लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ को मिला बुकर पुरस्कार

Press Release

नई दिल्‍ली। लेखिका गीतांजलि श्री ( Geetanjali Shree) के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ (Tomb of Sand)  को बुकर पुरस्कार मिला। गीतांजलि श्री का उपन्यास हिंदी में ‘रेत समाधि’ नाम से पब्लिश हुआ था। अमेरिकन राइटर-पेंटर डेजी रॉकवेल ने टॉम्ब ऑफ सैंड के नाम से इस उपन्यास का इंग्लिश में अनुवाद किया। यह उपन्यास दुनिया की उन 13 पुस्तकों में शामिल था, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की लिस्ट में शामिल किया गया था।

टॉम्ब ऑफ सैंड बुकर जीतने वाली हिंदी भाषा की पहली किताब है। साथ ही किसी भी भारतीय भाषा में अवॉर्ड जीतने वाली पहली किताब भी है। लंदन में गुरुवार ​को ​​​​​​लेखिका गीतंजलि श्री को अवॉर्ड दिया गया। गीतांजलि को 50 हजार पाउंड की इनाम राशि मिली, जिसे वो डेजी रॉकवेल के साथ साझा करेंगी।

प्रख्‍यात लेखिका गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘रेत समाधि’ (अंग्रेज़ी अनुवाद tomb of sand टूम ऑफ सैंड) बुकर प्राइज़ से सम्मानित होने वाला दक्षिण एशिया का, भारत का और हिंदी भाषा का पहला उपन्यास है. इस लिहाज से यह देश के लिए व हिंदी साहित्‍य जगत के लिए फ़ख़्र का क्षण है. इस क्षण में हिंदी साहित्‍य की दशा और दिशा पर गौर भी कर लेना चाहिए. खासकर, तब जब इनदिनों यह बहस हावी है कि हिंदी में अच्‍छा नहीं लिखा जा रहा है.
पुरस्कार दिये जाने की घोषणा पर

गीतांजलि श्री ने कहा, मेरे लिए यह बिलकुल अप्रत्याशित है लेकिन अच्छा है। मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह पुरस्कार हासिल कर सकती हूँ। यह बहुत बड़े स्तर की मान्यता है जिसको पाकर मैं विस्मित हूँ। मैं प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूँ। मैं बुकर फाउंडेशन और बुकर जूरी को धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने रेत- समाधि को चुना। इसके पुरस्कृत होने में एक उदास संतुष्टि है। रेत-समाधि इस दुनिया की प्रशस्ति है जिसमें हम रहते हैं, एक विहँसती स्तुति जो आसन्न कयामत के सामने उम्मीद बनाए रखती है। बुकर निश्चित रूप से इस उपन्यास को कई और लोगों तक ले जाएगा, जिन तक अन्यथा यह नहीं पहुँच पाता।

उन्होंने कहा, जब से यह किताब बुकर की लांग लिस्ट में आई तब से हिंदी के बारे में पहली बारे में बहुत कुछ लिखा गया। मुझे अच्छा लगा कि मैं इसका माध्यम बनी लेकिन इसके साथ ही मैं इस बात पर जोर देना चाहती हूँ कि मेरे और इस पुस्तक के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं की अत्यंत समृद्ध साहित्यिक परंपरा है। इन भाषाओं के बेहतरीन लेखकों से परिचित होकर विश्व साहित्य समृद्ध होगा। इस तरह के परिचय से जीवन की शब्दावली बढ़ेगी।

गीतांजलि श्री ने अपने मूल प्रकाशक अशोक महेश्वरी, अनुवादक डेजी रॉकवेल और अंग्रेजी प्रकाशक का भी आभार प्रकट किया।

-एजेंसी