राजपूत राजा ठाकुर अर्जुन सिंह गौड़ और अमर सिंह राठौड़ के शौर्य की कहानी

अन्तर्द्वन्द

सभी मुगल सूबेदार और राजपूत ठाकुर बादशाह से मिलने अपनी अपनी बारी के अनुसार आ जा रहे थे।

सलावत खान बादशाह से मिलकर लौट रहा था। अगली बारी राजपूत ठाकुर अर्जुन सिंह गौड़ की थी। वह शाहजहां का अति विश्वस्नीय सेनानायक था। वह देहली और आगरा दोनो का फौजदार रह चुका था। उसने सारोठ, बोरावड़, मानपुर, लालपुर, महू आदि स्थानों पर अनेक जंगों में शाही फौज़ो का नेतृत्व किया था। वह बेहद आला दर्जे का सिपहसालार था। उसके अधिकार में अजमेर मेरवाड़ा का राजगढ़ ठिकाना था।

उसे बादशाह के दरबार मे मय हथियार जाने का विशेषाधिकार मिला हुआ था। अपनी तलवार बगल में लगाये अर्जुन सिंह अपने स्थान से उठा और उस तंग गलियारे जैसे रास्ते से आगे बढ़ने लगा। सामने से सलावत खान आ रहा था। दोनो आमने सामने हुए और उनके कंधे टकरा गये। सलावत खान के मुंह से गाली निकली। इससे पहले की वो पूरी गाली बोलता अर्जुन सिंह की तलवार बिज़ली की तरह चमकी और खान का सर ज़मीन पर लुढ़कने लगा।

भारी कोलाहल मच गया। आनन फानन में अर्जुन सिंह को पकड़ कर शहंशाह के सामने प्रस्तुत किया गया। सिंह से शाह ने पूछा ये क्यों किया ? अर्जुन सिंह ने कहा उसने मुझे गाली क्यों दी। इस पर शाहजहां ने कुछ सोचा और फिर कहा गाली देने वाले का यही हश्र होना चाहिए।

अर्जुन सिंह को छोड़ दिया गया।

दूसरा किस्सा इससे मिलता जुलता नागौर के उमराव वीरवर अमर सिंह राठौड़ का भी है। जिसने भी मुगल दरबार मे अपनी कटार से मुगल सूबेदार का सिर काट दिया था। मुगल सूबेदार का कुसूर सिर्फ इतना था कि उसने अमर सिंह को गँवार कह दिया था। घटना के बाद अमर सिंह आगरा के लाल किले से अपने घोड़े को कूदा कर निकल गया।