श्री राम की सेना के वो महानायक जिनके बिना रावण से युद्ध जितना असम्भव था…

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श्रीराम जब सीता माता की खोज करते हुए कर्नाटक के हम्पी जिला बेल्लारी स्थित ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे तो वहां उनकी भेंट हनुमान व सुग्रीव से हुई। उस काल में इस क्षेत्र को किष्‍किंधा कहा जाता था। यहीं पर हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि का आश्रम था।

हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार-विमर्श किया।

राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया। वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने विश्‍वकर्मा के पुत्र नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करवाया। नल और नील ने राम के सेना की मदद से यह निर्माण किया। उस वक्त इस रामसेतु का नाम प्रभु श्रीराम ने नल सेतु रखा था। आओ अब जानते हैं कि प्रभु श्रीराम की सेना में कौन क्या था।

दरअसल, प्रभु श्रीराम की ओर से सुग्रीव की सेना ने लड़ाई लड़ी थी। सुग्रीव ने सेना का गठन कर सभी को अलग अलग कार्य सौंपा था। प्रारंभ में उन्होंने सभी वानरों को सीता माता की खोज में लगाया। फिर जब सीता माता का पता चल गए तो वे राम की आज्ञा से समुद्र तट पर गए और उन्होंने वहां पर अपनी सेना का पड़ाव डाला। उनकी सेना में लाखों सैनिक थे। लेकिन यहां प्रधान योद्धाओं का नाम ही लिखा जा सकता है।

वानर सेना में वानरों के अलग अलग झूंड थे। हर झुंड का एक सेनापति होता था जिसे यूथपति कहा जाता था। यूथ अर्थात झूंड। लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने ही वानर तथा ऋक्ष सेना का प्रबन्ध किया था।

सुग्रीव बाली का छोटा भाई और राम सेना का प्रमुख प्रधान सेना अध्यक्ष। वानरों के राजा 10,00,000 से ज्यादा सेना के साथ युद्ध कर रहे थे।

हनुमान सुग्रीव के मित्र और वानर यूथ पति। प्रधान योद्धाओं में से एक। ये रामदूत भी हैं।

लक्ष्मण दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति लक्ष्मण प्रधान योद्धाओं में शामिल थे।

अंगद बाली तथा तारा का पुत्र वानर यूथ पति एवं प्रधान योद्धा। ये रामदूत भी थे।

विभीषण रावण का भाई। प्रमुख सलाहकार।

जामवंत सुग्रीव के मित्र रीछ, रीछ सेना के सेनापति एवं प्रमुख सलाहकार। अग्नि पुत्र जाम्बवंत एक कुशल योद्धा के साथ ही मचान बांधने और सेना के लिए रहने की कुटिया बनने में भी कुशल थे। ये रामदूत भी हैं।

नल सुग्रीव की सेना का वानरवीर। सुग्रीव के सेना नायक। सुग्रीव सेना में इंजीनियर। सेतुबंध की रचना की थी।

नील सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना में सहयोग दिया था। सुग्रीव सेना में इंजीनियर और सुग्रीव के सेना नायक। नील के साथ 1,00000 से ज्यादा वानर सेना थी।

क्राथ वानर यूथपति।

मैन्द द्विविद के भाई यूथपति।

द्विविद सुग्रीव के मन्त्री और मैन्द के भाई थे। ये बहुत ही बलवान और शक्तिशाली थे, इनमें दस हजार हाथियों का बल था। महाभारत सभा पर्व के अनुसार किष्किन्धा को पर्वत-गुहा कहा गया है और वहाँ वानरराज मैन्द और द्विविद का निवास स्थान बताया गया है। द्विविद को भौमासुर का मित्र भी कहा गया है।

दधिमुख सुग्रीव का मामा।

संपाती जटायु का बड़ा भाई,वानरों को सीता का पता बताया।

जटायु रामभक्त पक्षी,रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार।

गुह श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था।

सुषेण वैद्य सुग्रीव के ससुर।

परपंजद पनस-
कुमुद-
गवाक्ष-
केसरी- केसरी, पनस, और गज 1,00000 से ज्यादा वानर सेना के साथ युद्ध कर रहे थे। ये सभी यूथपति थे। केसरी हनुमानजी के पिता थे।

शतबली शतबली के साथ भी 1,00000 से ज्यादा वानर सेना थी।

इनकेअलावा ये भी थे

शरभ,गवय,गज,गन्धमादन,गवाक्ष,जम्भ,ज्योतिर्मुख,क्रथन,महोदर,मयंद,प्रजंघ,प्रमथी,पृथु,रम्भ,ऋषभ,सानुप्रस्थ,सभादन,सुन्द, वालीमुख,वेगदर्श,वेमदर्शी ।