अहमदाबाद का साबरमती रिवरफ्रंट का आँखों में बस जाना और आगरा में यमुना का तिल-तिल मर जाना…

Cover Story

डॉ. भानु प्रताप सिंह

AhmedabadGujarat, India. मैं इस समय गुजरात की वाणिज्यिक राजधानी अहमदाबाद में हूँ। साबरमती नदी का अवलोकन किया। साबरमती नदी उदयपुर (राजस्थान) की झाड़ौल पहाड़ी से निकलती है। गुजरात में 323 किलोमीटर बहती हुई अरब सागर की खंभात खाड़ी में गिरती है। साबरमती नदी के किनारे अहमदाबाद और गांधीनगर शहर बसे हुए हैं। इसी साबरमती नदी के किनारे गांधी आश्रम है, जिसे साबरमती आश्रम भी कहा जाता है। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी ने 1915 से 1933 तक यहां निवास किया। साबरमती रिवरफ्रंट देखकर आश्चर्य में पड़ गया है। मैं सोचने लगा कि क्या मैं भारत के अहमदाबाद शहर में हूँ या कहीं और?

अद्भुत है नजारा

साबरमती रिवर फ्रंट वाकई अद्भुत है। रिवर फ्रंट में प्रवेश कीजिए तो सामने हरियाली। रंग-बिरंगा प्रकाश। म्यूजिकल फाउंटेन, जिसके साथ बच्चे अठखेलियां करते हैं। जल में भीगते हुए प्रफुल्लित होते हैं। बच्चों के लुभाने वाले झूले और कई प्रकार के खेल। विश्राम स्थल। नदी की रेती का भी आनंद। नदी किनारे उतर जाइए और टहलिए। सूर्यास्त देखिए। जैसे-जैसे सूर्य का प्रकाश मंद पड़ता है, रिवर फ्रंट की शोभा बढ़ती जाती है। नदी के इस ओर से उस ओर नेत्र सुख प्रदायक दृश्य नजर आता है। शहर के लोग रिवर फ्रंट पर परिवार समेत पिकनिक मनाने आते हैं। कचरा का नामोनिशान नहीं है। जहां तक दृष्टि जाती है, शानदार नजारा है। यातायात जाम का झंझट नहीं फिर चाहे कार लेकर जाएं या बस। पैदल परिपथ के बीच में स्थान-स्थान पर पार्किंग का इंतजाम। रिवर फ्रंट का आनंद सड़क किनारे से उठा सकते हैं। वॉटर स्पोर्ट और ईवेंट सेंटर की व्यवस्था है। शांतिपूर्ण वातावरण में स्वयं की खोज करनी है तो 10 रुपये प्रवेश शुल्क है। बच्चों के पांच रुपये। स्कूली बच्चे सिर्फ एक रुपये में प्रवेश पा सकते हैं। साबरमती का पानी भले ही पाने योग्य न हो, नदी के पानी में भले ही कोरोना वायरस पाया गया हो लेकिन रिवर फ्रंट दर्शनीय है। यह वही स्थल है जहां 14 सितम्बर, 2017 को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ काफी समय व्यतीत किया था। मुझे तो लगता है कि आप अहमदाबाद आएं और रिवर फ्रंट न देखें तो सबकुछ बेकार है।

म्यूजिक फाउंटेन में बच्चे अठखेलियां कर रहे हैं।

साबरमती और अहमदाबाद दोनों के भाग्य से खुले

एक समय ऐसा भी था जब साबरमती नदी अहमदाबाद के नाम पर दाग जैसी थी। शहर के नाले और औद्योगिक कचरा इसी नदी में गिरता था। पानी का भी अकाल था। मृतप्राय भी साबरमती नदी। मई 1997 में अहमदाबाद म्यूनिसिपल कारपोरेशन ने साबरमती रिवरफ्रंट डवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसआरएफडीसीएल) का गठन किया।  इसके साथ ही मानो साबरमती और अहमदाबाद दोनों के भाग्य से खुल गए। अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में जाने से रोकने के लिए इंटरसेप्टर सीवर के साथ एक एकीकृत जल और सीवेज सिस्टम लागू किया गया। नदी के दोनों किनारों पर 38 नालों को गिरने से रोका गया। यह पानी सीवेज पंपिंग स्टेशनों में भेजा जाता है। नदी के डाउन स्ट्रीम में वासना बैराज है। इस कारण नदी के शहरी क्षेत्र में पूरे वर्ष जल उपलब्ध रहता है। फ्लोटिंग ट्रैश स्किमर मशीन का उपयोग करके नदी की सतत सफाई की जाती है। स्किमर मशीन तैरने वाले और उथली गहराई पर कचरे को इकट्ठा करने में सक्षम है। नदी साफ होने से प्रवासी पक्षी आने लगे हैं। जलीय जीव-जंतु सुरक्षित हैं क्योंकि घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई है। किनारे रहने वाले 10 हजार लोगों को पक्के घर दिए गए हैं। 11.4 कि.मी. पैदल परिपथ विकसित किया गया है।

