जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज जैसे संत इस धरती पर कई शताब्दियों में एक बार आते हैं। श्री कृपालु जी महाराज ने 1922 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में जन्म लिया और 16 वर्ष की आयु से ही भगवान् का धुआँधार प्रचार प्रारम्भ कर दिया। 91 वर्षों के अपने जीवन काल में उन्होनें भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वेदों-शास्त्रों के ज्ञान का भंडार खोल दिया। आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ उन्होनें लोगों की सामाजिक एवं शारीरिक उन्नति के लिए भी कई सराहनीय प्रयास किये, जिन्हें उनकी ज्येष्ठा सुपुत्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने बहुत लगन के साथ आगे बढ़ाया।
जगद्गुरु कृपालु परिषत् का नेतृत्व
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने साल 2002 में जगद्गुरु कृपालु परिषत् की बागडोर अपनी तीनों सुपुत्रियों – डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी, डॉ. श्यामा त्रिपाठी जी और डॉ. कृष्णा त्रिपाठी जी के हाथों में सौंप दी थी। इसी क्रम में डॉ. विशाखा त्रिपाठी जगद्गुरु कृपालु परिषत् और मनगढ़, कुंडा स्थित भक्ति मंदिर की अध्यक्ष्या नियुक्त की गयीं। तब ही से उन्होंने जीवों के आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्थान के अपने जगद्गुरु पिता के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास में अपना पूरा जीवन लगा दिया।
भव्य मंदिरों की स्थापना
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने जन सामान्य को भक्ति पथ पर आगे बढ़ाने के लिए तीन प्रमुख मंदिरों की स्थापना की। इनमें से श्री वृन्दावन धाम स्थित प्रेम मंदिर आज पूरी दुनिया में अपने अनोखे सौंदर्य और भक्ति भाव के लिए जाना जाता है। प्रेम मंदिर में प्रतिदिन लाखों लोगों की भीड़ श्री राधा-कृष्ण और श्री सीता-राम के दर्शन के लिए उमड़ती है। कृपालु जी महाराज ने राधा रानी की अवतार स्थली श्री बरसाना धाम में कीर्ति मंदिर की स्थापना की जो इस दुनिया में कीर्ति मैया की गोद में विराजित नन्हीं सी राधा रानी का इकलौता मंदिर है। इसी प्रकार अपने जन्मस्थान श्री कृपालु धाम मनगढ़, प्रतापगढ़ में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भक्ति मंदिर की स्थापना की।
निःशुल्क चिकित्सा सेवाओं की शुरुआत
अभावग्रस्त समाज को शारीरिक व्याधियों से बचाने के लिए जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने वृंदावन, बरसाना और श्री कृपालु धाम – मनगढ़ में तीन निःशुल्क हॉस्पिटल स्थापित किये जहाँ न केवल इलाज और चेकअप बल्कि दवाइयाँ भी बिल्कुल मुफ़्त में दी जाती हैं।
साधना शिविरों का नियमित आयोजन
इसके साथ ही साथ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्थापित गैर-लाभकारी संस्था जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा नियमित रूप से साधना शिविरों का आयोजन किया जाता है जिसमें लोगों को भगवान् की भक्ति का प्रामाणिक तरीका सिखाया जाता है एवं रूपध्यान संकीर्तन और साधना के द्वारा उसका निरंन्तर अभ्यास कराया जाता है।
2013 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के गोलोक जाने के बाद भी डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने संस्था की गतिविधियों में कोई कमी नहीं आने दी। बल्कि कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने जगद्गुरु कृपालु परिषत् का दायरा कई गुना बढ़ा दिया जिससे लोगों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में बहुत लाभ मिला।
अचानक निधन से शोक की लहर
अपने गुरु, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अप्रत्यक्ष हो जाने के बाद भी लाखों भक्त डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी के नेतृत्व में श्री महाराज द्वारा बताये गए भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं। उन लाखों लोगों को एक साथ ज़ोर का आघात लगा जब 24 नवंबर 2024 की सुबह, एक दुःखद सड़क दुर्घटना में सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी का अचानक निधन हो गया। उनकी इस असमय विदाई से उनके प्रिय जनों और परिषत् में शोक की लहर दौड़ गयी।
साधक-गण अपनी प्रिय “बड़ी दीदी” के लीला संवरण के बाद दुःख में डूब गए। पर साथ ही साथ वे उनके द्वारा दी गयी शिक्षाओं का स्मरण करते हुए कहते हैं कि गुरु और गुरुजन का कभी वियोग होना संभव नहीं है।
यह बहुत गर्व की बात है कि सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने ईश्वर भक्ति, गुरु सेवा और नारी सशक्तिकरण के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किये और असंख्य लोगों का कल्याण किया। यह संसार उन्हें सदा एक समाज सुधारक और अग्रणी गुरु भक्त के रूप में याद करेगा।
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