विश्व दुग्ध दिवस: जीवन के लिए सबसे पहला महत्वपूर्ण और जीवनदायिनी आहार है दूध

अन्तर्द्वन्द

विश्व में कोई भी प्राणी हो उसका पहला आहार दुग्ध होता है, इसी बात से हम यह समझ सकते हैं कि हमारे स्वस्थ्य जीवन के लिए सबसे पहला महत्वपूर्ण और जीवनदायिनी आहार दूध है। इसकी उपयोगिता को विश्व भर में माना है।

विश्व दुग्ध दिवस  (World Milk Day) की किसने की पहल

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने बहुत सारे देशों की सहभागिता से पूरे विश्व में 2001 में पहली बार विश्व दुग्ध दिवस मनाया गया था।संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के द्वारा 1 जून को विश्व स्तर पर हर वर्ष मनाने के लिये विश्व दुग्ध दिवस की स्थापना की गयी थी। कारण था इस समय के दौरान बहुत सारे देशों के द्वारा विश्व दुग्ध दिवस पहले से ही मनाया जा रहा था यह वार्षिक उत्सव हैं|

विश्व दुग्ध दिवस का बढ़ रहा है महत्व

इस उत्सव में वर्ष दर वर्ष भाग लेने वाले देशों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। इस दिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पिछले साल 72 देशों ने विश्व दुग्ध दिवस मनाया था। इन देशों ने लगभग 586 प्रोग्राम्स का आयोजन किया था। इस दिन, दूध और डेयरी उत्पादों के सेवन से लोगों को मिलने वाले लाभों को दुनिया भर में सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाता है जिसमें डेयरी एक अरब से अधिक लोगों की आजीविका का समर्थन करती है।

भारत में दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर

डेयरी उत्पाद न केवल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं बल्कि डेयरी क्षेत्र वैश्विक खाद्य प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो दुनिया भर के कई लोगों को आर्थिक, पोषण और सामाजिक लाभ प्रदान करता है। चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए यह दिन और भी अधिक महत्व रखता है क्योंकि यह देश के प्रमुख खाद्य पदार्थों में से एक है। खाना पकाने में दूध का उपयोग करने की ज़रूरत होती है| पिछले कुछ वर्षों में, भारत 150 मिलियन टन से अधिक उत्पादन और प्रति व्यक्ति 300 ग्राम प्रतिदिन की उपलब्धता के साथ दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन गया है।

विश्व दुग्ध दिवस पर कार्यक्रम

विश्व दुग्ध दिवस के पूरे उत्सव के दौरान दूध को एक वैश्विक भोजन व पूर्ण आहार के रुप में केन्द्रित किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय डेयरी संघ के द्वारा ऑनलाइन अपने वेबसाइट पर एक स्वस्थ और नियंत्रित भोजन के रुप में दूध के महत्व को बताने की शुरुआत की गयी है। पूरे दिन प्रचार संबंधी गतिविधियों के द्वारा आम लोगों के लिये दूध के महत्व के संदेश को फैलाने के लिये एक-साथ काम करने के लिये उत्सव में स्वास्थ्य संस्थाओं से विभिन्न सदस्य भाग लेते हैं।

कोविड 19 दुग्ध उत्पादन की स्थित‍ि

कोविड-19 की महामारी को देखते हुए सभी राज्य सरकारों ने अपने अपने स्तर में लॉकडाउन घोषित किया है| जिस वजह से जनजीवन ना केवल ठप किया है बल्कि भगवान के दरवाजे भी बंद हो गए हैं| जानकार लोगों का अनुमान है कि प्रसाद के रूप में व मिठाई के रूप में भारत में दूध का खपत 50 से 55 परसेंट रहती है। ऐसे में जब मंदिर और मिठाई की दुकानें बंद हैं तो यह प्रश्न उठना लाजमी है कि ऐसे समय में जो दूध का उपभोग व दूध निर्मित उत्पादन नहीं हो रहा हैं तो इतना दूध कहाँ गया ,

जबकि दूध प्राकृतिक रूप से उत्पाद होता है| वह तो रुकेगा नहीं, हाँ 15-20 % की कमी आ सकती है| वह दूध कहां गया ऐसे में सामान्य आदमी के मन मस्तिष्क में एक बात आती है क‍ि कहीं ऐसा तो नहीं है कि दूध उत्पादन में और उस से बनी हुई चीजों के लिए हम लोग एडल्टरेशन का सहारा लेते हों। आज अनेक लोगों का यह कहना है क‍ि पहले की अपेक्षा आज दूध ज्यादा पौष्टिक गाढ़ा और स्वादिष्ट आ रहा है। इस बात से यह साफ जाहिर होता है कि बड़े पैमाने पर दूध में पानी व केमिकल मिलाया जाता था।

आज विश्व दूध दिवस पर सभी दूध निर्माताओं से पूरा विश्व कहता है क‍ि दूध का सेवन मनुष्य का पौष्टिक आहार होता है। दूध में केमिकल मिला कर व्यक्ति के स्वस्थ से खिलवाड़ ना करे।

विश्व दूध दिवस 2021 की थीम

आज विश्व दूध दिवस की थीम ‘sustainability in the dairy sector along with empowering the environment, nutrition, and socio-economic. “सस्टेनेबिलिटी इन दी डेरी सेक्टर एलॉन्ग विद एम्पॉवरिंग दी एनवायरमेंट न्यूट्रिशन एंड सोशल इकनोमिक” बहुत ही सार्थक थीम रखी गई है क्योंकि जिस तरीके से एनवायरनमेंट खराब हो रहा है, आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो रही है। दूसरी तरफ पशुओं को पूरा चारा नहीं मिल पाने के कारण उनमें न्यूट्रीशन की कमी होने से दूध के प्रोडक्ट की जो शक्ति है वह कम हो रही है। ऐसे में सभी दूध उत्पादक व्यवसाय से जुड़े हुए तमाम खाद्य और कृषि संगठनों को एकजुट होना पड़ेगा तथा थीम को सार्थक करने के लिए दूध क्षेत्र में स्थिरता, आर्थिक विकास और पशुओं का पोषण हो ताकि दूध व्यवसाय से जुड़े हुए सभी उद्योगपति की आर्थिक स्थिति के साथ पशुओं को भरपूर चारा मिल सके। साथ में हमारे को एनवायरमेंट (पर्यावरण) का और पौष्टिकता का ध्यान रखना पड़ेगा। कोविड-19 में महामारी का एक कारण हम लोगों का अहसास करा गया है क‍ि प्रकृत्य उत्पाद हो या शुद्ध वातावरण ज़िंदगी के आवश्यक हैं।

– राजीव गुप्ता ,
लोक स्वर, आगरा