खत्म होने के बाद जैसे ही अधिकारी बाहर निकले महिलाओं ने दौड़ लगा दी। इन महिलाओं ने अतिरिक्त महानिदेशक रक्षा संपदा नई दिल्ली सोनम यंगडोल से मुलाकात की लेकिन महिलाओं के पहुंचने से पहले ही वह अपनी गाड़ी में सवार हो गई थी। महिलाओं की भीड़ देख उन्होंने खिड़की का शीशा नीचे उतारा और सिर्फ यह कह दिया कि मैं कल भी यहां हूं। कल बात करेंगे और फिर वह वहां से निकल गई। महिलाएं सिर्फ देखती ही रह गयीं।

2 दशक से नहीं मिली नौकरी

मृतक आश्रित में नौकरी मिल जाए इसकी चाह लेकर मृतक कर्मचारियों के परिजन और उनकी पत्नियां आज छावनी परिषद पहुंची थी। इनमें से कुछ ऐसे मृतक आश्रित महिलाएं थी जिन्हें 2 दशक से अधिक का समय बीत गया। जब इन से वार्ता हुई तो इनकी आंखें भी छलक गई। उनका कहना था कि पति सरकारी नौकर था, काम करते-करते मौत हो गई। छावनी परिषद में मृतक आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है लेकिन आज तक उन्हें नौकरी नहीं मिली। उनके छोटे-छोटे बच्चे जवान हो गए बेटियों की कर्जा लेकर शादी की आज वह कर्जा भी ब्याज के चलते कई गुना हो गया। परिषद के चक्कर काटते काटते ना जाने कितनी चप्पले भी गिर गई लेकिन इन अधिकारियों का दिल नहीं पसीजा। उन्हें आज तक नौकरी नहीं मिली, मिलता है तो सिर्फ आश्वासन और तारीख। यह तारीख कब खत्म होगी उन्हें नहीं मालूम।

पेंशन की रकम चली जाती है ब्याज में

मृतक आश्रित कुछ महिलाओं ने बताया कि उन्हें मात्र ₹7000 के आसपास पेंशन मिलती है। उस पेंशन से घर का गुजारा कैसे चले। महंगाई इतनी है कि राशन का खर्च भी महीने भर नहीं चल पाता है। घर खर्च चलाने के लिए दूसरों के घर पर नौकरी करनी पड़ती है जबकि मृतक आश्रित में नौकरी मिलना उनका अधिकार है। कुछ मृतक आश्रित महिलाओं ने बताया कि जो पेंशन मिलती है उससे तो वह घर खर्च भी नहीं चला पाते। क्योंकि वह पेंशन की रकम ब्याज में चली जाती है। दूसरों के घर झाड़ू पौंछा और खाना बनाकर वह अपने दो वक्त का गुजारा कर रही है।

महिलाओं का कहना है कि छावनी परिषद से आखिरकार हम ऐसा क्या मांग बैठे हैं कि यहां आने वाला हर अधिकारी उनकी इस मांग पर बेरुखी पर उतर आता है। उनके पति ने विभाग की सेवा की और सेवा करते करते उनकी मौत हो गई। अब उनके परिवार की भरण-पोषण के लिए मृतक आश्रित में नौकरी मिलना उनका अधिकार है। लेकिन इस अधिकार को यह अधिकारी छीन रहे हैं। उनकी सुनवाई के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि और अधिकारी उनके साथ खड़ा नहीं है।