विवादों में क्यों घिर गया है मिस्र के मशहूर पिरामिडों की मरम्मत का काम?

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उनके भीतर रखे ख़ज़ाने लूट लिए गए. ढांचे की बाहरी परत को भी नुक़सान पहुंचाया गया. गीज़ा के मेनकौरे पिरामिड को लेकर अब बड़ा विवाद खड़ा हो गया है क्योंकि मिस्र का एंटीक्वीटीज़ डिपार्टमेंट या पुरातन विभाग इस पिरामिड का जीर्णोद्धार करना चाहता है यानि उसकी मरम्मत और रेनोवेशन करना चाहता है.

मिस्र के पुरातन विभाग के प्रमुख इस योजना को सदी का एक सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बताते हुए कह रहे हैं कि यह मिस्र की ओर से विश्व को दिया जाने वाला तोहफ़ा होगा. लेकिन कई लोग मानते हैं कि जीर्णोद्धार का यह प्रोजेक्ट पुरातत्वीय संरक्षण के नियम और सिद्धांतों के अनुसार नहीं है.

पिरामिडों का मुद्दा

यूके की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में इजिप्टोलॉजी यानि मिस्र संबंधी विषयों के प्रोफ़ेसर एडेन डॉडसन पिरामिड के बारे में कहते हैं, ”मिस्र के पिरामिड दरअस्ल मक़बरें हैं. और जिन शाही पिरामिडों की हम बात कर रहे हैं वो ख़ास किस्म के मक़बरे हैं. इसके तीन पहलू हैं जिसमें से एक है इसकी नुकीली चोटी.”

”शाही मक़बरे के भीतर एक कमरा होता है जिसमें क़ब्र होती है. कुछ मान्यताओं के अनुसार यह अंनतकाल का शयनकक्ष भी है. शाही मक़बरे का दूसरा पहलू यह होता है कि इसमें मृतक इस दुनिया और दूसरी दुनिया के बीच संपर्क साधे रह सकता है.”

”इसलिए वहां एक मंदिर या प्रार्थनास्थल भी होता है, जहां लोग प्रार्थना कर सकते हैं या मृतक को भेंट दे सकते हैं और जहां मृतक की आत्मा इस दुनिया में आ सकती है. पिरामिड के समय यानि ईसा पूर्व 2600 और ईसा पूर्व 1550 के दौरान पिरामिड को इसके दो पहलुओं के माध्यम से देखा गया. यानि वो मक़बरे भी थे और प्रार्थनास्थल भी.”

शाही मक़बरों के लिए पिरामिड का आकार ही क्यों चुना गया इस बारे में पुख़्ता तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल है, मगर एडेन डॉडसन कहते हैं कि इसका संबंध मिस्र के सूर्य देवता ‘रा’ से हो सकता है, जिन्हें मिस्र के मिथकों में सभी देवों का पिता माना जाता था.

एडेन डॉडसन कहते हैं, एक धारणा यह है कि पिरामिड का आकार आसमान से धरती पर सूर्य की किरणों के फैलने को दर्शाता है. गीज़ा के मैदानी इलाके में जो तीन पिरामिड हैं, उनमें मेनकौरे पिरामिड सबसे छोटा है. उसकी ऊंचाई क़रीब 60 मीटर है और उसका तल सभी दिशाओं में सौ मीटर तक फैला हुआ है.

एडेन डॉडसन का मानना है कि मेनकौरे का पिरामिड छोटा ज़रूर था, लेकिन अन्य पिरामिड की तुलना में अधिक शानदार था. उसके निचले हिस्से की दीवारों पर ग्रेनिट या ग्रेनाइट की परत थी.

सभी पिरामिडों की बाहरी दीवारें अब सीढ़ियों के समान हो गई हैं, लेकिन पहले इसकी बाहरी दीवारों पर मुलायम पत्थरों की परत हुआ करती थी.

इसके लिए पॉलिश किए गए चूना पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता था. मेनकौरे पिरामिड के क़रीब आधे हिस्से पर ग्रेनिट पत्थरों की परत थी.

इस लाल ग्रेनिट के हर ब्लॉक का वज़न दो टन से ज़्यादा होता था, जिन्हें पांच सौ मील दूर स्थित असवान से नील नदी के ज़रिए बेड़ों पर लाद कर लाया गया था.

एडेन डॉडसन ने कहा, ”मेनकौरे पिरामिड की बाहरी परत करीब पूरी उखड़ गई है. उसकी एक दीवार में बड़ा छेद भी है. कहा जाता है मिस्र के एक मध्यकालीन राजा ने इसे ढहाने की कोशिश की थी. अब इस पिरामिड के केवल 15-29 प्रतिशत हिस्से पर ही ग्रेनिट की परत बरक़रार है.”

”पिरामिड के गिर्द रेत पर ग्रेनिट पत्थरों के टूटे हुए ब्लॉक पड़े हैं. इसके ऊपरी हिस्से पर से अच्छी क्वालिटी के पॉलिश्ड चूना पत्थर की परत पहले ही उतारी जा चुकी है. शायद मध्यकालीन काहिरा में उन पत्थरों को उतार कर मस्जिदों में इस्तेमाल कर लिया गया था.”

अब मेनकौरे पिरामिड के जीर्णोद्धार के लिए जो योजना बनाई जा रही है, उसका नेतृत्व डॉक्टर मुस्तफ़ा वज़ीरी कर रहे हैं जो मिस्र के पुरातन विभाग के प्रमुख हैं. वो ख़ुद एक जाने-माने पुरातत्ववेत्ता हैं. लेकिन उनकी यह योजना विवादों में घिर गई है.

