आगरा: नदियों की जब प्यास बढ़े तो हिम को गलना पड़ता है…हास्य कवि सम्मलेन में गूंजते रहे ठहाके

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आगरा : कमला नगर स्थित कर्मयोगी फुब्बारा पर कर्मयोगी एन्क्लेव वेलफेयर सोसाइटी की ओर से शनिवार को हास्य कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि केंद्रीय राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल, विशिष्ट अतिथि विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल और वरिष्ठ समाजसेवी सीताराम मुन्धड़ा ने माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। कार्यक्रम की शुरुआत वृन्दावन के कलाकारों द्वारा फूलो की होली की प्रस्तुति से की गयी। उसके बाद हास्य कवि सम्मलेन में प्रख्यात कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओ को सराबोर किया।

श्रंगार रस के अंतराष्ट्रीय कवि डॉ. राजीव राज ने कविताओं की शुरुआत करते हुए पढ़ा कि गुलाबी रंग की बौछार हो तन मन भिगो लें हम, तुम्हारी उँगलियाँ पोछें पलक तब आँख खोलें हम। शायर भरत दीप माथुर ने पढ़ा कि तुम्हारी याद के साए हैं शायद, इधर रस्ता भटक आए हैं। हास्य रस के राष्ट्रीय कवि सबरस मुरसानी ने पढ़ा कि ऊँचा है हिन्द गगन से, जोशीला पवन अगन से, मत उलझो मेरे वतन से, नहीं तो मर जाओ कसम से। संवेदना रस की कवियत्री भूमिका जैन भूमि ने पढ़ा कि जो उनके साथ होना चाहिये था, वो मेरे साथ करना चाहते हैं, मैं उनका आसमां ही नोंच लूंगी, जो मेरे ‘पर’ क़तरना चाहते हैं। वियोग रस के राष्ट्रीय कवि सर्जन शीतल ने पढ़ा कि नदियों की जब प्यास बढ़े तो हिम को गलना पड़ता है। रिश्ते जीने वालों को सब के संग ढलना पड़ता है।

गजलकार दिपांशु सिंह शम्स ने पढ़ा कि ज़िन्दगी को हसीं एक ईनाम दूँ, सोचता हूँ मुहोब्बत इसे नाम दूँ, हों मेरे घर में औलाद जुड़वाँ अग़र, नाम एक को अली, दूजे को राम दूँ। गीतकार शिवम खेरवार ने पढ़ा कि शून्य को ब्रह्मांड के मनु, पुत्र अब भरने चले हैं, समाँ के वक्ष पर हम, दस्तख़त करने चले हैं। हास्य कवि गिर्राज शर्मा ने कहा कि हम तो हैं बदनाम जहां में हिस्सेदार बनोगे क्या। संचालन महासचिव संजय गुप्ता ने किया। सभी का धन्यवाद अध्यक्ष पवन बंसल ने दिया।

इस अवसर पर कोषाध्यक्ष विजय अग्रवाल, सह सचिव अंकित बंसल, सुरेश राव, आशु रोहतगी, केएस दीक्षित, प्रदीप अग्रवाल, पवन अग्रवाल, एसके वर्मा, विजय रोहतगी, अवदेश गुप्ता, महिप सिंह, आशीष बंसल अंता भाई, गुल्ली भाई आदि मौजूद रहे।