बीमार यमुना नदी अपना इलाज चाहती है

अन्तर्द्वन्द

गाद और गंदगी के बोझ से नदी व्याकुल है। बीमार नदी अपना इलाज चाहती है। नहीं मिलता तो बिलखती है, चीखती है, चिल्लाती है। एक ऐतिहासिक नदी की धमनियों से ‘लहू’ निकाल लिया गया है। एक पौराणिक नदी को नाले में बदल दिया गया है। ठीक कालिदास की तरह दिल्ली ने उस टहनी को काटा है, जिस पर वो बैठी है। हजार बातें हुईं, लेकिन आज भी साल के ज्यादातर हिस्से में यमुना एक गंदा नाला नजर आती है।

दिल्ली का गंदा पानी उसमें गिरता है। पानी नहीं होने के कारण उसमें गाद भरता जाता है। कभी गर्मियों में देख लीजिए, यमुना में सतह तक गाद भरा नजर आएगा। तो जब ज्यादा बारिश हो जाए या पहाड़ों से ज्यादा पानी आ जाए तो कहां बहे?

यमुना किनारे ‘लालसा का घर’

नदी में पानी के लिए जगह नहीं तो वो बाहर उफनती है। लेकिन वहां भी इंसानों की लालसा का घर बना है। 17 वीं सदी में यमुना के इलाके का अतिक्रमण कर लाल किला बनाया, अंग्रेजों ने सिविल लाइन्स बसाया। आजाद भारत में नोएडा से ओखला बराज तक यमुना की सीमा का उल्लंखन दिखता है। हम एक तरफ यमुना को बचाने का स्वांग करते रहे, दूसरी तरफ कभी यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन बनाया, कभी अक्षरधाम तो कभी कॉमनवेल्थ विलेज बनाया। यमुना किनारे अवैध निर्माण यमुना के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं को मुंह चिढ़ाते हैं और हम मुंह मोड़े रहते हैं।

नदी का प्राकृतिक डूब क्षेत्र जो कभी 5-10 किलोमीटर होता था उसे कुछ सौ मीटर तक समेट दिया गया और कुछ जगहों पर तो चंद मीटर। फिर आप कहें कि यमुना के किनारे बसे इलाकों में बाढ़ आ गई। ये यमुना का इलाका था, वो जगह जहाँ जरूरत पड़ने पर यमुना अपनी बाहें फैला सके, अंगड़ाई ले सके। नदी सीखचों में बांध दी गई। ज्यादा बारिश होती है तो यमुना को अपने घर हिमालय से ताकत मिलती है, उसकी माँ यमुनोत्री ऊर्जा देती है तो वो जी उठती है और अपना इलाका वापस पाना चाहती है।

इसे बाढ़ क्यों कहते हैं? जुल्म की भी इंतेहा होती है। यमुना को इतना सताएंगे तो वो बगावत करेगी। दिल्ली वालों के इस दर्द में यमुना का दर्द भी टटोलिए, तभी इस दर्द की दवा होगी।