साबरमती रिवर फ्रंट से सूर्यास्त

सरकार पर आश्रित नहीं रिवर फ्रंट

खास बात यह है कि साबरमदी रिवर फ्रंट योजना सरकार पर आश्रित नहीं है। स्ववित्त पोषित है। रिवरफ्रंट को विकसित करने, उसके प्रबंधन, ऋण भुगतान करने के लिए विस्थापितों से पुनः प्राप्त भूमि का वाणिज्यिक उपयोग किया जा रहा है। लंबी अवधि के पट्टे दिए जा रहे हैं। स्पोर्ट कॉम्पलेक्स और मल्टी लेवल कार पार्किंग, पैदल पुल, पीस गार्डन की योजना पर काम किया जा रहा है। नवम्बर 2019 तक 1400 करोड़ रुपये व्यय किए जा चुके हैं।


यह चित्र गूगल से उठाया गया है

आगरा में यमुना का हाल

अब मैं बात करता हूँ ऐतिहासिक आगरा की। यूं तो आगरा की पहचान ताजमहल के कारण है लेकिन इससे पहले यह यमुना नदी का शहर है, जिसे हम यमुना मैया कहते हैं। यमुना के कारण ही आगरा में ताजमहल है। यमुना किनारे किला, अकबर का मकबरा, रामबाग, एत्माद्उद्दौला, चीनी का रोजा, सतकुइयां, मेहताब बाग, कैलाश महादेव मंदिर, बल्केश्वर महादेव मंदिर, हाथीघाट, दशहरा घाट जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थल हैं। मृतप्राय यमुना भी आधे से अधिक शहर की प्यास बुझा रही है। कितनी विडम्बना है कि हमने अपने शहर के जलस्रोत यमुना को उपेक्षा करके गंगाजल लाने में 2880 करोड़ रुपपे खर्च कर दिए हैं। अब गंगाजल की भी कम पड़ रहा और चम्बल से पानी लाने की योजना बनाई जा रही है। यमुना को स्वच्छ करने के वास्ते यमुना एक्शन प्लान के नाम पर 10,000 करोड़ रुपये व्यय किए जा चुके हैं। 84 नाले सीधे यमुना में आज भी गिर रहे हैं। 29 नाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से संयोजित होने की बात अधिकारी कहते हैं। साथ ही फिलहाल अनुपयोगी मेट्रो रेल प्रोजेक्ट पर 8,379.62 रुपये खर्च कर रहे हैं। मेट्रो रेल हो लेकिन इससे पहले तो जीवित रहने के लिए पानी की जुगाड़ जरूरी है। 1000 करोड़ रुपये आगरा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर व्यय कर रहे हैं, जिसमें यहां वहां जहां तहां न जाने कहां-कहां काम चल रहा है। इसमें कोई पारदर्शिता भी नहीं है। आगरा में सीवर सिस्टम दुरुस्त करने के लिए 857.26 करोड़ रुपये व्यय किए जा चुके हैं। सीवर का हाल क्या है, किसी से छिपा नहीं है।

क्या होना चाहिए

साबरमती रिवर फ्रंट की तरह आगरा में यमुना रिवर फ्रंट विकसित होना चाहिए जो कैलाश घाट, बल्केश्वर घाट, रामबाग, एत्माद्उद्दौला, मेहताब बाग, एत्माद्उद्दौला व्यू पॉइंट से लेकर हाथीघाट होते हुए श्मशान घाट तक हो सकता है। महापौर नवीन जैन को चाहिए कि साबरमती नदी रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट का अध्ययन करें और तदनुसार कार्य करें। न केवल यमुना स्वच्छ होगी बल्कि पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बनेगी। रात्रि पर्यटन हो सकता है। रामबाग और एत्माउद्दौला से सन सेट (सूर्यास्त) का नजारा देखते ही बनेगा। रात्रि में दोनों स्मारकों को प्रकाशित कर दें तो एत्माद्उद्दौला व्यू पॉइंट से मनभावन दृश्य दिखेगा। जब से आगरा में मेयर बनने शुरू हुए हैं, अध्ययन के नाम पर विदेशों तक के दौरे हो गए हैं लेकिन शहर की हालत वहीं की वहीं है, यमुना मैया की चीत्कार किसी को सुनाई नहीं पड़ रही है। अगर यमुना न बची तो यह शहर भी नहीं बच पाएगा। जलाभाव में अकबर को अपना राजधानी फतेहपुर सीकरी छोड़नी पड़ी थी और इसके बाद सीकरी को तहसील तक का दर्जा नहीं मिला है। कहीं ऐसा न हो कि आगरा भी जलाभाव में उजाड़ हो जाए। मेरा मानना है कि अधिकारी और नेतागण सिर्फ तात्कालिक योजनाएं बनाते हैं ताकि ‘उदरस्थ’ कर सकें। यमुना रिवर फ्रंट आगरा के सौंदर्य में चार चांद लगा सकता है। साथ ही पर्यटन उद्योग को संजीवनी दे सकता है। आगरा में अब अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं बनेगा। ऐसे में यमुना रिवर फ्रंट जैसे नए काम करने होंगे।

डॉ. भानु प्रताप सिंह

लेखक जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार है