भारत का दूध उद्योग विश्व में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण है। यहाँ तक कि एक समय ऐसा था जब भारत में दूध की नदियाँ बहने की बात कही जाती थी। ब्रज भूमि, जो कृष्ण कन्हैया के माखन, दही और छाछ की लीलाओं से गूंजित है, दूध की महत्ता को रेखांकित करता है। लेकिन आज दूध का नाम सुनते ही सबसे पहले ध्यान नकली दूध और मिलावटी उत्पादों पर जाता है, जो लोगों की सेहत के लिए खतरा बन चुके हैं। इन मामलों में रासायनिक मिलावट, नकली पनीर, खोया, मिठाईयों का निर्माण हो रहा है, जो समाज के लिए चिंता का विषय है।
फिर भी, भारत का डेयरी उद्योग अपने ऐतिहासिक योगदान और विश्वस्तरीय विकास की ओर बढ़ रहा है, और इसका मुख्य श्रेय श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन को जाता है। उनके नेतृत्व में शुरू किया गया ऑपरेशन फ्लड ने भारत में दूध उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि की। आज भारत में हर घर में अमूल का दूध पहुंचता है और यह देश के डेयरी उद्योग का प्रतीक बन चुका है।
भारत में करीब 300 मिलियन गाय और भैंस हैं, जो देश की दुग्ध उत्पादन क्षमता का आधार बनती हैं। वर्तमान में, भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश है, जिसमें हर साल 210 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक दूध का उत्पादन होता है। लेकिन इस विशाल उद्योग के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं, जो इसके स्थायित्व और डेयरी किसानों की आजीविका के लिए खतरा बन सकती हैं।
दूध की कीमतों में उतार-चढ़ाव, उत्पादन लागत में वृद्धि और पौधों पर आधारित विकल्पों से प्रतिस्पर्धा जैसे आर्थिक दबावों ने डेयरी किसानों की लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि मूल्य स्थिरीकरण कार्यक्रमों को लागू करके, उत्पादों की विविधता लाकर और सहकारी विपणन रणनीतियों को समर्थन देकर किसानों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
दूध उद्योग के पर्यावरणीय प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जल उपयोग और भूमि क्षरण जैसी समस्याएं इस उद्योग के साथ जुड़ी हुई हैं। इन समस्याओं को कम करने के लिए सरकार और उद्योग को अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण के सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के साथ-साथ संधारणीय कृषि प्रथाओं में अनुसंधान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
भारत में दूध उत्पादन को आधुनिक बनाने के लिए, डेयरी उद्योग को कई प्रमुख सुधारों की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्वचालित दूध देने की प्रणाली को लागू करने, पशु स्वास्थ्य, पोषण और प्रजनन की निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग और संसाधनों का अनुकूलित उपयोग दूध उत्पादन में सुधार ला सकता है। इसके अलावा, फीड और चारे की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार करके दूध की उत्पादन क्षमता को और बढ़ाया जा सकता है।
किसानों का सशक्तिकरण इस उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है। डेयरी किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों, पशुपालन और व्यवसाय प्रबंधन पर प्रशिक्षण प्रदान करने से उन्हें लाभ होगा। सहकारी समितियों को मजबूत करने से किसानों की सामूहिक सौदेबाजी क्षमता में सुधार होगा और वे बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकेंगे।
डेयरी प्रसंस्करण संयंत्रों का आधुनिकीकरण भी आवश्यक है, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता और दक्षता में सुधार हो सके। पनीर, दही, और मक्खन जैसे मूल्यवर्धित उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने से डेयरी उद्योग की लाभप्रदता में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, उत्पाद की सुरक्षा और शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए अभिनव पैकेजिंग और गुणवत्ता नियंत्रण उपायों की आवश्यकता है।
सहकारी विशेषज्ञ अजय दुबे का मानना है कि नई तकनीकों को विकसित करने और डेयरी फार्मिंग प्रथाओं में सुधार करने के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश करना आवश्यक है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास जैसे सड़क, बिजली आपूर्ति और पशु चिकित्सा सेवाओं को बेहतर बनाना डेयरी उद्योग के लिए फायदेमंद हो सकता है।
भारत के डेयरी उद्योग को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने के लिए, यह जरूरी है कि पूरी डेयरी मूल्य श्रृंखला पर ध्यान केंद्रित किया जाए। स्वच्छता, गुणवत्ता, और दक्षता को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, पशुपालन में सुधार और सहकारी विपणन रणनीतियों को समर्थन दिया जाए। इस तरह के प्रयासों से भारत का डेयरी उद्योग न केवल सशक्त बनेगा, बल्कि यह भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार करेगा।
-बृज खंडेलवाल (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)
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