गीता जयंती: जीवन के कुरुक्षेत्र पर विजय के लिए आज प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकता है गीतामृत की

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जीवन का अर्थ बताने वाली महान ग्रंथ अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता; हिंदू धर्म का अद्वितीय तत्त्वज्ञान अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता; हिन्दू धर्म में भगवद गीता को सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता है। गीता पर हाथ रखकर कोई भी हिंदू झूठ नहींं बोल सकता इसलिए न्यायालय (अदालत) में गीता पर हाथ रखकर शपथ दी जाती है । मार्गशीर्ष शुद्ध एकादशी को श्रीमद्भगवद्गीता का जन्मदिवस मनाया जाता है, इस अवसर पर इस अद्वितीय ग्रंथकी महत्ता इस लेख से जानकर लेंगे ।

श्रीमद्भगवद्गीता अर्थात साक्षात भगवान श्रीकृष्ण की अमृतवाणी ! कुरुक्षेत्र में विजय के लिए अर्जुन को जैसे गीतोपदेश की आवश्यकता थी, वैसे ही जीवन के कुरुक्षेत्र पर विजय के लिए आज प्रत्येक व्यक्ति को गीतामृत की आवश्यकता है । पूर्व काल से विदेश के अनेक विद्वान गीता के अद्वितीयता के आगे नतमस्तक होते रहे है । पाश्‍चात्य लोगों की गीताभक्ति और गीता का महत्व प्रस्तुत लेख में दे रहे है ।

अठारह पुराण, नौ व्याकरण और चार वेद इनका सार अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता

अष्टादश पुराणानि नव व्याकरणानि च । निर्मथ्य चतुरो वेदान् मुनिना भारतं कृतम् ॥

भारतोदधिपङ्कस्य गीतानिर्मार्ंथितस्य च । सारमद्धत्य कृष्णेन अर्जुनस्य मुखे धृतम् ॥

अर्थ : अठारह पुराण, नौ व्याकरण और चार वेद इनका सम्य मंथन कर के व्यास मुनी जी ने महाभारत रचा । इस महाभारत का मंथन कर के सर्व नवनीत (सार) श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मुखमें रखा ।

श्रीमद्भगवद्गीता का देश विदेश के विद्वानों ने भाषांतर भी किया –

शेख अबुल रहमान चिश्ती (फारसी), फ्रेंच विद्वान डुपर ( फ्रेंच ), जर्मन महाकवि आगस्ट विल्हेम श्‍लेगल (वर्ष 1823) (जर्मन और लॅटिन), जर्मन विद्वान एम्.ए. श्रेडर, केमेथ सेन्डर्स और जे.सी. टॉमसन, अमेरिका से भारत आकर गए न्यायाधीश और लेखक ‘किन्थ्रौप सार्जेट’, एल.डी. बार्नेट और डॉ. अ‍ॅनी बेसेंट (वर्ष 1905), डब्ल्यू. डगलस पी. हिल (वर्ष 1928), फेंकलिन एडजर्ट (वर्ष 1944), क्रिस्टोफर ईशरकुड (वर्ष 1945).

श्रीमद्भगवद्गीता की स्तुति करनेवाले अहिंदू और उनके द्वारा की गई स्तुति –

अ. मुहम्मद गजनी ने भारत में लाकर कारागृह में रखे बुखारा के अत्यंत बुद्धिमान राजकुमार ‘अल् बरूनी’ इन्होने कारागृह में संस्कृत सीख कर स्वयं के पुस्तक में गीता की बहुत प्रशंसा की है ।

आ. दिल्ली के सम्राट अकबर ने प्रकांड पंडित ‘अबुल पैजी’ से गीता का ‘फारसी’ भाषा में भाषांतर करवा कर लिया और सम्राट शाहजहान के पुत्र दाराशिकोह ने इस भाषांतरित ग्रंथकी प्रस्तावना/मनोगत ‘सरे अकबर’ इस शीर्षकांतर्गत की है । अपने प्रस्तावना में गीता की अपूर्व प्रशंसा करते हुए उसने कहा, ‘गीताका ‘प्लेटो’ के गुरूंपर भी प्रभाव है’ ।

इ. जर्मन विद्वान ‘कॉल्टर शू ब्रिंग’ इन्होने गीता की विशेष स्तुति की है ।

ई. जर्मन तत्ववेत्ता ‘कान्ट’ और उनका प्रशंसक ‘शॉपेनहाकर’ और ‘हेगेल’ गीता के प्रशंसक थे ।

उ. जर्मन विद्वान ‘हम्बोल्ट’ ने गीता पढकर ‘अपना जीवन कृतार्थ हुआ और यह एकमात्र उत्तम दर्शनकाव्य है’, ऐसे बताया ।

ऊ. गीता के अनेक यूरोपीय भाषा में बार बार भाषांतर होने लगा। अनेक यूरोपीय और अमेरिकी विद्वानोंने गीता का महात्म्य मुक्तकंठ से गाया है ।

ए. थोरो के महान भक्त अमेरिकन लेखक ‘राल्फ काल्डो एमरसन’ गीता के विशेष प्रशंसक थे।

ऐ. आयरिश कवि ‘जी. डब्ल्यू रसल’ (रसेल) इन्होने भी गीता की बहुत स्तुति की है ।

ओ. ‘यीट्स’, ‘फ्रेजर’, ‘मेकनिकल’ इत्यादि विदेशी विद्वानों ने भी गीता की मुक्तकंठ से स्तुति की है ।

औ. ‘टी. एस्. इलियट’ ने गीता को ‘मानवी साहित्य को प्राप्त अमूल्य धरोहर’, ऐसे कहा है ।

अं. ‘फरक्यूहर’ ने गीता को ‘विलक्षण’, ऐसे कहा था ।

क. ‘बुक्स’ ये गीता को ‘मानवजाति के उज्वल भविष्य के लिए निर्मित’ ऐसे दृष्टीसे देखते थे।

ख. गवर्नर जनरल ‘वॉरन हेस्टिंग्ज’ ने स्तुति करते हुए कहा है, ‘गीता का उपदेश किसी भी जाति और राष्ट्रको प्रगति के शिखर पर लेकर जाने के लिए अद्वितीय है’ ।

यूरोपीय विद्वानों द्वारा पहचाना गया गीता का महत्त्व –

अ. गीता का प्रभाव बौद्धों के ‘महायान’ ग्रंथ में दिखाई देता है ।

आ. अंग्रेज कवि कार्लायल गीता के उपासक थे ।

इ. संस्कृततज्ञ ‘सर जॉन कुडरूफ’ गीता के भक्त थे ।

ई. भारत की ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के विद्वान अंग्रेज अधिकारी ‘चार्ल्स विल्किन्स’ ने अत्यंत परिश्रम से संस्कृतका अभ्यास किया और गीता का अंग्रजी में भाषांतर किया । कंपनी ने यह भाषांतर स्वयं के लाभ के लिए किया हो ,परंतु यह एक क्रांतिकारी घटना थी । इस घटना से यूरोपीय जगत में खलबली मच गई थी ।

उ. ‘सर हेनरी टामस कोलब्रुक’ ये गीता के प्रशंसक थे । इन्होने वर्ष 1765 से वर्ष 1837 इस कालावधि में संस्कृतका प्रचार किया । उन्होने वेदांकर विद्वत्तापूर्ण लेख लिख कर यूरोप मे वेदोंका प्रसार करना प्रारंभ किया ।

ऊ. ‘सर विल्यम जोन्स’ का गीता और संस्कृत को वैभव दिलाने मॆं बडा हाथ है। इसलिए उन्होने कोलकाता के विद्वान पंडित ‘रामलोचन’ के कठोर आदेशोंका पालन (गंगाजलसे कमरा धोना) कर के पंडित से वे संस्कृत सीखे ।

ए. जर्मन विद्वान ‘विन्टरनित्स’, ‘पालडायसन’ और ‘मॅक्समूलर’ ने वैदिक साहित्य एव्ं गीता का प्रसार करने के लिए महत्वपूर्ण सहायता की ।

ऐ. अंग्रेजी कवि ‘सर एडविन आरनोल्ड’ द्वारा किया गया गीता का प्रसिद्ध अनुवाद ‘दिव्य संगीत’ गांधींजी द्वारा लंडन में पढने के उपरांत उनका गीतासे प्रथम परिचय हुआ ।

ओ. प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान ‘एल्डुअस हक्सले’ द्वारा ‘गीता शाश्वत दर्शन’ इस ग्रंथ में किया गया गीता का भाष्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. उन्होंने स्पष्ट और संक्षिप्त में वर्णन किया गया ‘गीता शाश्वत दर्शन’ यह सर्वाधिक क्रमबद्ध आध्यात्मिक कथन है’ ।

सभी के कथन से हमें श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व ध्यान में आता है क्योंकि यह मनुष्य को जीवन के ग़ूढ रहस्यो के विषय में विस्तार से ज्ञान प्रदान करती है।

– कु. कृतिका खत्री,
सनातन संस्था, दिल्ली