सूचना मांगने पर आगरा नगर निगम ने दिया अजीब जबाब, “अभी दिवाली की साफ-सफाई में व्यस्त हैं नही दे सकते जबाब”

Regional

जानकारी चाहिये तो दो हजार रुपये फोटोस्टेट के जमा करायें

आगरा: प्रदेश के सूचना आयुक्त कितनी भी हिदायतें दें या जुर्माना लगाएं, सरकारी विभागों द्वारा आरटीआई के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं के प्रति उदासीन रवैया बना हुआ है। ताजा मामले में एक आरटीआई कार्यकर्ता ने नगर निगम से सूचना के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना के संदर्भ में सूचना मांगी। नगर निगम ने उन्हें जवाब भेजा कि सभी लिपिक दिवाली की साफ-सफाई में व्यस्त हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता नरेश पारस ने विगत 11 अक्टूबर को नगर निगम में आरटीआई के तहत मुख्यमंत्री विवाह योजना से संबंधित कई बिंदुओं पर सूचना मांगी थी। उन्होंने जानकारी मांगी कि योजना के लिए कौन लाभार्थी इसके लिए किस तरह आवेदन कर सकते हैं। चार साल में कितने लाभार्थी योजना का लाभ ले चुके हैं। उनके द्वारा सूचना मांगने के तीसरे दिन उन्हें आनलाइन नगर निगम के जनसूचना अधिकारी ने जवाब भेज दिया। जवाब पढ़कर वह असमंजस में पड़ गए।

नगर निगम द्वारा मांगी गई सूचना तो उपलब्ध नहीं कराई गई। मगर पत्र में लिखा कि आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाएं बहुत अधिक हैं। विभाग में दीपावली के अवसर पर साफ-सफाई कार्य और अधिष्ठान संबंधी कार्यों के कारण लिपिकीय स्टाफ व्यस्त है। प्रार्थी विभाग में व्यक्तिगत संपर्क कर वांछित जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा वर्ष 2022-23 में मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना की सभी जानकारी विभागीय वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।

इसके अलावा विभाग द्वारा कहा गया कि पिछले चार साल की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए विभागीय प्रपत्रों की छायाप्रति कराने के लिए बाजार से फोटोस्टेट करानी होगी। इसके लिए करीब दो हजार रुपये का खर्च आएगा। प्रार्थी नगर निगम के खाते में विभागीय हित में दो हजार रुपये जमा करा दे, जिससे बाजार में छायाप्रति कराई जा सके। इसके अलावा प्रार्थी को एक शपथ पत्र भी देना होगा कि इन सूचनाओं का प्रयोग गलत उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा।

नरेश पारस का कहना है कि विभाग का जवाब से वह संतुष्ट नहीं हैं, इसलिए उन्होंने प्रथम अपील कर दी है। उनका कहना है कि आरटीआई का जवाब देने के लिए 30 दिन का समय होता है। अगर विभागीय कर्मचारी सफाई में व्यस्त में थे तो दीपावली के बाद सूचना एकत्रित करा लेते। जवाब देने में इतनी तत्परता क्यों दिखाई गई। इसके अलावा जब सूचना एकत्र ही नहीं हुई तो दो हजार रुपये का खर्च का अनुमान कैसे निकाला गया।