एक कहानी ये भी- वास्को दा गामा की बीमारी कैसे ठीक हुई

अन्तर्द्वन्द

यह कहानी अच्छी है किन्तु कपोल-कल्पना है। पपीता वास्तव में मध्य अमेरिकी देशों से आया फल है। भारत में पपीता पुर्तगाली ही लेकर आए, वह भी १५५० में — वास्को दा गामा आया १४९८ में। यह बात और है कि विश्व में पपीते के उत्पादन का ४५% भारत से आता है।

वास्को दा गामा ८ जुलाई १४९७ को लिस्बन से चार जहाज लेकर भारत का जलमार्ग खोजने के लिए रवाना हुआ। उसके नाविक दल में १६७ व्यक्ति थे। इस यात्रा को आरम्भ करने के लगभग १६ सप्ताह उपरान्त ७ नवम्बर १४९७ को नाविकों में स्कर्वी के लक्षण प्रकट होने लगे। २२ नवम्बर को वे उत्तमाशा अन्तरीप (Cape of Good Hope) पहुँचे। यहाँ उन्होंने अपने बडे जहाज को तोड़ कर अन्य जहाजों की मरम्मत की। इसके कुछ दिन उपरान्त वहाँ हुई झड़प में वास्को दा गामा के पैर में तीर लगा।

२ मार्च १४९८ को वास्को दा गामा का दल वर्तमान मोजाम्बिक तक पहुँच गया। यहाँ वहाँ वे अरब व्यापारियों से मिले। यहाँ वास्को दा गामा ने एक मुस्लिम के रूप में अपना परिचय दिया तथा मोजाम्बिक के सुलतान अली मूसा बिन बिक़ (जिनके नाम पर पुर्तगालियों ने इस देश को मोजाम्बिक कहा) को कुछ तोहफ़े भी दिए। यहाँ वास्को दा गामा के मुस्लिम न होने का भेद खुलने पर २९ मार्च को उन्हें भागना पड़ा। किन्तु, वास्को दा गामा ने यह देखा कि अरब व्यापारिक जहाजों पर भारी तोपें नहीं होती; जोकि उनके पास थीं। अतः वास्को दा गामा ने “पहले लड़ाई फिर व्यापार” की नीति अपनाई। भागते हुए वास्को दा गामा के जहाजों ने नगर पर अपनी तोपें भी दागी।

इस यात्रा में ७ अप्रैल १४९८ को जब वे वर्तमान मोंबासा केन्या तक पहुँचे तो मोंबासा के सुलतान ने उनकी आवभगत की; और नारंगी तथा नींबू के फल खिलाकर इसका उपचार किया। जिससे वास्को दा गामा के दल के अनेक सदस्य शीघ्र ही स्वस्थ हो गए किन्तु यहाँ भी उनकी झड़पें हुईं।

फिर वहाँ से १३ अप्रैल रवाना हो १४ अप्रैल को वास्को दा गामा मालिंदी पहुँचा; यहाँ से २४ अप्रैल को प्रस्थान कर वास्को दा गामा अरब अथवा गुजराती (भारतीय) व्यापारियों की सहायता से १८ मई १४९८ को भारत के कालीकट तक पहुँचा।

भारत में कालीकट के जमोरिन से भी झड़प होने पर वास्को दा गामा के दल के कुछ सदस्य हिरासत में ले लिए गए और वास्को दा गामा ने भी कुछ भारतीयों को अगवा कर लिया। २९ अगस्त १४९८ तक भारत में चार माह बिता कर लौटते हुए वे ३ अक्तूबर तक अंजदीव द्वीपों पर रहे; फिर वहाँ से वास्को दा गामा के दल के ३० सदस्यों की स्कर्वी से मृत्यु हो गई। अतः २ जनवरी १४९९ को मगदिशु पहुँचे। फिर ७ जनवरी को मालिंदी पहुँच कर से वास्को दा गामा ने अपने जहाज पर ताजा संतरे लदवाए और ११ जनवरी को वे आगे की यात्रा पर बढे।[4] फिर भी लौटने की यात्रा में स्कर्वी से उसके दल के २५ अन्य सदस्यों की मृत्यु हो गई। वास्को दा गामा की इस यात्रा में कुल ११६ दल-सदस्यों की मृत्यु हुई, जिनमें अधिकतर स्कर्वी के शिकार हुए।[5] बचे हुए ५४ सदस्य १० जुलाई तथा कुछ अन्य अगस्त १४९९ को पुर्तगाल वापस लौटे।

१० जुलाई को सिंतरा नगर में स्पेन के राजा मैनुअल के दरबार में वास्को दा गामा उपस्थित हुए। इस सिंतरा नगर के नाम पर भारत में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाए गए फल को संतरे के नाम से जाना जाता है। जबकि इस फल के भारतीय नाम नारंगी का परिवर्तित रूप नारंज पुर्तगालियों ने अपनाया है। [6] यही नहीं नाविकों द्वारा दीर्घकाल के लिए संग्रहण तथा उपयोग के योग्य नारंगी की एक प्रजाति को मोसम्बी कहते हैं; जिसे पुर्तगालियों ने अपने उपनिवेश बनाए मोजाम्बिक देश के नाम पर भारतीय बाजार में प्रस्तुत किया।

अतः नींबू, नारंगी, तथा मोसम्बी वे फल हैं, जिनसे वास्को दा गामा तथा उनके दल के सदस्यों के घाव भरे। सम्भवतः इनके बिना वास्को दा गामा के दल का कोई भी सदस्य लौट न पाता। किन्तु यह फल उन्हें केन्या से मिले थे।

साभार- अरविन्द व्यास