कम होते जा रहे है चीन में उइगुरों के अधिकारों की बात करने वाले

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चीन के शिनजियांग प्रांत के उरुमछी में 24 नवंबर को एक रिहायशी इमारत में आग लगने से दस लोगों की मौत के बाद पूरे चीन में सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर नाराजगी थी कि कोरोना वायरस के सख्त नियमों के कारण बचाव कार्यों में देरी हुई है. इस घटना के बाद देशभर में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए, जो अब भी जारी हैं.

हालांकि इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल कम ही लोग जानते हैं कि मरने वाले उइगुर थे. चीन का जातीय तुर्क उइगुर समुदाय लंबे समय से सबसे कठोर कार्रवाइयों का शिकार रहा है. उइगुरों के साथ चीनी सरकार का बर्ताव कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी झेल चुका है.

चीनी प्रदर्शनकारी आग की घटना में मरने वाले व्यक्ति को ‘जीरो-कोविड नीति का शहीद’ कहते हैं और उनकी प्रमुख मांगें कोरोना से संबंधित सख्त सरकारी नियमों की समाप्ति और अधिक लोकतांत्रिक अधिकार हैं.

उइगुरों का दर्द

समाचार एजेंसी एएफपी ने आग में मारे गए लोगों के परिवारों से बात की. इन परिजनों के अनुसार आग की यह घटना उनके साथ घटी त्रासदियों का सिलसिला ही थी. अब्दुल हफीज मैमातिम उइगुर मूल के हैं, इस घटना में उनकी मौसी और उनके चार बच्चों की जलकर मौत हो गई थी. 2006 से स्विट्जरलैंड में रह रहे अब्दुल हफीज के मुताबिक उनके पिता, उनकी मौसी के पति और बेटे को चीनी अधिकारियों ने 2016 और 2017 में गिरफ्तार किया था.

अब्दुल हफीज और उनके परिवार के अनुसार गिरफ्तार किए गए लोगों को विशेष हिरासत केंद्रों में ले जाया गया जहां दस लाख से अधिक अन्य उइगुर मुस्लिमों को रखा गया है. उनके मुताबिक, “मेरी मौसी ने कई सालों तक अपनों की देखभाल की और फिर इस आग की घटना ने उनके खुद के जीवन का चिराग भी जला दिया.”

हिरासत केंद्र में उइगुर

इन हिरासत केंद्रों में गंभीर यातनाओं के आरोप अमेरिका और कई अन्य देशों से आते रहे हैं, जबकि इस साल अगस्त में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने भी पुष्टि की थी कि कैदियों को ‘विश्वसनीय साक्ष्य’ के संदर्भ में दंडित किया गया था. बीजिंग इन केंद्रों को ‘स्वैच्छिक व्यावसायिक स्कूल’ कहता है और बताता है कि उनका उद्देश्य चरमपंथ को खत्म करना है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की इस रिपोर्ट में कहा कि शिनजियांग में उइगुर और अन्य मुस्लिम समूहों को 2017 से 2019 तक उनके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया गया. यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि शिनजियांग में उइगुरों की भेदभावपूर्ण नजरबंदी “मानवता के खिलाफ अपराध” है.

रिपोर्ट कहती है, “जबरन मेडिकल उपचार और दयनीय परिस्थितियों में हिरासत समेत यातना या दुर्व्यवहार के आरोप सही और विश्वसनीय हैं.”

एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यमून राइट्स वॉच और अन्य मानवाधिकार समूह लंबे समय से चीन पर सुदूर पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग में दस लाख से अधिक उइगुरों को हिरासत में रखने के आरोप लगाते आए हैं. हालांकि चीन ने पश्चिमी देशों द्वारा आरोपों को “राजनीति से प्रेरित एक मनगढ़ंत झूठ करार दिया.”

अगस्त के बाद से उरुमछी के अधिकांश उइगुर-बहुसंख्यक क्षेत्र सख्त कोविड-19 प्रतिबंधों के अधीन हैं. अब्दुल हफीज कहते हैं, “अगर मेरी मौसी के पति और उनके बेटे वहां होते, तो वे उन्हें बलपूर्वक बचा लेते, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता, क्योंकि दरवाजा बाहर से बंद था.”

मृतकों के अन्य रिश्तेदार दावा कर रहे हैं कि कोविड-लॉकडाउन नियमों के कारण आपातकालीन संचालन गंभीर रूप से धीमा हो गया है, जिसके नतीजतन मौतें हुई हैं. हालांकि बीजिंग इन दावों का खंडन कर रहा है.

Compiled: up18 News