हिन्दी पत्रकारिता की हत्या में उच्च भूमिका निभाने वाली अंजना के लिए ईमानदारी बनी गाली

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जब बन जायेंगी “पार्टी” वाली, तो ईमानदार कहना भी लगेगा बवाली

पत्रकार समाज का आईना होता है,वह सत्य लेकर समाज में आता है। और सत्यों तथ्यों से जनता को अवगत कराता है।
वह इस बात से बेपरवाह होता है कि कहाँ से ताली और कहां से गाली मिलेगी। पत्रकार की इसी कैटगरी को निष्पक्षता का पक्षधर पत्रकार कहा जाता है। ऐसे पत्रकार सत्ता समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं। उनकी कमियों पर कलम से प्रहार करते हैं ताकि सत्ता शासक वर्ग बेलगाम बैल न हो जाये। और जनविरोधी नीतियां या कमियां हो उसमें सुधार लाये। इसी को कहतें हैं पत्रकारिता के पेशे में ईमानदारी क्योंकि वह बिकता नहीं है झुकता नहीं है। मगर आजकल इससे इतर पत्रकारों की एक नई जमात जन्म ले चुकी है जो पत्रकारिता की जगह पक्षकारिता कर रही है। वह सत्ता से सहमति और विपक्ष से सवाल कर रही है।

वह शासक की कमियों की जगह उसकी खूबियों का बखान कर रही है। जो पत्रकारिता की मूल भावना से इतर है। ऐसे पत्रकारों को “निष्पक्ष” या “ईमानदार” कहने पर वह “चोर की दाढ़ी में तिनका” की तरह तिलमिला जाते हैं। ऐसे ही आज तक कि टीवी एंकर के साथ हुआ।

दरअसल अंजना ओम कश्यप और उसके साथियों ने समाज मे जिस तरह से नफरत का बीज बोया है उसकी फसल भी खुद ही काट रहे हैं। कल्पना कर सकते हैं कि कोई पत्रकार ईमानदार कहे जाने पर उस कदर आग बबूला होगा जिस तरह से अंजना ओम कश्यप हुईं।

जिस देश की मीडिया में इतना साहस नही है कि वो अपने पीएम से पूछे सके कि अपनी पत्नी को क्यों त्याग दिया
वो अखिलेश यादव से पूछ रही है कि आप परिवारवादी हैं या नही।

अंजना ने सोचा कि मोदी जी के पक्ष में दो समुदायों में नफरत तो बहुत बेच लिए एक बार उनके पक्ष में चुनावी हवा भी बना दें लेकिन मामला जमा नही। अंजना ओम कश्यप और उसके साथियों ने समाज मे जिस तरह से नफरत का बीज बोया है उसकी फसल भी खुद ही काट रहे हैं।

जिस देश की मीडिया में इतना साहस नही है कि वो अपने पीएम से पूछे सके कि अपनी पत्नी को क्यों त्याग दिया
वो साक्षी के पिता से पूछ रही है कि बताइये आप इन्हें अपनाएंगे या नही?

अंजना ने सोचा कि नफरत तो बहुत बेच लिए एक बार मोहब्बत बेच ले लेकिन मामला जमा नही,
बेहद जबरदस्त बैकफायर कर गया।

मैं अंजना को पत्रकार नही मानता वह एक ख़ूबसूरत एंकर है। ऐसी घटनाओं से सबक मिलता है कि एंकरों को जर्नलिज्म करने की कोशिशें नही करनी चाहिए। समय का पहिया उल्टा चलने लगा है पहले सुधीर चौधरी गरियाये गए फिर दीपक पिटा गये अब अंजना को ईमानदार कह दिया गया । इतिहास गवाह रहेगा कि जब-जब पत्रकारिता गंदलेपन पर बात होगी तो ऐसे एंकर एंकरानीयों के पक्षकारिता को नजरंदाज नहीं किया जायेगा। ऐसे ही लोग पत्रकारिता की आत्मा का गलाघोंटने के जिम्मेदार माने जायेंगे। अगर पत्रकारिता के पेशे में ऐसे ही “ईमानदार”लोग प्रवेश करते रहें तो वाकई लोकतंत्र के पहरूओं के लिये सम्मानजनक सम्बोधन भी एक तंज माना जायेगा, लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का क्षरण बढ़ता ही जायेगा।

सोनिका मौर्या

-सोनिका मौर्या-