लोकसभा चुनाव 2024 के साथ महत्वपूर्ण मील के पत्थर तक पहुंच जाएगी EVM की कहानी

अन्तर्द्वन्द

1977 में EVM का आया था विचार

EVM की कल्पना पहली बार 1977 में की गई थी। इसका प्रोटोटाइप हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा 1979 में विकसित की गई थी। यह परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम था। छह अगस्त 1980 को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने निर्वाचन आयोग द्वारा मशीन का प्रदर्शन किया गया था। ईवीएम को लेकर व्यापक सहमति पर पहुंचने के बाद, निर्वाचन आयोग ने उनके उपयोग के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्देश जारी किए।

पहली EVM वाला चुनाव ही रद्द हो गया था

केरल में परूर विधानसभा सीट के चुनाव के दौरान 19 मई 1982 को 50 मतदान केंद्रों पर प्रायोगिक आधार पर मशीनों का इस्तेमाल किया गया था। कानून में स्पष्ट प्रावधान के बिना ईवीएम के इस्तेमाल को बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने ईवीएम में खामियों या इसके फायदों पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया लेकिन कहा कि मशीनों से मत डालने का निर्वाचन आयोग का आदेश उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। बाद में परूर निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले उम्मीदवार के चुनाव को रद्द कर दिया गया था।

1989 में EVM इस्तेमाल के लिए कानून

दिसंबर 1988 में जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन किया गया और कानून में एक नई धारा 61ए शामिल की गई, जो आयोग को ईवीएम के इस्तेमाल का अधिकार देती है।

संशोधन 15 मार्च, 1989 को लागू हुआ। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), बेंगलुरु ने ईवीएम का प्रोटोटाइप प्रदर्शित करने के बाद ईवीएम के निर्माण के लिए ईसीआईएल के साथ साझेदारी की गई।

चुनाव सुधार समिति का ऐलान

1990 में दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार समिति का गठन किया जिसमें कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति ने तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा ईवीएम की जांच की सिफारिश की। विशेषज्ञ समिति ने सर्वसम्मति से बिना किसी देरी के ईवीएम के उपयोग की सिफारिश की और इसे तकनीकी रूप से मजबूत, सुरक्षित और पारदर्शी बताया।

1998 में बनी थी आम सहमति

भारतीय चुनाव आयोजित करने के लिए ईवीएम के उपयोग पर साल 1998 में एक आम सहमति बनी थी और उनका उपयोग मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 16 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया था। ईवीएम का उपयोग 1999 में 46 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों तक बढ़ाया गया और फरवरी 2000 में हरियाणा चुनावों में 45 विधानसभा सीटों पर मशीनों का उपयोग किया गया। इसके बाद सभी विधानसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया।

जानिए क्या है M1-M2-M3 EVM

साल 2004 के लोकसभा चुनावों में सभी 543 निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 2001 में ईवीएम में कई तकनीकी परिवर्तन किए गए और वर्ष 2006 में मशीनों को और उन्नत किया गया। साल 2006 से पहले के समय वाली ईवीएम को ‘एम1 ईवीएम’ के रूप में जाना जाता है जबकि 2006 से 2010 के बीच निर्मित ईवीएम को ‘एम2 ईवीएम’ कहा जाता है। वर्ष 2013 से निर्मित नवीनतम पीढ़ी के ईवीएम को ‘एम3 ईवीएम’ के नाम से जाना जाता है।

VVPAT का भी शुरू हुआ इस्तेमाल

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यापन में सुधार के लिए, वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों के उपयोग को शुरू करने के लिए 2013 में चुनाव नियम, 1961 में संशोधन किया गया था। इनका इस्तेमाल पहली बार नगालैंड की नोकसेन विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में किया गया था। एक ईवीएम में कम से कम एक बैलेट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपैट होता है। ईवीएम की संभावित लागत 7,900 रुपये प्रति बैलेट यूनिट, 9,800 रुपये प्रति कंट्रोल यूनिट और 16,000 रुपये प्रति वीवीपैट शामिल है।

साल 2019 के बाद से, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में बगैर किसी नियत क्रम में चुने गए पांच मतदान केंद्रों से वीवीपीएटी पर्चियों का मिलान अधिक पारदर्शिता के लिए ईवीएम गणना के साथ किया जाता है। चुनाव आयोग के अनुसार, अब तक कोई गलत मिलान नहीं हुआ है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल दलों सहित कई विपक्षी दलों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं और मांग की है कि अधिक पारदर्शिता के लिए सभी निर्वाचन क्षेत्रों में पर्चियों का मिलान ईवीएम गिनती के साथ किया जाना चाहिए।

विपक्ष के निशाने पर EVM

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार ईवीएम को ‘मोदी वोटिंग मशीन’ (एमवीएम) कहा था जबकि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता मायावती की मांग है कि मतपत्र प्रणाली फिर से शुरू की जाए। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट कहा है कि मतपत्र प्रणाली को फिर से शुरू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

पिछले साल अगस्त में लोकसभा में एक लिखित जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि निर्वाचन आयोग ने सूचित किया है कि मतपत्र प्रणाली को फिर से लागू करने के बारे में कुछ प्रतिवेदन प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि आयोग 1982 से ईवीएम का इस्तेमाल कर चुनाव करा रहा है। उन्होंने कहा कि ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों के इस्तेमाल को जनप्रतिनिधित्व कानून के स्पष्ट प्रावधानों के रूप में संसद ने कानूनी मंजूरी दी है।

चुनाव आयोग की दो टूक

ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों द्वारा जताई गई चिंताओं पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने हाल में कहा था कि राजनीतिक दलों को राजी करने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्षों से ईवीएम ने उन सभी के पक्ष में परिणाम दिए हैं जिन्होंने इसकी विश्वसनीयता पर चिंता जताई है। पिछले संसदीय चुनाव के दौरान मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे सुनील अरोड़ा ने अफसोस जताया है कि चुनावी हार झेल रहे दलों द्वारा ईवीएम को ‘फुटबॉल’ की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। जहां तक षडयंत्र और हेराफेरी की आशंकाओं का संबंध है, वे निश्चित रूप से त्रुटिरहित हैं। लेकिन तकनीकी खामी संभव है, जैसा कि किसी अन्य उपकरण के मामले में होता है। उन्होंने कहा कि उन्हें तुरंत ठीक कर लिया जाता है।

दिलचस्प बात यह है कि ईवीएम प्रत्यक्ष चुनावों में वोटों के ‘एग्रीगेटर’(समूहक) के रूप में काम करती है। राष्ट्रपति और राज्यसभा चुनावों जैसी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में इसका उपयोग नहीं होता है।

-एजेंसी