आंध्रप्रदेश के चित्तूर का कनिपक्कम Ganapati मंदिर, जहां हर दिन बढ़ रहा है मूर्ति का आकार
आज 21 जनवरी को संकष्टी चतुर्थी है, जिसे सकट चौथ भी कहा जाता है, इस दिन भगवान Ganapati की आराधना का विधान माना गया है। वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी इसी को कहते हैं। सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह कर Ganapati जी को नदी में 21 बार, तो घर में एक बार जल देना चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा का विधि विधान
देर शाम चंद्रोदय के समय व्रती को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य चंद्रमा, गणेश जी और चतुर्थी माता को अवश्य देना चाहिए। अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा-पूजा होती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। दूर्वा, शमी, बेलपत्र और गुड़ में बने तिल के लड्डू चढ़ाने चाहिए।
तो आइए जानते हैं चित्तूर का कनिपक्कम गणपति मंदिर के बारे में जहां मौजूद विनायक की मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है।
पुराणों से लेकर वर्तमान तक भगवान गणपति के चमत्कारों की कहानियां और मंदिर प्रसिद्ध हैं जिनमें एक चमत्कार चित्तूर का कनिपक्कम गणपति मंदिर भी है। जो कई कारणों से अपने आप में अनूठा और अद्भुत है। कनिपक्कम विनायक का ये मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में मौजूद है। इसकी स्थापना 11वीं सदी में चोल राजा कुलोतुंग चोल प्रथम ने की थी। जितना प्राचीन ये मंदिर है, उतनी ही दिलचस्प इसके निर्माण की कहानी भी है।
मान्यताओं के अनुसार, काफी पहले यहां तीन भाई रहा करते थे। इनमें एक अंधा, दूसरा गूंगा और तीसरा बहरा था। तीनों अपनी खेती के लिए कुआं खोद रहे थे कि उन्हें एक पत्थर दिखाई दिया। कुएं को और गहरा खोदने के लिए जैसे ही पत्थर को हटाया, वहां से खून की धारा निकलने लगी।
कुएं में लाल रंग का पानी भर गया, लेकिन इसी के साथ एक चमत्कार भी हुआ। वहां पर उन्हें गणेशजी की एक प्रतिमा दिखाई दी, जिसके दर्शन करते ही तीनों भाईयों की विकलांगता ठीक हो गई। जल्दी ही यह बात पूरे गांव में फैल गई और दूर-दूर से लोग उस प्रतिमा के दर्शन के लिए आने लगे। काफी विचार-विमर्श के बाद उस प्रतिमा को उसी स्थान पर स्थापित किया गया।
यहां दर्शन करने वाले भक्तों का मानना है कि मंदिर में मौजूद मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता जा रहा है। कहा जाता है कि यहां मंदिर में एक भक्त ने भगवान गणेश के लिए एक कवच दिया था जो कुछ दिनों बाद छोटा होने के कारण प्रतिमा को नहीं पहनाया जा सका।
कहते हैं कि इस मंदिर में मौजूद विनायक की मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस बात का प्रमाण उनका पेट और घुटना है, जो बड़ा आकार लेता जा रहा है। सिर्फ मूर्ति ही नहीं बल्कि जिस नदी के बीचों बीच गणेश विराजमान हैं, वो भी किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। हर दिन के झगड़े को लेकर भी भक्त गणपति के दरबार में हाजिर हो जाते हैं। छोटी-छोटी गलतियां न करने के लिए भी भक्त शपथ लेते हैं। लेकिन भगवान के दरबार में पहुंचने से पहले भक्तों को नदी में डुबकी लगानी पड़ती है।
-एजेंसी
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