पिरामिडों के लिए योजना 

क़रीब एक महीने पहले मुस्तफ़ा वज़ीरी ने एक वीडियो जारी किया. इसमें वो मेनकौरे पिरामिड के पास एक ग्रेनिट पत्थर की शिला पर खड़े दिख रहे थे. उनके इर्द-गिर्द कई मज़दूर पिरामिड पर काम कर रहे थे. इस वीडियो से यह संकेत दिया जा रहा था कि वहां काम शुरू हो चुका है.

न्यूज़ीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास की प्रोफ़ेसर डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम का कहना है कि इस वीडियो को देख कर ज़रा भी अंदाज़ा नहीं लगता कि वहां कितने बड़े स्तर पर काम होने वाला है. पहले कभी भी इतने बड़े स्तर पर काम नहीं किया गया है.

”वो दिखा रहे थे कि वो कैसे इस पिरामिड की मरम्मत का काम करेंगे. वो इस वीडियो में अरबी भाषा में मज़दूरों से बात कर रहे थे. लग रहा था जैसे यह मज़दूर पिरामिड के इर्द-गिर्द पड़ा मलबा हटा रहे थे. ऐसा लग रहा था कि यह वीडियो मीडिया में दिखाने के उद्देश्य से बनाया गया हो.”

दुनियाभर के इजिप्टोलॉजिस्ट और पुरातत्ववेत्ताओं को इस घटना से काफ़ी आश्चर्य हुआ. इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई. फ़ौरन ही मिस्र की सरकार ने विशेषज्ञों की समिति का गठन किया. इस समिति ने इस योजना का विरोध किया है.

लेकिन मेनकौरे के पिरामिड के जीर्णोद्धार के बारे में मिस्र के पुरातन विभाग के प्रमुख का क्या सुझाव था?

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम ने कहा, ”हमें पता चला है कि उन्होंने एक जापानी गुट के साथ संपर्क किया है. कहा जाता है कि वह लोग मेनकौरे पिरामिड पर दोबारा ग्रेनिट की परत चढ़ाना चाहते हैं. यह ग्रेनिट गीज़ा के अन्य पिरामिड में इस्तेमाल हुए पत्थर से अलग है. वो कहते हैं कि इन ग्रेनिट पत्थरों का इस पिरामिड के निर्माण में इस्तेमाल होने वाला था. ग्रेनिट की परतों की सात पंक्तियों में इस्तेमाल हो सके इतना ग्रेनिट पत्थर पहले ही वहां मौजूद है.”

वो कहते हैं कि इस पिरामिड पर से ग्रेनिट की नौ पक्तियों की परत ग़ायब है जिसे वो दोबारा पिरामिड पर चढ़ाना चाहते हैं. क्या यह अच्छी योजना है?

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम कहती हैं, ”सवाल यह है कि क्या उन्होंने इस बारे में सोचा है कि मूल तौर पर जो चूना पत्थर वहां लगा है वो पहले ही अच्छे स्तर का नहीं था इसलिए उस पर ग्रेनिट की परत चढ़ानी पड़ी थी. सैकड़ों सालों से मौसम की मार से पत्थर के उन ब्लॉक की स्थिति और ख़राब हो चुकी है. और क्या उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि वो अब कितने स्थिर हैं?”

“वहां जो ग्रेनिट के ब्लॉक्स पड़े हैं उन्हे पॉलिश नहीं किया गया है क्योंकि उन ब्लॉक्स को पिरामिड में लगाने से ठीक पहले पॉलिश किया जाता था और सही आकार दिया जाता था. इन पत्थरों को पॉलिश नहीं किया गया है इसलिए अगर इनकी परत चढ़ाई गई तो वो मूल पिरामिड से मेल नहीं खाएगी.”

कोई भी यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि मेनकौरे पिरामिड के पास पड़े ग्रेनिट के ब्लॉक पहले कभी उस पिरामिड पर लगे हुए थे या नहीं. कुछ इजिप्टोलॉजिस्ट या मिस्र संबंधी विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि मेनकौरे कम उम्र में ही चल बसे थे, इसलिए उनके पिरामिड का निर्माण अधूरा रह गया था जिसकी वजह से इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री वहीं पड़ी रह गई. मगर अब इन ग्रेनिट ब्लॉक्स को पिरामिड में लगाने की योजना से पुरातत्वशास्त्र के मौलिक सिद्धांतों पर ही बहस छिड़ गई है.

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम का कहना है कि इस पिरामिड के संरक्षण के बजाय उसका नवीनीकरण किया जा रहा है, जो कि यह दुनियाभर की प्राचीन विरासतों के संरक्षण के लिए बनी वेनिस संधि के दिशा-निर्देशों के ख़िलाफ़ है.

डॉक्टर जेनिफ़र हेलूम कहती हैं कि इस काम के संबंध में मुस्तफ़ा वज़ीरी ने यूनेस्को और उससे जुड़े पुरातत्ववेत्ताओं से सलाह मशविरा नहीं किया है. उनके नाटकीय वीडियो का मक़सद पिरामिड के बारे में हंगामा खड़ा करना था. लेकिन इस हंगामे से अगर दुनिया का ध्यान पिरामड पर केंद्रित होता है तो इससे पर्यटकों को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है.

-एजेंसी