‘भाषा और लिपी’ पर शोध: संस्कृत भाषा सर्वाधिक सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित करती है

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‘भाषा और लिपी’ पर शोध करने के दौरान पाया गया क‍ि संस्कृत भाषा का स्पंदन सर्वाध‍िक सात्त्विक होता है। भाषा अभिव्यक्ति और परस्पर संवाद का प्राथमिक साधन होने के कारण हमारे द्वारा बोली जानेवाली भाषा हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग होती है। हमारी मातृभाषा कौन-सी हो, यह हमारे हाथ में नहीं है; परंतु सात्त्विक भाषा सीखना हमारे हाथ में है।

शोध के लिए चयन की गई 8 राष्ट्रीय और 11 विदेशी भाषाओं में से ‘संस्कृत’ और उसके उपरांत ‘मराठी’ भाषा सर्वाधिक सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित करती है, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने किया। वे नई दिल्ली में हुई 25 वीं इंडिया कॉन्फ्रेन्स ऑफ वेवज् ऑन ‘द कन्सेप्ट ऑफ लिबर्टी एण्ड इक्वॅलिटी इन वेदिक पर्स्पेक्टिव’ इस अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में बोल रहे थे। उन्होंने परिषद में ‘सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा और उनकी लिपी के सूक्ष्म स्पंदन’ यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया। इस परिषद का आयोजन ‘द वाईडर एसोस‍िएशन फॉर वेदिक स्टडिज (वेव्ज) न्यू दिल्ली’ ने किया था। महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक तथा सहलेखक शॉन क्लार्क हैं।

उपरोक्त शोधनिबंध महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया गया 85 वा शोधनिबंध था। इसके पूर्व विश्वविद्यालय ने 15 राष्ट्रीय और 69 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किया है। इनमें से 9 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय को ‘सर्वश्रेष्ठ शोधनिबंध’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

शॉन क्लार्क ने आगे कहा कि लिखित अथवा बोलने के माध्यम से भाषा द्वारा भी सकारात्मक अथवा नकारात्मक स्पंदने प्रक्षेपित होते हैं। हम और ‘जिनसे हम संवाद कर रहें है’ उन पर भी हमारी भाषा के स्पंदनों का परिणाम होता है। क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के प्रभामंडल मापक यंत्र, साथ ही सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से की गई कुछ जांच की जानकारी भी दी।

जांच 1. ‘सूर्य पूर्व से उगता है और पश्चिम में अस्त होता है’, यह वाक्य 8 राष्ट्रीय और 11 विदेशी भाषाओं में भाषांतरित किया गया । एक कागज पर एक भाषा का वाक्य इस प्रकार प्रत्येक भाषा के वाक्य अलग अलग ‘ए4’ आकार के कोरे कागजों पर छापे गए। तदुपरांत उन प्रत्येक कागजों से प्रक्षेपित होने वाले सूक्ष्म ऊर्जा का अध्ययन युनिवर्सल ऑरा स्कैनर के माध्यम से किया गया। कुछ भाषाओं से केवल नकारात्मक ऊर्जा, कुछ में सकारात्मक और नकारात्मक यह दोनों ऊर्जा तथा कुछ से केवल सकारात्मक ऊर्जा प्रक्षेपित हो रही थी। देवनागरी लिपी की भाषाओं में अन्य भाषाओं की तुलना में अधिक सकारात्मक ऊर्जा पाई गई। संस्कृत भाषा में सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा थी और उसका प्रभामंडल 14.21 मीटर था। तदपुरांत मराठी भाषा में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई।

अन्य एक जांच में उपरोक्त जांच में उपयोग किया गया संस्कृत वाक्य महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय-निर्मित सात्त्विक पद्धति के अक्षरों में और संगणक (कंप्यूटर) की प्रचलित पद्धति के अक्षरों में छापा गया। सात्त्विक पद्धति के अक्षरों में संगणक की प्रचलित पद्धति के अक्षरों की तुलना में 146 प्रतिशत अधिक सकारात्मक ऊर्जा पाई गई। शोधनिबंध का समापन करते हुए श्री. शॉन क्लार्क ने कहा कि शैक्षणिक संस्था अपने पाठ्यक्रमों की भाषा का चयन करते हुए भाषा की सात्त्विकता को प्रधानता दे सकते हैं।

-एजेंसी